ज्योतिष: सूक्ष्म दृक गणित से गणना करने वाला देश का पहला पंचांग बना था

भारत में विदेशी आक्रमणकारियों ने भारतीय ज्योतिष परंपरा को भी संस्कृत साहित्य और तत्कालीन दर्शन की तरह तहस नहस कर दिया था। बावजूद इस भारतीय दर्शन, धर्म, संस्कृति, साहित्य की एक खासियत यह रही कि वह लाख कोशिशों के बाद भी अपने को जैसे तैसे सहेजे रही। पेश है सोमदत्त शर्मा की रिपोर्ट…

सूक्ष्म दृक गणित से गणना करने वाला देश का पहला पंचांग बना था

अनादिकाल से ही मानव जीवन को ज्योतिष किसी न किसी तरह से प्रभावित करता रहा है। यही वजह है कि ज्योतिष को मनीषियों ने दर्शन के अंतर्गत अनुक्रमित किया है। ज्योतिष को लेकर अगर भारतीय जनमानस की बात की जाए तो वह ज्योतिष के माध्यम से अपने अनसुलझे जीवन के रहस्यों को सुलझाता रहा है। ज्योतिष के बारे में साधारण शब्दों में कहा जाए तो वेदों में वैदिक ज्ञान का नेत्र ज्योतिष है। यह मानव समाज को बदलती परिस्थितियों में गणितीय ढंग से देखने परखने की क्षमता प्रदान करता है। ज्योतिष ठीक वैसे ही हमारे जीवन को कठिनाइयों की पूर्व छायाओं से परिचित कराकर हमें सहजता की ओर ले जाता है जैसे अंधेरे में टॉर्च की रोशनी किसी भी यात्री को उसकी दिशा का ज्ञान करवाती है। भारत में विदेशी आक्रमणकारियों ने भारतीय ज्योतिष परंपरा को भी संस्कृत साहित्य और तत्कालीन दर्शन की तरह तहस नहस कर दिया था। बावजूद इस भारतीय दर्शन, धर्म, संस्कृति, साहित्य की एक खासियत यह रही कि वह लाख कोशिशों के बाद भी अपने को जैसे तैसे सहेजे रही। पेश है सोमदत्त शर्मा की रिपोर्ट…

स्थूल नहीं, सूक्ष्म गणना पर आधारित है पंचांग

मौजूदा संपादक इंजीनियर सुधाकर शर्मा एवं सह संपादक उनके पुत्र रोहिताश्व शर्मा ने बताया कि तब “श्रीविश्वविजय पंचागंम” की अक्षांश और देशांतर रेखाएं भारत की राजधानी दिल्ली की थीं। हालांकि, भारतीय स्टैंडर्ड टाइम घंटे-मिनटों में दिए तिथि नक्षत्र, योग करण भद्राकाल इत्यादि का समय सार्वदेशिक रहता था। ‘श्रीविश्वविजय पंचांगम’ की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि यह पंचांग उत्तर भारत का उस समय का एकमात्र ऐसा पंचांग था जो सूक्ष्म दृक गणित गणना से ज्योतिषीय आंकड़े प्रस्तुत करता था। दृक गणित से अभिप्राय ऐसी गणना पद्धति से होता है जो आकाश में सूर्य चंद्रमा आदि जो भी आकाशीय पिंड जहां स्थित है वहीं भेदशाला द्वारा दिखाई दे। ‘श्रीविश्वविजय पंचागम’ की दूसरी विशेषता यह थी कि यह पंचांग सूक्ष्म गणना पर आधारित था जबकि उस समय जो पंचांग उत्तर भारत से प्रकाशित होते थे वे सब स्थूल गणना पर आधारित होते थे। ‘श्रीविश्वविजय पंचागम’ की यही विशेषता आज भी इसे अन्य पंचांगों से अपने को अलग करती है।

