लगभग 10 साल से चल रहे रेप केस में आसाराम को उम्र कैद की सजा सुनाई गई है. इस मामले में सोमवार को गुजरात की गांधीनगर सेशन कोर्ट ने आसाराम को दोषी करार दिया था जिसके बाद अदालत ने मंगलवार को सूरत की एक महिला से रेप के मामले में 81 साल के आसाराम को उम्रकैद की सजा सुनाई. बता दें कि इससे पहले भी आसाराम को जोधपुर कोर्ट ने 25 अप्रैल 2018 को यूपी की एक नाबालिग से रेप के मामले में आसाराम को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. तब से वह जोधपुर की जेल में बंद है.
पीड़िता को 10 साल बाद न्याय तो मिल गया लेकिन सवाल ये है कि आखिरकार इतने गवाहों और सबूतों के बावजूद आसाराम को सजा मिलने में इतना लंबा वक्त क्यों लगा? इस सवाल का जवाब जानने के लिए आपको इस पूरे मामले को समझना पड़ेगा. तो चलिए जानते हैं कि इस मामले में अभी तक क्या हुआ :
पीड़िता ने बताई थी उस दिन की कहानी
सूरत की दो बहनों ने आसाराम और उसके बेटे नारायण साईं पर दुष्कर्म का आरोप लगाया था. बड़ी बहन ने आसाराम के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी और छोटी ने उसके बेटे नारायण साईं पर. बड़ी बहन ने आसाराम पर उस दिन की घटना बताते हुए कहा था कि, “ये गुरु पुर्णिमा का दिन था जब आसाराम ने उसे वक्ता के रूप में चुना था. इसके बाद उसे आसाराम के फार्म हाउस शांति वाटिका में बुलाया गया. आश्रम का एक अन्य व्यक्ति पीड़िता को फार्म हाउस ले गया. जहां आसाराम ने हाथ-पैर धोकर उसे कमरे के अंदर बुलाया.”
महिला ने आरोप लगाया कि इसके बाद आसाराम ने महिला को घी से सिर की मालिश करने को कहा. मालिश के दौरान आसाराम ने उसके साथ गंदी हरकतें करनी शुरू कर दी. जब पीड़िता ने भागने की कोशिश की तो आसाराम ने उसके साथ मारपीट की. इसके बाद आसाराम ने उसके साथ जबरन दुष्कर्म किया.
उस समय पुलिस ने इस मामले में आसाराम के खिलाफ चार्जशीट फाइल की थी लेकिन लंबे समय से इस मामले में ट्रायल नहीं हुआ था. बड़ी बहन की शिकायत गांधीनगर ट्रांसफर होने के कारण आसाराम पर गांधीनगर में मुकदमा चल रहा था, जिसमें सोमवार को सालों बाद कोर्ट ने आसाराम को दोषी करार दिया है.
मामले में हैरान कर देने वाले मोड़ तब आए जब पीड़ित परिवार और गवाहों पर एक के बाद एक हमले होने लगे.
- 28 फरवरी, 2014 को सूरत दोनों पीड़ित बहनों में से एक के पति पर जानलेवा हमला हुआ.
- इस हमले के 15 दिन बाद ही आसाराम के वीडियोग्राफर राकेश पटेल पर भी जानलेवा हमला हुआ, जो इस केस में गवाह था.
- इसके कुछ दिनों बाद ही मामले के गवाह दिनेश भगनानी पर सूरत के एक कपड़ा मार्केट में हमला हुआ. दिनेश पर तेजाब फेंका गया था. संयोग से ये तीनों गवाह हमले में बच गए.
- लेकिन इसी मामला के एक गवाह अमृत प्रजापति को अपनी जान गंवानी पड़ी. दरअसल, 23 मार्च 2014 को अमृत को गोली मार दी गई. इस हमले के 17 दिन बाद अमृत की मौत हो गई थी.
- वहीं, एक अन्य गवाह अखिल गुप्ता की जनवरी 2015 में मुजफ्फरनगर में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
- इस घटना के एक महीने बाद, आसाराम के निजी सहायक के रूप में काम करने वाले राहुल सचान पर कोर्ट परिसर में ही हमला किया गया. राहुल जोधपुर कोर्ट में गवाही देने पहुंचा था, इसी दौरान कोर्ट परिसर में उस पर जानलेवा हमला हुआ. राहुल सचान इस हमले में तो बच गए लेकिन 25 नवंबर 2015 को वो ऐसे लापता हुए कि अब तक उनका कोई सुराग न मिल पाया.
