दशहरा उत्सव में कोदरा की चाय बनी लोगों का आकर्षण

शरीर की कई बीमारियों के लिए रामबाण हैं कोदरा
प्रदर्शनी मैदान में चखने को मिल रहा काउंणी का स्वाद
पारंपरिक कोदरा, काउंणी और लाल चावल को उगाने के लिए किसान कर रहे पहल

कुल्लू : जिला कुल्लू के ढालपुर मैदान में जहां अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव मनाया जा रहा है तो वहीं विभिन्न विभागों की भी यहां पर प्रदर्शनी यहां चली हुई है। ऐसे में प्रदर्शनी मैदान में कोदरे की चाय भी जनता के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। इसके अलावा पारंपरिक अनाज भी लोगों को उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। वहीं किसानों का एक समूह लोगों को पारंपरिक अनाज उगाने के बारे में भी प्रेरित कर रहा है और मोटे अनाज के बीच भी उन्हें वितरित किए जा रहे हैं। दशहरा उत्सव में एक किसान के समूह द्वारा कृषि विभाग के स्टाल में इससे बने पकवान तैयार किए जा रहे हैं। मेले में आए पर्यटक व स्थानीय लोग इसका स्वाद ले रहे हैं। इतना ही नहीं इसको कैसे उगाया जाएगा और इसके क्या क्या लाभ इसके बारे में भी जानकारी प्रदान की जा रही हैं। वही, मोटे अनाज के बारे मव जागरूकता को लेकर भी किसानी के द्वारा नई पहल की है। जिसमे मोटे अनाज को लेकर प्रचार प्रसार पर बल दिया जा रहा हैं। प्रदर्शनी में मौजूद किसान नेक राम शर्मा ने बताया कि पुरानी फसलें कोदरा, काउंणी, चीणी, सिरयारा, काठू, लाल चावल, धान, बीथू उगाने के लिए किसानों को प्रेरित किया जा रहा हैं। वहीं, किसानों को भी थोड़े बीज उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि पुराने समय में परंपरागत फसलों के बीज तैयार करने की परंपरा थी, लेकिन पिछले कई वर्षों से न केवल खेती खत्म हो रही है, बल्कि बीज भी मुश्किल से मिल रहा है। इसी के चलते अब इन परंपरागत फसलों को फिर से उगाया जाएगा।

प्रदर्शनी मैदान में लगाए गए स्टॉल में कोदरे के आटे से बनी चाय और डोसा भी लोगों को उपलब्ध करवाया जा रहा है । इसके अलावा कोदरे का आटा, कांगनी सहित कई पारंपरिक अनाज भी लोगों को उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। ताकि इनका सेवन कर लोग अपने शरीर को स्वस्थ बना सके।

पौष्टिकता से भरपूर है यह परंपरागत फसलें
औषधीय गुणों वाले मोटे अनाज के उत्पादन की पुरानी परंपरा धीरे धीरे समाप्त हो रही है। इन फसलों में पौष्टिकता से भरपूर मात्रा में पाई जाती है। कोदरे का आटा दिल संबंधी रोग रक्तचाप, शुगर जैसी बीमारियों को ठीक करने में काफी सहायक माना जाता है। पौष्टिक तत्वों और प्रचुर कैल्शियम करने वाली परंपरागत कोदरा काउंणी की खेती को बचाने का विभाग प्रयास कर रहा है।

स्टॉल में उपस्थित किसान नेक राम शर्मा का कहना हैं कि अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव के दौरान मोटे अनाज कोदरे, काउंणी, सिरयारा से बने पकवान तैयार किए जा रहे है। इसके अलावा स्टाल में इसके बारे में जानकारी भी दी जा रही हैं। वह पारंपरिक फसलों के प्रति किसानों का रुझान हो इसके लिए हिमाचल प्रदेश में 10000 किसानों को भी अपने साथ जोड़ा गया है जो अब पारंपरिक फसलों की खेती भी कर रहे हैं।

वहीं, कोदरे की चाय का मजा लेने स्थानीय निवासी  राजेश शर्मा का कहना है कि जिला कुल्लू में भी पारंपरिक फसलों का उत्पादन किया जाता था। अब यहां पर आधुनिक तरीके से खेती की जा रही है। जिसमें कई केमिकल का उपयोग किया जाता है। ऐसे में स्टाल में जो पारंपरिक अनाज मिल रहा है उससे लोगों को भी सेहत में काफी फायदा मिलेगा।