चर्चित ग्रंथ और ज्योतिषी

श्रीविश्वविजय पंचांगम"
हिमाचल प्रदेश के कुल गुरु आचार्य दिवाकर दत्त शर्मा का “फलादेश कल्पतरू ” इस दिशा में बहुचर्चित ग्रंथ है। एन आचार्य प्रियव्रत शर्मा द्वारा संपादित “श्रीविश्वविजय पंचांगम”और ज्योतिष के क्षेत्र में लिखे ग्रंथ अत्यंत उपयोगी है। पंडित हरदेव शर्मा त्रिवेदी ज्योतिषाचार्य द्वारा संचालित “श्रीविश्वविजय पंचांगम” जिसका संपादन अब उनके सुपुत्र सुधाकर शर्मा कर रहे हैं, ज्योतिष के क्षेत्र में उल्लेखनीय है। ज्योतिष क्षेत्र में प्रो. केशव शर्मा, डॉ. प्रेम शर्मा पूर्व निदेशक भाषा एवं संस्कृति विभाग, सुंदरनगर जिला मंडी से आचार्य हरिदत्त शर्मा, आचार्य हेम प्रभ शर्मा प्रदेश के ज्योतिष शास्त्र के सशक्त हस्ताक्षर हैं।

पं. नेहरू को भी बताया था उनका भविष्य

पं. नेहरू को भी बताया था उनका भविष्य
सुधाकर शर्मा ने ज्योतिष को लेकर एक रोचक प्रसंग दीवार पर टंगी एक तस्वीर की ओर संकेत करते हुए सुनाया। कहा कि जो तस्वीर दीवार पर टंगी है यह देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की है, जिसमें उनके साथ बीच में उनके परिवार के पंडित गोस्वामी गिरधारी लाल हैं और सिर पर पगड़ी वाले उनके पिता हैं। असल में जब जवाहरलाल नेहरू को अपने कुल पंडित से पता चला था कि उनके पिता पंडित हरदेव शर्मा त्रिवेदी दिल्ली में आए हैं तो उन्होंने उन्हें अपने निवास स्थान त्रिमूर्ति भवन बुलवा अपने स्वास्थ्य के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की थी। यह तस्वीर 15 दिसंबर 1963 की है।

हस्तरेखाओं से जन्मकुंडली बना देते हैं लेखराज शर्मा

प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य कैप्टन लेखराज शर्मा
प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य कैप्टन लेखराज शर्मा हिमाचल के हस्तरेखा विशेषज्ञ हैं। हस्तरेखा के आधार पर जातक की जन्मकुंडली बना देते हैं। भारत में इस प्रकार की योग्यता रखने वाले ये एक मात्र ज्योतिषी हैं। वे लोगों की हस्तरेखाओं को देखकर उनकी जन्म तिथि, जन्म समय निकालकर कुंडली निर्माण करके न केवल ज्योतिष शास्त्र की सत्यता स्थापित की है अपितु यह भी सिद्ध कर दिया है कि जातक की हस्तरेखाओं का उसे प्रभावित करने वाले ग्रह नक्षत्रों से सीधा संबंध होता है। द्रुब्बल गांव में जन्मे लेखराज शर्मा का बचपन ज्योतिष के सिद्धांतों को सीखते बीता।

पहले सरकारी स्कूल में अध्यापक रहे, फिर भारतीय सेना में बतौर धर्म शिक्षक रहते श्रीलंका, अंगोला और भूटान गए, पर मन ज्योतिष में रमा रहा। इन्होंने एमए के बाद 1979 में बनारस विश्वविद्यालय से पीएचडी की। राष्ट्रपति अवार्ड से सम्मानित हो चुके हैं। वर्तमान में जोगिंद्रनगर की मसोली पंचायत के झलवान गांव में रहते हैं। इनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए साहित्य रत्न, हिमाचल रत्न, भारत गौरव, ज्योतिष शिरोमणि आदि पुरस्कार मिल चुके हैं। वह भारतीय सेना में कैप्टन रैंक पर एक धर्मगुरु रह चुके हैं। इनके पास देशभर के बड़े नेता अपना राजनीतिक भविष्य दिखाने के लिए आते हैं। कई वॉलीबुड सितारे भी अपनी कुंडलियां बनाने पहुंचते हैं।

