अरारोट: वो देसी Superfood जिसके दीवाने हो गए थे विदेशी, अब अपने ही देश में हो रहा है विलुप्त

Indiatimes

भोजन के बिना जीवन संभव ही नहीं है, इसी भोजन के लिए तो हम दिन रात जीवन की लड़ाई लड़ते हैं. लेकिन समस्या ये है कि हम आजतक जान ही नहीं पाए कि हमें क्या खाना चाहिए और क्या नहीं. कभी लोग जीने के लिए भोजन करते थे लेकिन आज के इस आधुनिक युग में जहां एक से बढ़ कर एक पकवान सामने रखे हों तो इंसान के जीने का एक मकसद खाना भी बन जाता है. 

इन पकवानों के चक्रव्यूह में फंस कर हमने अपने जीवन से कुछ ऐसे पारंपरिक खाद्य पदार्थों को हटा दिया जो सिर्फ हमारा पेट ही नहीं भरते थे, बल्कि इसके साथ ही हमारे शरीर को भी बहुत से लाभ पहुंचाते थे. समय के साथ विलुप्त होते जा रहे ऐसे ही पौष्टिक खाद्य पदार्थों में से एक है अरारोट, जिसे तीखुर के नाम से भी जाना जाता है. इसके बनने से लेकर इसके सफर तक की कहानी बेहद रोचक है. इसकी कहानी के साथ साथ हम आपको ये भी बताएंगे कि इसके क्या क्या फायदे हैं.

भागलपुर से निकल हर जगह हुआ प्रसिद्ध

ArarotGoogle

समय के साथ साथ लोगों के जीवन से लगभग गायब हो चुका अरारोट बहुत प्राचीन खाद्य पदार्थ रहा है. शकरकंदी से तैयार होने वाले अरारोट का मुख्य उत्पादक बिहार के भागलपुर जिले का कहलगांव क्षेत्र रहा है. ब्रिटिश वनस्पतिशास्त्री और मटेरिया मेडिका के शिक्षक रहे जॉन फोर्ब्स रॉयल ने 1830 के दशक में लिखी अपनी डायरी में बताया था कि उन्होंने बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे प्रदेशों के बहुत से इलाकों में अरारोट का स्वाद चखा था.

बनाने की एक जैसी प्रक्रिया होने के बावजूद अलग-अलग क्षेत्रों में इसका अलग अलग स्वाद पाया जाता रहा है. हालांकि जगह के हिसाब से इसमें इस्तेमाल होने वाली मूल वानस्पतिक प्रजाति बदलती रही है. फोर्ब्स ने अपनी डायरी में बताया कि शर्करा व स्टार्च युक्त होने के कारण भागलपुर क्षेत्र में इसे बनाने के लिए शकरकंदी का इस्तेमाल किया जाता था.

ये है इसे तैयार करने की प्रक्रिया

ArarotGoogle

इसे तैयार करने की प्रक्रिया भी बेहद दिलचस्प है. इसके लिए शकरकंदी को मिट्टी से निकालकर पानी से साफ किया जाता था. इसकी जड़ें और छिलके हटाने के बाद इसे साफ पानी में डाला जाता है. इसके बाद इसके टुकड़ों को सिल बट्टे पर पीसा जाता है. इसके पेस्ट को कपड़े से छानने के बाद इसे हल्की आंच पर या धूप में सुखाया जाता है. सूखने के बाद इसे कूटकर छोटे छोटे टुकड़ों में बदल दिया जाता है. इस तरह तैयार होता है अरारोट.

लंबे समय से होता रहा है इसका इस्तेमाल

ArarotFood

लंबे सफर पर जाने वाले यात्री इसे अपने साथ ले जाते थे. इतालवी लेखक व यात्री Niccolò Manucci के यात्रा वृतांत के अनुसार उन्होंने पहली बार संकरीगली-तेलियागढ़ी के बीच एक कैम्प में  अरारोट का स्वाद चखा था. इसके साथ ही यह भी कहा जाता है कि पाल और सेन की सेना को अरारोट नियमित तौर पर खाने को दिया जाता था. खुद राजा विजय सेन भी इसका सेवन करते थे.

