एसीएस प्रबोध का नाम दागी अफसरों की सूची में डालने के लिए हाईकोर्ट में आवेदन दायर

प्रबोध सक्सेना का नाम दागी अफसरों की सूची में डालने के लिए हाईकोर्ट के समक्ष आवेदन दायर किया गया है। बलदेव शर्मा के आवेदन पर हाईकोर्ट ने दो सप्ताह के भीतर राज्य सरकार से जवाब तलब किया है।

हिमाचल हाईकोर्ट

अतिरिक्त मुख्य सचिव (एसीएस) प्रबोध सक्सेना का नाम दागी अफसरों की सूची में डालने के लिए हाईकोर्ट के समक्ष आवेदन दायर किया गया है। बलदेव शर्मा के आवेदन पर हाईकोर्ट ने दो सप्ताह के भीतर राज्य सरकार से जवाब तलब किया है। मुख्य न्यायाधीश एए सैयद और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ के समक्ष मामला सूचीबद्ध किया था। आवेदन में आरोप लगाया है कि मुख्य सचिव ने प्रबोध का नाम जानबूझकर दागी अफसरों की सूची में नहीं डाला है। दलील दी गई कि प्रबोध के खिलाफ सीबीआई अदालत दिल्ली में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत मामला दर्ज है।

350 करोड़ रुपये के इस मामले में सीबीआई ने प्रबोध के खिलाफ चार्जशीट दायर की है और फरवरी 2020 से वह जमानत पर हैं। हाईकोर्ट में सूची दायर करते समय मुख्य सचिव को पता था कि प्रबोध के खिलाफ आपराधिक मामला लंबित है। फायदा पहुंचाने के लिए उन्हें संवेदनशील पदोें पर तैनात किया गया। इस समय उनके पास वित्त, कार्मिक, पर्यावरण और योजना विभाग का जिम्मा है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष का पदभार भी उनके पास है। मुख्य सचिव ने अदालत के आदेशों की अवहेलना करते हुए राज्य सरकार की ओर से जारी 23 अप्रैल 2011 की अधिसूचना का उल्लंघन किया है। इस अधिसूचना के अनुसार उन सभी को दागी अफसरों की सूची में डालना था, जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं। हाईकोर्ट के आदेशों की अनुपालना में सरकार ने यह अधिसूचना जारी की थी।

इसका मकसद दागी अफसरों को संवेदनशील पदों से हटाना, पदोन्नति का लाभ न देना, जनहित में उनको सेवानिवृत्त करना था। आवेदनकर्ता ने अदालत से गुहार लगाई है कि सरकार को आदेश दिए जाएं कि वह प्रबोध के खिलाफ लंबित आपराधिक मामले की जानकारी अदालत को सौंपे।  बता दें कि दागी अफसरों को संवेदनशील पदों पद तैनात करने पर हाईकोर्ट ने संज्ञान लिया है। वर्ष 2014 में सरकार ने संवेदनशील पदों पर तैनात 43 दागी अफसरों की सूची कोर्ट को सौंपी थी। 8 जनवरी 2014 को सरकार ने कोर्ट को अवगत करवाया था कि सभी दागी अफसरों को संवेदनशील पदों से हटा दिया है। जनहित याचिका का निपटारा करते हुए अदालत ने स्पष्ट किया था कि यदि कोई दागी अफसर संवेदनशील पद पर तैनात है तो यह मामला कोर्ट में उठाया जा सकता है।