इंसान को जवाब देना आना चाहिए. हर शख्स के पास इतनी हिम्मत होनी चाहिए कि वो अपने ऊपर हो रही ज्यादतियों के लिए सीना तान कर कह सके कि अब बस, बहुत हुआ. अब और नहीं सहेंगे. अगर आपको ये सब बातें किताबी लग रही हैं तो आपको उस महिला के बारे में जानना चाहिए जो पढ़ना चाहती थी मगर उसे पढ़ने नहीं दिया गया, जिसकी शादी कम उम्र में करा दी गई जिसे बचपने की उम्र में मां बनना पड़ा, जिसे हर रोज मारा पीटा गया.
उस औरत ने अपने ऊपर हो रहे जुल्मों के सामने आवाज उठाने से पहले ये भी नहीं सोचा कि वो अपने बच्चों को लेकर कहां जाएगी, क्या करेगी ? उसने बस जाने का फैसला कर लिया. उसने लोगों के घरों में झाड़ू पोंछा किया लेकिन आज उसकी पहचान देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में है. आज कोई भी उसे कामवाली के रूप में नहीं बल्कि एक नामी लेखिका के रूप में जानता है.
तो चलिए आज जानते हैं उस झाड़ू-पोछे वाली के बारे में जिसने हालातों से लड़ कर अपनी ज़िंदगी को कागज पर उतारा और बन गई एक चर्चित लेखिका :
12 साल की उम्र में कर दी शादी
बेबी हलदर, यही नाम है उनका. आज साहित्यिक पट्टी से जुड़े दुनिया भर के लोग उन्हें उनकी रचना ‘आलो आंधारि’ के लिए जानते हैं. उनकी इस किताब का दुनिया की तमाम भाषाओं में अनुवाद हुआ. लोगों ने उनसे प्रेरणा ली लेकिन इतना सब हासिल करने से पहले उन्हें उतने दुख झेलने पड़े जितने किसी भी अच्छे भले इंसान को आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए पर्याप्त होते हैं. लेकिन बेबी ने कभी हार नहीं मानी. बेबी 1973 में कश्मीर में पैदा हुई. 4 साल की थी तभी उनकी मां उन्हें और उनके शराबी पिता को छोड़ कर हमेशा के लिए इस दुनिया से चली गई. बेबी के शराबी पिता एक पूर्व सैनिक और एक ड्राइवर थे. पत्नी के छोड़ जाने के बाद वो बेबी को मुर्शिदाबाद ले आए और यहां से वे लोग पश्चिमी बंगाल के दुर्गापुर में जाकर बस गए. बेबी के पिता ने दूसरी शादी कर ली और बेबी उनके साथ ही दुर्गापुर में पलने बढ़ने लगी.
कम उम्र में ही बन गई 3 बच्चों की मां
बेबी पढ़ना चाहती थी लेकिन छठी क्लास के बाद उसकी पढ़ाई रोक दी गई. ये बेबी का 12वां साल लगा था जब उसकी शादी उससे 14 साल बड़े शख्स से कर दी गई. सौतेली मां की ज्यादतियों के बीच बेबी के हालात ऐसे हो गए थे कि वह इतनी कम उम्र में शादी कर के भी खुश थी. शादी के समय उन्होंने अपनी एक सहेली से कहा था कि चलो, अच्छा हुआ, मेरी शादी हो रही है. अब कम से कम पेट भरकर खाना तो मिलेगा.’ बेबी को क्या पता था कि वो एक नर्क से निकल कर दूसरे नर्क में जा रही है. बेबी ने बताया था कि शादी के तीन–चार दिन बाद उसके पति ने 12 साल की बेबी के साथ रेप किया. 12 साल की बच्ची के साथ रेप करने वाले शख्स के लिए उसे मारना पीटना आम बात थी. यही सब सहते हुए बेबी तेरहवें साल में ही एक बच्चे की मां बन गई. 15 साल की उम्र तक वो 3 बच्चों की मां थी. लगभग हर दिन ही उसे अपने पति की गलियों और मार से जूझना पड़ता था. एक दिन तो तब हद हो गई जब बेबी के पति ने उसे गांव के किसी अन्य पुरुष के साथ बात करते देख लिया. इतनी सी बात के लिए उसने बेबी के सिर पर पत्थर मारकर उसे लहूलुहान कर दिया.
जैसे जैसे समय बीतता रहा वैसे वैसे उसके लिए ये सब बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था. आखिरकार 1999 में बेबी ने फैसला कर ही लिया और उसने अपने तीनों बच्चों के साथ घर छोड़ दिया. हालांकि उसे घर छोड़ने से पहले पता भी नहीं था कि वो कहां जाएगी और क्या करेगी लेकिन उस नर्क में रहने से अच्छा था उसका कहीं दूसर भाग जाना.