सोलन में 1944 से  हुई ‘श्रीविश्वविजय पंचागम’ की शुरुआत

श्री ज्योतिष्मती व श्री स्वाध्याय
विदेशी आक्रमणों के चलते जब भारत में ज्योतिष समाप्त प्राय: हो गया था तो उत्तर भारत में ग्रह गोचर के आधार पर पहले पंचांग का शुभारंभ हुआ। वर्ष 1944 में बघाट रियासत के सोलन से स्वर्गीय पंडित हरदेव शर्मा त्रिवेदी ने ‘श्रीविश्वविजय पंचांगम’ का संपादन और प्रकाशन प्रारंभ किया। उस वक्त पंचांग का यह प्रथम अंक दिल्ली से मुद्रित हुआ था। आज भी ‘श्रीविश्वविजय पंचांगम’ का कार्यालय ज्योतिषमती निकेतन, पैलेस रोड सोलन में वहीं स्थित है जहां से पंचांग का प्रथम संस्करण प्रकाशित हुआ था।

उस समय के बघाट रियासत के राजा दुर्गा सिंह के राज ज्योतिषी पंडित मुकुल वल्लभ होते थे और पंडित हरदेव शर्मा त्रिवेदी उनके सहयोगी। पंडित हरदेव शर्मा त्रिवेदी ने उज्जैन और जयपुर से ज्योतिष का गहन अध्ययन किया था। इनके वंशज राजस्थान से बघाट रियासत में आए थे।

देशभर में बिकती थीं एक लाख कापियां : पं. सुधाकर शर्मा, मौजूदा संपादक

पं. सुधाकर शर्मा, संपादक
संपादक इंजीनियर सुधाकर शर्मा बताते हैं कि एक समय वह भी था जब 70 और 80 के दशक में “श्रीविश्वविजय पंचागंम” की एक लाख प्रतियां मुद्रित होती थीं। वे आगे बताते हैं कि एकमात्र यही एक ऐसा पंचांग है जो आज भी पाक्षिक फलादेश प्रकाशित करता है। शेष पंचांगों में पाठकों को यह पढ़ने को नहीं मिलता। उनका दावा है कि विश्व भर में भूकंप की संभावित तिथियों को आज भी इस पंचांग में दर्शाया जाता है जो अक्सर सही होती हैं। जबकि, अन्य पंचांग किसी कारणवश यह तिथियां नहीं दे पाते।

ज्योतिष की दो धाराएं
सुधाकर शर्मा ज्योतिष के बारे में बताते हैं कि भारतीय ज्योतिष परंपरा में ज्योतिष की दो धाराएं मुख्य रूप से भारतीय जनमानस में प्रवाहित होती रही हैं। पहली गणितीय ज्योतिष और दूसरी फलित ज्योतिष। फलित ज्योतिष की दो उप धाराएं हैं- जातक और मेदिनी। आज भी उच्चकोटि का ज्योतिष गणितीय ज्योतिष ही माना जाता है। गणितीय ज्योतिष पूरी तरह से गणना पर आधारित होने के कारण इसकी हर भविष्यवाणी सत्यता की कसौटी पर शत प्रतिशत ख उतरती रही है। सुधाकर शर्मा ने बताया कि उनके पिता पंडित हरदेव शर्मा त्रिवेदी बहुआयामी व्यक्तित्व थे। उनकी ज्योतिष में ही गहन रुचि ही नहीं थी। उन्होंने अपने समय में जन जागरण के लिए स्वतंत्रता आंदोलन में वैचारिक सहयोग करते हुए 1940 में त्रैमासिक पत्रिका श्रीस्वाध्याय का प्रकाशन, संपादन भी आरंभ किया था। बाद में इस पत्रिका का नाम बदलकर 1957 में ज्योतिषमती कर दिया गया। इस प्रकाशन उनके जीवित रहते हुए वर्ष 1994 तक निरंतर होता रहा। इस पत्रिका के मुख्य विषय भारतीय दर्शन, वैदिक दर्शन, आयुर्वेद, ज्योतिष, व्रत-पर्व, निर्णय मेदिनी, भविष्यवाणी, व्यापारिक तेजी-मंदी हुआ करते थे।

हिमाचली जनजीवन में ज्योतिष: डॉ. प्रेमलाल गौतम

देवों और वेदों की भूमि हिमाचल प्रदेश का भारतीय प्राच्य साहित्य में उल्लेख उपलब्ध है। विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद की प्रथम ऋचा-“अग्रिमीले पुरोहितं यज्ञस्य देव मृत्विजम होतारं रत्नधातमम” में यज्ञ और पुरोहित की महत्वपूर्ण भूमिका को स्पष्ट प्रतिपादित किया है। पुरोहित को यज्ञों के शुभ मुहूर्त निर्धारण के लिए ज्योतिष नामक वेदांग की नितांत आवश्यकता अनुभव हुई ताकि यह शास्त्र यशों और अन्य सामाजिक कार्यों को सफलतापूर्वक संपादन के लिए काल-विधान का निर्देश कर सके। वेदभाषा एवं भाव दोनों दृष्टियों से सामान्य जन बोधगम्य न होने से उसके अर्थ और उसके कर्मकांड के प्रतिपादन में वेदांग शाह प्रतीत हुए।

