2022-09-03
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पहले सरकारी स्कूल में अध्यापक रहे, फिर भारतीय सेना में बतौर धर्म शिक्षक रहते श्रीलंका, अंगोला और भूटान गए, पर मन ज्योतिष में रमा रहा। इन्होंने एमए के बाद 1979 में बनारस विश्वविद्यालय से पीएचडी की। राष्ट्रपति अवार्ड से सम्मानित हो चुके हैं। वर्तमान में जोगिंद्रनगर की मसोली पंचायत के झलवान गांव में रहते हैं। इनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए साहित्य रत्न, हिमाचल रत्न, भारत गौरव, ज्योतिष शिरोमणि आदि पुरस्कार मिल चुके हैं। वह भारतीय सेना में कैप्टन रैंक पर एक धर्मगुरु रह चुके हैं। इनके पास देशभर के बड़े नेता अपना राजनीतिक भविष्य दिखाने के लिए आते हैं। कई वॉलीबुड सितारे भी अपनी कुंडलियां बनाने पहुंचते हैं।
उस समय के बघाट रियासत के राजा दुर्गा सिंह के राज ज्योतिषी पंडित मुकुल वल्लभ होते थे और पंडित हरदेव शर्मा त्रिवेदी उनके सहयोगी। पंडित हरदेव शर्मा त्रिवेदी ने उज्जैन और जयपुर से ज्योतिष का गहन अध्ययन किया था। इनके वंशज राजस्थान से बघाट रियासत में आए थे।
ज्योतिष की दो धाराएं
सुधाकर शर्मा ज्योतिष के बारे में बताते हैं कि भारतीय ज्योतिष परंपरा में ज्योतिष की दो धाराएं मुख्य रूप से भारतीय जनमानस में प्रवाहित होती रही हैं। पहली गणितीय ज्योतिष और दूसरी फलित ज्योतिष। फलित ज्योतिष की दो उप धाराएं हैं- जातक और मेदिनी। आज भी उच्चकोटि का ज्योतिष गणितीय ज्योतिष ही माना जाता है। गणितीय ज्योतिष पूरी तरह से गणना पर आधारित होने के कारण इसकी हर भविष्यवाणी सत्यता की कसौटी पर शत प्रतिशत ख उतरती रही है। सुधाकर शर्मा ने बताया कि उनके पिता पंडित हरदेव शर्मा त्रिवेदी बहुआयामी व्यक्तित्व थे। उनकी ज्योतिष में ही गहन रुचि ही नहीं थी। उन्होंने अपने समय में जन जागरण के लिए स्वतंत्रता आंदोलन में वैचारिक सहयोग करते हुए 1940 में त्रैमासिक पत्रिका श्रीस्वाध्याय का प्रकाशन, संपादन भी आरंभ किया था। बाद में इस पत्रिका का नाम बदलकर 1957 में ज्योतिषमती कर दिया गया। इस प्रकाशन उनके जीवित रहते हुए वर्ष 1994 तक निरंतर होता रहा। इस पत्रिका के मुख्य विषय भारतीय दर्शन, वैदिक दर्शन, आयुर्वेद, ज्योतिष, व्रत-पर्व, निर्णय मेदिनी, भविष्यवाणी, व्यापारिक तेजी-मंदी हुआ करते थे।
वेदांगम छह हैं- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद और ज्योतिष। इन सभी का वेदार्थ प्रतीति में निजी वैशिष्ठ्य है। ग्रह गणित ज्योतिषम के अनुसार ज्योतिष में सूर्य, चंद्र, ग्रह और नक्षत्रों की गति का निरीक्षण-परीक्षण और विकेंचन होता है। सौर और चंद्र मासों की गणना और यज्ञिय कार्यों के लिए चंद्रमासादि का वैशिष्ठ्य देखा जाता है। यज्ञ के लिए समय की शुद्धि की नितांत आवश्यकता रहती है। प्रात:, सायंकाल प्रत्येक अग्निहोत्री को अग्नि में दुग्ध या घृत से हवन करने के नियम ज्योतिष में निहित हैं।
नक्षत्र, तिथि, पक्ष-मास, गरंतु और संवत्सर काल के समस्त खंडों के साथ यज्ञ का विधान वेदों में प्रतिपादित किया गया है। ज्योतिष वेद-पुरुष का पक्ष है। जिस प्रकार मयूर की शिखा उसके सिर पर ही रहती है, उसी प्रकार वेदांगों में ज्योतिष शास्त्र को सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया गया है।
हिमाचल में ज्योतिष, कर्मकांड और तंत्र विद्या का प्रचुर प्रचार-प्रसार है। देव भूमि की संज्ञा इसे अनायास ही नहीं मिली है। यहां की मिट्टी में संस्कृति और संस्कार बहुत गहनता से रचे बसे हैं। यहां के पुरोहित समाज ने इस भूमि के लोगों को ज्योतिष कर्मकांड औरे पुराणों की संस्कृति में अनुस्यूत किया है। यहां के दैनिक जीवन से जुड़े तीज-त्योहार, व्रत, षोडश संस्कारों के सफल संपादन के लिए ज्योतिष परम उपयोगी, आशा, श्रद्धामयी रहा है। -डॉ. प्रेमलाल गौतम, पूर्व प्राचार्य, संस्कृत कालेज सोलन
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