मुंशी प्रेमचंद के पोते ने दिखाई राह
ज़िंदगी के अनजान सफर के लिए वह एक ट्रेन में चढ़ी और ट्रेन के शौचालय में अपने बच्चों के साथ बैठी रही. उसकी किस्मत ने उसे दिल्ली पहुंचा दिया. यहां से वह गुड़गांव पहुंची. ये शहर और यहां के लोग बेबी के लिए बिलकुल अनजान थे लेकिन इसके बावजूद वह खुश थी. कम से कम यहां उन्हें वो सब तो नहीं झेलना पड़ता था जो वो अपने पति के साथ रहते हुए झेलती आ रही थीं. बेबी ने अपने तीनों बच्चों के साथ एक झोपड़ी में अपना आशियाना बनाया और घर घर जा कर काम करने लगीं. जैसे तैसे जिंदगी कट रही थी. इन्हीं संघर्ष के दिनों में उनकी किस्मत ने उन्हें हिंदी साहित्य जगत के पितामह मुंशी प्रेमचंद के पोते प्रबोध कुमार के दरवाजे पर ला खड़ा किया. प्रबोध एक रिटायर्ड प्रोफेसर हैं. बेबी उनके यहां काम मांगने गई थी लेकिन उन्हें क्या पता था कि वह प्रबोध का नहीं बल्कि अपने जीवन के सबसे खुशनुमा दिनों का दरवाजा खटखटा रही थीं. इसी दस्तक ने उनकी ज़िंदगी की दिशा और दश दोनों बदल दीं.
योर स्टोरी की एक रिपोर्ट के मुताबिक बेबी इस बारे में बताती हैं कि प्रबोध कुमार के घर में झाड़ू-पोंछा करने के दौरान वह उनके घर में रखी किताबों को गौर से देखा करती थीं. प्रबोध बेबी की इस हरकत को हमेशा नोटिस करते थे. एक दिन वो बेबी के लिए कॉपी-पेंसिल लेकर आए और बोले, ‘अपने बारे में लिखो, गलती हो तो कोई बात नहीं. बस लिखती जाओ.’
एक आदत ने बदल दी ज़िंदगी
प्रबोसह कुमार के कहने के बाद बेबी लिखने लगी. उसने इतना लिखा कि उसे लिखने की आदत हो गई. अब वह खाना बनाते हुए भी अपने साथ कॉपी पेंसिल रखने लगी. बच्चों के सो जाने के बाद वो देर रात तक लिखती. उन्होंने अपने मन में दबी हर बात को लिख डाला. एक दिन ऐसा आया कि घरों में काम करने वाली बेबी ने अपनी लिखने की आदत की वजह से अपना पूरा जिंदगीनामा लिख डाला. उन्होंने इसे प्रबोध को दिखाया. बेबी ने जो भी लिखा था सब बांग्ला में था, प्रबोध ने इसका हिंदी अनुवाद किया और इसे आलो आंधारी के नाम से एक किताब की शक्ल दे दी.
बेबी का ये जिंदगीनामा जब मार्केट में आया तो लोगों ने इसे हाथों हाथ लिया. एक के बाद एक ना जाने कितने संस्करण बिक गए इस किताब के. इस किताब के आने के कुछ वर्षों बाद उर्वशी बुटालि नामक लेखिका ने इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया और इसे नाम दिया ‘अ लाइफ लेस्स ऑर्डिनरी’. इस किताब का अंग्रेजी वर्जन इसके लिए मानों पंख साबित हुए और फिर इस किताब ने दुनिया भर की सैर की. कई भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में इस किताब का अनुवाद किया गया. इस तरह एक नौकरानी दुनिया की मशहूर लेखिका बन गईं.
आज भी नहीं छोड़ा झाड़ू पोंछा करना
आलो आंधारी सहित बेबी अब तक चार किताबें लिख चुकी हैं. उन्हें दुनिया भर में होने साहित्यिक महोत्सवों में आमंत्रित किया जाता है. अब बेबी को लिखने की ऐसी आदत हो गई है कि बिना लिखे उन्हें चैन ही नहीं आता. अब उनका बड़ा बेटा जवान हो चुका है. किताबों की रॉयल्टी से वह झोंपड़े से अपने खुद के घर में आ गई हैं. दुनिया भर में नाम कमा चुकी बेबी ने प्रसिद्धि मिलने के बाद भी खुद को बदलने नहीं दिया. वो आज भी प्रबोध कुमार के घर में अपने हाथों से झाड़ू लगाती हैं.