वेदांगम छह हैं- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद और ज्योतिष। इन सभी का वेदार्थ प्रतीति में निजी वैशिष्ठ्य है। ग्रह गणित ज्योतिषम के अनुसार ज्योतिष में सूर्य, चंद्र, ग्रह और नक्षत्रों की गति का निरीक्षण-परीक्षण और विकेंचन होता है। सौर और चंद्र मासों की गणना और यज्ञिय कार्यों के लिए चंद्रमासादि का वैशिष्ठ्य देखा जाता है। यज्ञ के लिए समय की शुद्धि की नितांत आवश्यकता रहती है। प्रात:, सायंकाल प्रत्येक अग्निहोत्री को अग्नि में दुग्ध या घृत से हवन करने के नियम ज्योतिष में निहित हैं।

नक्षत्र, तिथि, पक्ष-मास, गरंतु और संवत्सर काल के समस्त खंडों के साथ यज्ञ का विधान वेदों में प्रतिपादित किया गया है। ज्योतिष वेद-पुरुष का पक्ष है। जिस प्रकार मयूर की शिखा उसके सिर पर ही रहती है, उसी प्रकार वेदांगों में ज्योतिष शास्त्र को सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया गया है।

हिमाचल में ज्योतिष, कर्मकांड और तंत्र विद्या का प्रचुर प्रचार-प्रसार है। देव भूमि की संज्ञा इसे अनायास ही नहीं मिली है। यहां की मिट्टी में संस्कृति और संस्कार बहुत गहनता से रचे बसे हैं। यहां के पुरोहित समाज ने इस भूमि के लोगों को ज्योतिष कर्मकांड औरे पुराणों की संस्कृति में अनुस्यूत किया है। यहां के दैनिक जीवन से जुड़े तीज-त्योहार, व्रत, षोडश संस्कारों के सफल संपादन के लिए ज्योतिष परम उपयोगी, आशा, श्रद्धामयी रहा है। -डॉ. प्रेमलाल गौतम, पूर्व प्राचार्य, संस्कृत कालेज सोलन

प्रदेश के कुछ प्रसिद्ध ज्योतिषी

ज्योतिष

सोलन जिला से स्वर्गीय संतराम शर्मा सुबाथू उनके आत्मज डॉ. महीधर शर्मा, दाड़लाघाट से स्वर्गीय चंद्रमणि वाशिष्ठ,  बोले तारे स्तंभ  के लेखक डॉ. मस्तराम शर्मा ज्योतिष के क्षेत्र में बहुश्रुत विद्वान है। सोलन शहर से ही राकेश शर्मा मृत्युज्ञय ज्योतिष कार्यालय संचालक, पंडित रविदत्त शर्मा आदित्य ज्योतिष कार्यालय सोलन, पंडित ओम प्रकाश शर्मा, आचार्य ईशान शर्मा पड़ग सोलन, वेद प्रकाश शर्मा त्राशड़ी देवठी, डॉ. नरेश शर्मा, आचार्य किशोरी लाल शर्मा, डॉ. नंदलाल शर्मा, डॉ. नरोत्तम शर्मा प्राचार्य शक्ति संस्कृत महाविद्यालय नयनादेवी, बिलासपुर से डॉ. ज्ञानेश्वर शर्मा, डॉ. रमेश शर्मा, डॉ. मुकेश शुक्ला, हिमाचल के विद्वान लाल बहादुर शास्त्री विद्या पीठ संस्कृत विश्वविद्यालय दिल्ली के ज्योतिष विभागाध्यक्ष प्रो. प्रेम कुमार, आचार्य सतीश शर्मा भाग्योदय सोलन, कंडाघाट सोलन से राजीव शर्मा शूर समेत अनेक विद्वान ज्योतिषशाला के ज्ञान विज्ञान से हिमाचल प्रदेश और देश को लाभान्वित कर रहे हैं।