Azim Premji: 21 की उम्र में पढ़ाई छोड़ पिता की कंपनी से जुड़े, साबुन बनाने वाली कंपनी को IT कंपनी Wipro बना दिया

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21 साल का लड़का स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ रहा था। साल था 1966। इंजीनियरिंग के लास्ट सेमेस्टर में पढ़ रहे लड़के को 11 अगस्त को एक फोन आता है। दूसरी तरफ होती हैं उसकी मां गुलबानू। खबर आती है कि उसके पिता का निधन हो गया। लड़का पढ़ाई छोड़कर भारत लौट आता है और पिता की कंपनी जॉइन कर लेता है। और देखते ही देखते एक छोटी सी हाइड्रोजनेटिव कुकिंग फैट कंपनी को 8.5 अरब डॉलर टर्नओवर वाली ग्लोबल कंपनी बना देता है। हम बात कर रहे हैं अजीम प्रेमजी की।

अजीम प्रेमजी काफ़ी पहले विप्रो के चेयरमैन पद से इस्तीफा दे चुके है। लेकिन, पीछे मुड़ कर देखें तो पाएंगे कि उन्होंने तीव्रता, पेशेवर तरीकों, दिखावे-आडंबर से दूरी और मिडिल क्लास वैल्यू से अपनी कंपनी को सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया।

दोस्तों के बीच ‘प्रेमजी’ के नाम से मशहूर अजीम ने साल 1966 से 2019 तक विप्रो को लीड किया। एक कुकिंग ऑयल कंपनी को उन्होंने एक नया टर्न देते हुए साल 1982 में आईटी सर्विस की तरफ मूव किया और उसे हर दिन एक नई मंजिल फतह कराते रहे।

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हर बड़े आदमी के जीवन से किस्से जुड़े होते हैं तो प्रेमजी के भी कई किस्से देश-दुनिया में तैरते रहते हैं। इनमें ज्यादातर किस्से उनकी सादगी, वैल्यू और लोगों के लिए किए गए काम के हैं। कहा जाता है कि प्रेमजी बाहर जाने पर किसी होटल में न रुक ऑफिस गेस्ट हाउस में रुकते हैं। वह सफर भी इकॉनमी क्लास में ही करना पसंद करते हैं। एयरपोर्ट आने-जाने के लिए कभी-कभी ऑटो तक का यूज कर लिया करते हैं।

बिजली बचाने से लेकर बराबरी के हक तक…

कहा जाता है कि प्रेमजी बिजली बचाने पर खूब जोर देते हैं। कंपनी के कर्मचारी भी बिजली बंद करके ही ऑफिस छोड़ते हैं। एक किस्सा है कि एक बार विप्रो के एक कर्मचारी ने अपनी कार उस जगह पार्क कर दी, जहां प्रेमजी अपनी कार पार्क किया करते थे। कंपनी के अफसरों को इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने एक सर्कुलर जारी किया कि कोई भी आगे से उस जगह गाड़ी पार्क न किया करे। प्रेमजी ने ये देखा तो उन्होंने एक जवाब दिया और कहा कि कोई भी किसी भी खाली जगह पर गाड़ी पार्क कर सकता है। यदि मुझे वह जगह चाहिए तो दूसरों से पहले आना होगा।

प्रेमजी के पिता एमएच प्रेमजी ने विप्रो की शुरुआत महाराष्ट्र के जलगांव जिले के अमलनेर गांव से की थी। कहा जाता है कि यह गांव करोड़पतियों से भरा हुआ है। इसके पीछे रोचक तथ्य है कि प्रेमजी के पिता ने 1970 के दशक में गांव के लोगों को विप्रो का शेयर कम कीमत पर दे दिया था। आज की तारीख में 2.88 लाख आबादी वाले इस गांव के लोगों के पास विप्रो का 3% शेयर है, जिसकी कीमत 4,750 करोड़ रुपये है।

पिता की बात आ गई है तो उन्हें भी जान लेना चाहिए। अजीम प्रेमजी के पूर्वज बर्मा में चावल का कारोबार करते थे। इस बीच वे गुजरात के कच्छ आ गए। इसके बाद अजीम के पिता एम एच प्रेमजी ने यहां भी चावल का कारोबार शुरू किया। बाद में उन्होंने वनस्पति घी का कारखाना खोल लिया। इसी को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने 29 दिसंबर 1945 को वेस्टर्न इंडिया वेजिटेबल प्रोडक्ट्स लिमिटेड कंपनी बनाई, जो बाद में विप्रो के नाम से प्रसिद्ध हुई।

पिता को मिला था पाकिस्तान के वित्तमंत्री का ऑफर

कंपनी की स्थापना के साथ एमएच प्रेमजी की गिनती देश के चंद बड़े लोगों में होने लगी थी। उनका व्यापार अच्छा चल रहा था। इस बीच भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हो गया। बंटवारे के दौरान मोहम्मद अली जिन्ना ने एमएच प्रेमजी को पाकिस्तान चलने को कहा। उन्होंने इनकार कर दिया तो जिन्ना उन्हें वित्तमंत्री तक बनाने का ऑफर दिया। लेकिन एमएच ने इसे ठुकरा दिया।

ब्लूमबर्ग बिलेनियर इंडेक्स के मुताबिक, प्रेमजी दुनिया के 36वें बड़े अमीर हैं। मौजूदा समय में उनकी संपत्ति 25.6 अरब डॉलर की है। हालांकि, उन्होंने पहले ही अपनी शेयरहोल्डिंग का 34% (52750 करोड़ रुपये) शेयर दान कर दिया है। वह प्रेमजी फाउंडेशन के नाम से एक संस्था भी चलाते हैं, जिसे अबतर 1.45 लाख करोड़ रुपये दे चुके हैं।

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रिपोर्ट के मुताबिक, प्रेमजी ने जब कंपनी की कमान संभाली तो वह 1.30 करोड़ रुपये की थी। 53 साल बाद उसी कंपनी की कमाई 58, 500 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है। कंपनी के मार्केट कैप में 26 हजार गुना की बढ़ोत्तरी हुई है। आज विप्रो देश में टीसीएस और इन्फोसिस के बाद तीसरी बड़ी आईटी कंपनी है।

ये रहा है सबसे अच्छा टाइम

हालांकि, कहा जाता है कि साल 1997 से 2002 के बीच विप्रो ने तेजी से ग्रोथ किया। साल 2004 में कंपनी की रेवेन्यू लगभग 1 अरब डॉलर तक पहुंच गया। इसके बाद साल 2005 में  उन्होंने एक बड़ा फैसला लेते हुए कंपनी के सीईओ पद को भी संभाल लिया। इस बीच कंपनी का विस्तार अमेरिका तक पहुंच चुका था। न्यू यॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में विप्रो की लिस्टिंग हुई और बिजनेस बढ़ने लगा। यही वह दौर था जब उन्होंने अजीम प्रेमजी फाउंडेशन बनाया।

विप्रो से रिटायरमेंट लेते हुए प्रेमजी ने कहा कि उनका सफर लंबा और संतोषजनक रहा है। उन्होंने सक्रिय रूप से समाजसेवा में जुड़ने की बात कही। बताया जा रहा है कि वह अब परिवार के साथ समय बिताएंगे।