- गवाहों पर हमलों का सिलसिला यहीं नहीं रुका. इसके बाद 13 मई 2015 को पानीपत में महेंद्र चावला पर हमला हुआ जिसमें उनकी जान बच गई. इसके तीन महीने बाद इस मामले के एक अन्य गवाह 35 वर्षीय कृपाल सिंह की जोधपुर में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. कृपाल सिंह ने जोधपुर कोर्ट में पीड़िता के पक्ष में गवाही दी थी.
पहले से काट रहा है उम्र कैद की सजा
सूरत की महिला शिष्य से रेप के मामले में उम्र कैद की सजा मिलने से पहले भी आसाराम जेल में उम्र कैद की सजा काट रहा था. 10 साल से जेल में बंद आसाराम के खिलाफ दुष्कर्म का यह मामला 22 साल पुराना है. अक्टूबर 2013 में अहमदाबाद के चांदखेड़ा थाने में इसे लेकर FIR दर्ज हुई थी. FIR के अनुसार, एक महिला आसाराम के अहमदाबाद शहर के बाहर बने आश्रम में 2001 से 2006 तक रही और इस दौरान उसके साथ कई बार दुष्कर्म किया गया. जुलाई 2014 में पुलिस ने इस मामले में चार्जशीट दाखिल की थी.
तांगा चलाने वाला असुमल कैसे बना आसाराम?
चौथी क्लास तक पढ़े आसाराम का एक समय देश का सबसे बड़ा अध्यात्म गुरु बनना और फिर अरबों रुपयों का सम्राज्य खड़ा करना, हैरानी की बात लगता है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार लोगों को सच्चाई और धर्म का ज्ञान देने वाले आसाराम के पास है 2300 करोड़ रुपये से ज्यादा की काली दौलत. आसाराम का ये सफर किसी चमत्कार से कम नहीं है. ये जानना दिलचस्प रहेगा कि कभी तांगा चलाने वाला असुमल लाखों लोगों का गुरु आसाराम कैसे बना और कैसे अरबों का साम्राज्य खड़ा कर दिया.
पाकिस्तान में जन्मा, अहमदाबाद में पला बढ़ा
1941 में सिंध, पाकिस्तान के बेरानी गांव में जन्मे आसाराम का असली नाम असुमल हरपलानी है. 1947 में जब देश का बंटवारा हुआ तो आशुमल अपने परिवार के साथ अहमदाबाद चला आया और यहीं बस गया. एक साधारण परिवार में पले-बढ़े असुमल ने तांगा चलाने से लेकर साइकिल दुकान की में नौकरी तक का काम किया. असुमल ने 1960 में खुद को कच्छ के एक संत लीला शाह बाबा का शिष्य घोषित कर दिया. उसका दावा था कि लीला शाह बाबा ने ही उसे आसाराम नाम दिया है. इसके बाद 1972 में आसाराम ने अहमदाबाद से दस किलोमीटर दूर मोटेरा गांव के पास साबरमती नदी के किनारे अपनी छोटी सी झोपड़ी बनाई.
ऐसे खड़ा किया 400 आश्रम का साम्राज्य
मीडिया रिपोर्ट्स के मानें तो आसाराम ने अपने प्रवचन, देशी औषधि और भजन-कीर्तन से गुजरात के गांवों के गरीब, पिछड़े और आदिवासी लोगों को अपनी तरफ आकर्षित किया. बाद में धीरे-धीरे इसका प्रभाव गुजरात के शहरी क्षेत्रों के मध्यम वर्ग में भी बढ़ने लगा. शुरुआती वर्षों में आसाराम के प्रवचन के बाद प्रसाद के नाम पर मुफ्त भोजन दिया जाता था.
आसाराम के फॉलोअर्स की संख्या धीरे-धीरे बढ़ने लगी और गुजरात के कई शहरों और देश के विभिन्न राज्यों में भी उसके आश्रम खुलने लगे. दो-तीन दशकों में आसाराम और उनके बेटे नारायण साईं ने मिलकर देश-विदेश में 400 आश्रमों का साम्राज्य खड़ा कर लिया था. जैसे-जैसे आश्रमों और अनुयायियों की संख्या बढ़ती गई, आसाराम की संपत्ति बढ़ने लगी. उसके करीब 10 हजार करोड़ की संपत्ति बताई गई थी.