आसान है इसे खाने के लिए तैयार करना

ArarotGoogle

एंग्लो-इंडियन आधिकारिक, प्रकृतिवादी , और लेखक जॉर्ज क्रिस्टोफर मॉलेसवर्थ बर्डवुड ने 1865 के दौरान कहा था कि अरारोट भागलपुर में तैयार होने के बाद पटना, बनारस, चटगांव और दक्षिण भारत के त्रावणकोर के बड़े बाजारों तक पहुंचता था. इन क्षेत्रों में ये बेहद फेमस था. इसे खाना भी बेहद आसान है. यही वजह है कि पहले लोग इसे लंबी यात्रा के दौरान अपने साथ ले जाते थे. इसे खाने का सबसे आसान तरीका है, इसे गर्म पानी में मिलाकर पेस्ट की तरह बना लिया जाए और खाया जाए. इसके साथ ही इसमें गर्म दूध मिलाकर पकाया जा सकता है. इसका स्वाद मीठा होता है.

2 पैसे से 300 रुपये तक

ArarotGoogle

1820 के दशक में 2 पैसे में 5 किलो मिलने वाला अरारोट 2022 तक आते आते 120 रुपये किलो हो गया है. ऑनलाइन तो कहीं कहीं इसकी कीमत 300 रुपये किलो तक भी है. अलग अलग भाषाओं में इसके अलग अलग नाम हैं. जैसे कि  हिन्दी में इसे अरारोट कहते हैं तो कई जगह तीखुर भी कहा जाता है. वहीं मराठी में इसे आरारूट, बंगला में ओरारूट और तवक्षीर, गुजराती में तवखार और अरारोट, अंग्रेज़ी में ऍरोरूट और वेस्ट इण्डियन भाषा में ऍरोरूट कहा जाता है.

अरारोट केवल पेट भरने के ही काम नहीं आता बल्कि इसके फायदे भी चमत्कारी हैं. जैसे कि ये :

ArarotGoogle

1. रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है.

2. पाचन संबंधी समस्याओं को कम करने में सहायक होता है. इसमें पाया जाने वाला स्टार्च पेट दर्द और कब्ज की परेशानी से राहत दिला सकता है.

3. ग्लूटेन रहित उत्पादों में से एक माना जाने वाला अरारोट सीलिएक रोग और ग्लूटेन एलर्जी के जोखिम को कम कर सकता है

4. अरारोट पाउडर में कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स होने के कारण यह शरीर में कार्बोहाइड्रेट को तेजी से ग्लूकोज में नहीं बदलता है, इसलिए इसे मधुमेह के लिए अच्छा माना जाता है. हालांकि मधुमेह में इसके सेवन से पहले डॉक्टर की सलाह जरूरी है.

 5. अरारोट में मौजूद फ्लेवोनॉयड से हृदय संबंधित समस्याओं से बचाव में मदद मिल सकती है. इसमें पोटेशियम की अच्छी मात्रा होती है और एक शोध के अनुसार, पोटेशियम उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करके हृदय रोग के जोखिम जैसे कि धमनियों से संबंधित हृदय रोग और हार्ट फेलियर से बचाव कर सकता है.

6. माना जाता है कि अरारोट के सेवन से बढ़ती चर्बी और मोटापे की समस्या को भी कम किया जा सकता है. इसका कारण है कि इसमें भरपूर मात्रा में फाइबर होता है, जिसे मोटापे कम करने में सहायक माना जाता है.

7. वहीं, सुपाच्य होने के कारण इसे बुखार के मरीजों और घायल व्यक्तियों को दिया जा सकता है.

फ़ायदों के साथ साथ इसके कुछ नुकसान भी हैं. जैसे कि :

सुरक्षित माना जाने वाला अरारोट अधिक मात्रा में सेवन के बाद हानिकारक हो सकता है. एक रिसर्च के दौरान दो कोरियाई महिलाओं में अरारोट जूस के सेवन के बाद लिवर से संबंधित समस्या पाई गई. इस समस्या के कारण महिलाओं में मतली, उल्टी और पीलिया जैसे लक्षण देखे गए. ऐसे में अरारोट के नुकसान से बचने के लिए इसका सेवन करने से पहले चिकित्सक से परामर्श करना बेहतर होगा.