आर्मीनिया-अजरबैजान के बीच हुए सैन्य झड़प में अब तक 100 सैनिकों की मौत हो चुकी है। आर्मीनिया ने दावा किया है कि उसके 49 सैनिक मारे गए हैं, जबकि अजरबैजान ने कहा है कि उनके 50 सैनिक हताहत हुए हैं। दोनों देश दो साल पहले भी नागोर्नो काराबाख को लेकर 3 महीने की जंग लड़ चुके हैं।
येरवेन: आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच फिर से युद्ध शुरू हो गया है। सीमा पर जारी इस लड़ाई में अभी तक दोनों देशों के लगभग 100 सैनिकों की मौत हुई है। आर्मीनिया ने दावा किया है कि उसके कम से कम 49 सैनिक मारे गए हैं, जबकि अजरबैजान ने कहा कि उसे 50 सैनिकों का नुकसान हुआ है। अब आशंका जताई जा रही है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के अलावा दुनिया में दूसरा पूर्ण युद्ध भी छिड़ सकता है। ये दोनों देश दो साल पहले भी नागोर्नो काराबाख को लेकर 3 महीने की जंग लड़ चुके हैं। उस समय आर्मीनिया को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। बाद में रूस के बीच-बचाव और सेना भेजने के बाद नागोर्नो काराबाख में शांति स्थापित हुई थी। आर्मीनिया ने कहा कि सीमा से सटे जर्मुक, गोरिस और कापन शहरों पर अजरबैजानी सेना ने मंगलवार तड़के जबरदस्त गोलीबारी की है। वहीं, अजरबैजान का दावा है कि उसने आर्मीनियाई सैनिकों के बड़े पैमाने पर उसकावे के जवाब में यह कार्रवाई की। हालांकि रूस के बीच-बचाव के बाद दोनों देशों ने गोलीबारी को तत्काल प्रभाव से रोकने पर सहमति जताई है।
आर्मीनिया अजरबैजान की तुलना भारत-पाकिस्तान से क्यों
आर्मीनिया और अजरबैजान की तुलना भारत और पाकिस्तान के रिश्तों से की जाती है। दोनों ही देश आजादी के समय से ही एक दूसरे के कट्टर दुश्मन रहे हैं। इनके बीच भारत के कश्मीर जैसे नागोर्नो काराबाख पर कब्जे को लेकर कई बार युद्ध भी हो चुका है। नागोर्नो काराबाख 4400 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ इलाका है। यह इलाका अंतरराष्ट्रीय रूप से अजरबैजान का हिस्सा है लेकिन उस पर आर्मेनिया के जातीय गुटों का कब्जा है। 1991 में इस इलाके के लोगों ने खुद को अजरबैजान से स्वतंत्र घोषित करते हुए आर्मेनिया का हिस्सा घोषित कर दिया। उनके इस हरकत को अजरबैजान ने सिरे से खारिज कर दिया। इसके बाद दोनों देशों के बीच कुछ समय के अंतराल पर अक्सर संघर्ष होते रहते हैं। आर्मीनिया ईसाई बहुल देश है, जबकि अजरबैजान इस्लामिक राष्ट्र है। वैसे ही भारत भी हिंदू बहुल है, जबकि पाकिस्तान घोषित तौर पर इस्लामिक देश है।
आजादी के बाद से ही जंग लड़ रहे दोनों देश
आर्मीनिया और अजरबैजान 1918 और 1921 के बीच आजाद हुए थे। उस समय ही सीमा विवाद के कारण दोनों देशों में दुश्मनी पैदा हो गई थी। अजरबैजान का दावा है कि आर्मीनिया ने उसके इलाके पर कब्जा जमा रखा है, जबकि आर्मीनिया इस दावे को नकारता है। प्रथम विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद आर्मीनिया, अजरबैजान और ट्रांसकॉकेशियन फेडरेशन (वर्तमान में जार्जिया) सोवियत यूनियन में शामिल हो गए। इस दौरान रूसी नेता जोसेफ स्टालिन ने अजरबैजान के एक हिस्से (नागोर्नो-काराबाख) को आर्मीनिया को दे दिया। यह हिस्सा पारंपरिक रूप से अजरबैजान के कब्जे में था लेकिन यहां रहने वाले लोग आर्मेनियाई मूल के थे।
1991 से लड़ाई लड़ रहे हैं दोनों देश
1991 में जब सोवियत यूनियन का विघटन हुआ तब आर्मीनिया और अजरबैजान भी स्वतंत्र हो गए। उस समय नागोर्नो-काराबाख के लोगों ने खुद को अजरबैजान से स्वतंत्र घोषित करते हुए आर्मीनिया में शामिल हो गए। इसी के बाद दोनों देशों के बीच जंग के हालात बन गए। लोगों का मानना है कि जोसेफ स्टालिन ने आर्मीनिया को खुश करने के लिए नागोर्नो-काराबाख का सौदा किया था। जबकि, अजरबैजान का दावा है कि यह इलाका परंपरागत रूप से उसका है और वह इसे अपने देश में जरूर शामिल करेगा।