Satish Mahana: कोर्ट से 3 साल की सजा मिलने के बाद यूपी विधानसभा अध्यक्ष ने आजम खान की सदस्यता तुरंत रद्द कर दी गई। इस पर आरएलडी के नेता जयंत चौधरी ने सवाल उठाते हुए पूछा कि इसी तरह के मामले में बीजेपी विधायक विक्रम सैनी की सदस्यता क्यों नहीं खत्म कर दी गई।
लखनऊ: सपा के वरिष्ठ नेता और रामपुर से विधानसभा चुनाव जीते आजम खान (azam khan news) की विधायकी जाने का मामला इस समय यूपी की राजनीति में सबसे अहम बना हुआ है। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग को सुझाव दिया कि आजम खान को सजा के खिलाफ अपील करने का समय दिया जाए। आजम खान के लिए इसे बड़ी राहत के तौर पर देखा जा रहा है। लेकिन इस पूरे मामले में जिस तेजी से यूपी विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना (satish mahana) ने आजम खान की विधानसभा की सदस्यता रद्द की उसके कारण उनकी खूब चर्चा हुई।
समाजवादी पार्टी की सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल के प्रमुख जयंत चौधरी ने सतीश महाना को इस मामले में लेटर लिखा। इसमें उन्होंने सवाल किया कि जितनी तेजी आजम खान की सदस्यता रद्द करने में दिखाई उतनी ही भाजपा विधायक विक्रम सैनी के केस में क्यों नहीं दिखाई।
जयंत ने उठाए सवाल
जयंत ने अपने लेटर में लिखा, ‘स्पेशल एमपी एमएलए कोर्ट में हेट स्पीच के मामले में आपके कार्यालय ने सपा के वरिष्ठ नेता आजम खान की सदस्यता तत्काल प्रभाव से रद्द कर दी। जनप्रतिनिधित्व कानून लागू करने की आप की सक्रियता की प्रशंसा की जानी चाहिए किंतु जब हम पूर्व में घटित ऐसे ही मामले में आपकी निष्क्रियता देखते हैं तो सवाल खड़ा होता है। क्या कानून की व्याख्या व्यक्ति और व्यक्ति के मामले में अलग-अलग रूप से की जा सकती है?’
विक्रम सैनी मामले का दिया हवाला
जयंत चौधरी ने आगे लिखा, ‘खतौली मुजफ्फरनगर से भाजपा विधायक विक्रम सैनी को 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगे के लिए स्पेशल एमपी एमएलए कोर्ट ने 11 अक्टूबर 2022 को जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत 2 साल की सजा सुनाई थी। लेकिन उस मामले में आपकी ओर से आज तक कोई पहल नहीं की गई।’
इस पर आया सतीश महाना का जवाब
जयंत चौधरी ने सवाल किया कि क्या सत्ताधारी दल और विपक्ष के विधायक के लिए कानून की व्याख्या अलग-अलग तरीके से की जा सकती है? इस पर सतीश महाना ने जवाबी लेटर भी लिखा। इसमें उन्होंने कहा, ‘सदन के किसी सदस्य को लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा आठ (3) के अन्तर्गत किसी भी न्यायालय द्वारा दंडित किये जाने पर उसकी सदस्यता निर्णय के दिनांक से स्वतः: समाप्त मानी जाएगी। सर्वोच्च न्यायालय ने इसी निर्णय में यह भी अवधारित किया है कि लोक प्रतिनिधित्व 1951 की धारा आठ (4) के अंतर्गत अपील करने के आधार पर ऐसे सदस्य को कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा।’ महाना ने जोर दिया कि विधानसभा अध्यक्ष की इस विषय में कोई भूमिका नहीं होती है।
विक्रम सैनी के मसले पर उनका कहना था कि यह काम विधानसभा का सचिवालय करता है, उसे अभी तक विक्रम सैनी मामले की आदेश की कॉपी नहीं मिल पाई इसलिए उन पर कार्रवाई नहीं हो सकी।
जवाब में जयंत चौधरी ने किया पलटवार
इसके जवाब में चौधरी ने अपने ट्वीट में लिखा, ‘उत्तर प्रदेश विधान सभा अध्यक्ष जी का पत्र प्राप्त हुआ। सदस्यता के प्रश्न पर उन्होंने स्पष्ट किया की सदन के अध्यक्ष की कोई भूमिका नहीं होती बल्कि जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत न्यायालय के द्वारा दण्डित करने पर स्वतः समाप्त होती है. बात साफ हो गई। विक्रम सैनी की सदस्यता समाप्त हो चुकी है।’
इतना ही नहीं जयंत चौधरी ने कहा, ‘दुर्भाग्य है भाजपा विधायक विक्रम सैनी के संदर्भ में 1 महीने बाद भी MP MLA कोर्ट के निर्णय की प्रति सचिवालय को प्राप्त नहीं हुई। इसलिए उनके स्थान को रिक्त घोषित नहीं कर पाए। विपक्ष के सदस्यों की सेवा त्वरित हो जाती है।’
यह था पूरा मामला
आजम खान को 27 अक्टूबर को भड़काऊ भाषण मामले में दोषी ठहराया गया था। इसके बाद रामपुर अदालत ने उन्हें तीन साल जेल की सजा सुनाई थी। इसके बाद 28 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश विधानसभा सचिवालय ने खान को सदन की सदस्यता के लिए अयोग्य ठहराने का ऐलान किया था। उप्र विधानसभा के प्रमुख सचिव ने कहा था कि विधानसभा सचिवालय ने रामपुर सदर सीट को रिक्त घोषित कर दिया है।