Ashok Gehlot News: फंस गया ‘जादूगर’, साथ छोड़ रहे विधायक, सीएम की कुर्सी भी मझधार में

Rajasthan News: हिन्दी में एक कहावत है कि चौबे जी छब्बे बनने निकले थे लेकिन दुबे बनकर रह गए। यानी प्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे गहलोत सीएम रहते हुए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी संभालने के लिए रवाना हुए थे। अब ना तो राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी मिलने वाली है और मुख्यमंत्री की कुर्सी भी खतरे में पड़ती दिख रही है। जानिए पूरा मामला।
rajasthan
जयपुर: राजस्थान के सियासी घमासान पर पेवेलियन में बैठकर फिल्डिंग का आनन्द ले रहे ‘जादूगर’ की मुश्किलें अब बढ़ने वाली है। सचिन पायलट को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने से रोकने के लिए अशोक गहलोत ने अपने चहेते मंत्री शांति धारीवाल से बॉलिंग करवाई। रविवार को धारीवाल ने यॉर्कर फेंका लेकिन सचिन पायलट नहीं डिगे। अब यह बॉल थर्ड अम्पायर यानी आलाकमान के पाले में है। आलाकमान ने रविवार 25 सितंबर को जयपुर में हुए सियासी घटनाक्रम को गंभीरता से लेते हुए पार्टी पर्यवेक्षकों से लिखित रिपोर्ट मांगी है। यही नहीं अब आलाकमान सख्त एक्शन लेने के मूड में है। वहीं खबर है कि गहलोत के समर्थन में आवाज बुलंद करने वाले कई विधायक अब छिटकने लगे हैं। यही नहीं कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर भी पार्टी नेतृत्व नए चेहरे की तलाश में जुट गया है। यानी सीएम गहलोत को जोर झटका लगा है।

कांग्रेस अध्यक्ष की रेस से लगभग बाहर माने जा रहे गहलोत
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के लिए 22 सितंबर को नोटिफिकेशन जारी हो चुका। 24 सितंबर से नामांकन प्रक्रिया भी शुरू हो गई। आलाकमान के निर्देश के बाद गहलोत 28 सितंबर को नामांकन दाखिल करने वाले थे। इसी बीच यह खेला हो गया। आलाकमान सचिन पायलट को नए मुख्यमंत्री के रूप में फाइनल करने वाले थे। इसी दरमियान गहलोत समर्थित विधायकों ने आलाकमान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। 92 विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को त्याग पत्र सौंप दिए। इस हरकत से नाराज आलाकमान ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए गहलोत के बजाय दूसरे नाम पर विचार करना शुरू कर दिया है। सूत्रों के मुताबिक, आलाकमान केसी वेणुगोपाल, मल्लिकार्जुन खड़गे, दिग्विजय सिंह और एकाध अन्य नेताओं के नाम पर विचार कर रहे हैं।

चौबे जी छब्बे बनने निकले और दुबे बनकर रह गए!
हिन्दी में एक कहावत है कि चौबे जी छब्बे बनने निकले थे लेकिन दुबे बनकर रह गए। यानी प्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे गहलोत सीएम रहते हुए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी संभालने के लिए रवाना हुए थे। अब ना तो राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी मिलने वाली है और मुख्यमंत्री की कुर्सी भी खतरे में पड़ती दिख रही है। कांग्रेस आलाकमान को कोई आंख दिखाए, पार्टी में रहकर ऐसा करना संभव नहीं है। रविवार को खेला गया खेल गहलोत के लिए महंगा साबित हो रहा है। रोज मीडिया में बयान देने और सोशल मीडिया पेज पर अपनी बात रखने वाले गहलोत बीते दो दिन से साइलेंट मूड में हैं।

गहलोत समर्थित कई विधायक अब हाईकमान के पक्ष में
गहलोत समर्थित कई विधायक अब हाईकमान के फैसले के पक्ष में आ गए हैं। रविवार को जिन विधायकों ने शांति धारीवाल और महेश जोशी के कहने पर इस्तीफे दिए थे। वे विधायक अब गहलोत गुट से छिटकने लगे हैं। रविवार शाम को बगावत की बैठक में शामिल होने वाले विधायक इंदिरा मीणा, जितेन्द्र सिंह, मदन प्रजापत और संदीप यादव ने 24 घंटे के भीतर अपना विचार बदल दिया। इनका कहना है कि वे हाईकमान के फैसले के साथ हैं। मदन प्रजापत ने तो साफ कह दिया कि सचिन पायलट को अगर मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है तो इसमें कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए।

विधायक इंदिरा मीणा का कहना है कि उन्हें विधायक दल की बैठक से पहले धारीवाल के बंगले पर बुलाया गया। वहां एक पेपर पर दस्तखत करवाए गए। उस कागज पर क्या लिखा था, यह तो पढ़ा ही नहीं था। इंदिरा मीणा ने साफ कहा कि सचिन पायलट से हमारा कोई विरोध नहीं है। वे मुख्यमंत्री बने तो हमारे लिए अच्छा है। जितेन्द्र सिंह ने भी यही कहा कि धारीवाल के बंगले पर बुलाकर इस्तीफा लिखे कागज पर दस्तखत कराना ठीक नहीं है। मंगलवार सुबह संदीप यादव ने भी वीडियो जारी करके अपना पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि वे आलाकमान के फैसले के साथ हैं।

दिव्या मदेरणा और राजेन्द्र गुढ़ा पहले ही कर चुके स्पष्ट
कांग्रेस की तेज तर्रार नेता दिव्या मदेरणा ने गहलोत गुट की ओर से उठाए गए कदम को गलत करार दिया है। रविवार को हुए घटनाक्रम को लेकर दिव्या सोमवार को काफी आक्रामक नजर आई। उन्होंने साफ किया कि वे ना तो गहलोत गुट के साथ हैं और ना ही पायलट गुट के साथ। वे किसी गुट में नहीं है। वे तो सिर्फ हाईकमान के फैसले के पक्ष में है। दिव्या से स्पष्ट कहा कि जब कांग्रेस हाईकमान के आदेश पर विधायक दल की बैठक बुलाई गई तो धारीवाल के बंगले पर बैठक करने का क्या औचित्य था। यह कदम गलत है। सभी विधायकों को हाईकमान के फैसले को स्वीकार करना चाहिए था।

राजेन्द्र गुढ़ा ने भी स्पष्ट कहा था धारीवाल के सरकारी बंगले पर जो नौटंकी हुई। उसका नतीजा बहुत बुरा होगा। गुढ़ा ने कहा कि सिर्फ तीन-चार लोगों ने सारे विधायकों को कब्जे में कर रखा है। जिन विधायकों ने धारीवाल और महेश जोशी के बहकावे में आकर इस्तीफे दिए हैं। उनमें कोई भी विधायक बिना टिकट के सरपंच का चुनाव भी नहीं जीत सकते।