Bageshwar Dham Sarkar: बागेश्वर धाम सरकार ने बताया कि उनके गुरु उनके दादाजी हैं। उन्होंने बताया कि उनके पास सत्संग करने के लिए लोग आते थे। बागेश्वर बालाजी की सेवा के लिए मैं समर्पित हूं।
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गरीबी में कटा बागेश्वर धाम सरकार का बचपन
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बागेश्वर धाम सरकार के अनुसार, उनका बचपन गरीबी में बीता। उनके पिता जी कर्मकांड करते थे। उनके घर में बहुत गरीबी थी। मैं घर में सबसे बड़ा था त्योहार में छोटे भाई-बहन को नए कपड़े और ठीक से भोजन की व्यवस्था नहीं कर सकता था। मेरे दादा जी शुरू से ही बालाजी के भक्त थे। वो बागेश्वर धाम आते थे और बालाजी की पूजा करते थे। लोग कहते थे तुम्हारे दादाजी इतने सिद्ध पुरुष हैं तुम क्यों नहीं हो।
बागेश्वर धाम सरकार के गुरु हैं दादा जी
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दादाजी से मिलने लालबत्ती में लोग आते थे। उनके पास सत्संग करने के लिए बड़े-बड़े लोग आते थे। दादाजी की बातें सुनकर मेरा भी मन धर्म और अध्यात्म की तरफ मुड़ गया। मैं भी दादाजी के सत्संग सुनने लगा। उसके बाद से मैं उन्हें अपना गुरु मानने लगा। उनकी बातों को मैं सुनता था। उन्होंने बताया कि हमारे परिवार में 10 भाई हैं। लेकिन दादाजी हमें केवल जूठी चाय पिलाते थे।
दादा ने कहा था रात में आना
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बागेश्वर धाम सरकार ने बताया कि एक दिन मैं अपने दादा जी के पास जाकर बोला कि मुझे बताइए कि मेरी गरीबी कब दूर होगी। यह बात सुनकर दादाजी हंसने लगे। उसके बाद उन्होंने मुझे कहा कि तुम रात में आना तुम्हें बताऊंगा। उस समय मेरी उम्र करीब 9 या 10 साल के करीबी थी। बागेश्वर धाम सरकार ने कहा कि दादाजी की बाते सुनकर मैं वापस आया और रात का इंतजार करने लगा।
रात में मिली थी सिद्धि
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बागेश्वर धाम सरकार ने बताया कि जब मैं रात को दादा जी के पास पहुंचा तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और हनुमान जी के सामने खड़ा कर दिया। थोड़ी देर बाद वो हंसे और बोले अब जाओ। उन्होंने मुझे कुछ भी नहीं बताया। लेकिन धीरे-धीरे मुझे अजीब सी चीजों का आभास होने लगा था। कोई मेरे सामने आता तो मैं उसका नाम जान जाता था लेकिन कहने में संकोच लगता। जब वो अपना नाम बताता तो मैं खुद से कहता कि ये तो मुझे पता था मैंने पहले क्यों नहीं बताया।
दादाजी ने दी कई सलाह
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बागेश्वर धाम सरकार ने ये बात अपने दादाजी को बताई कि मैं लोगों के बिना कहे ही उनका नाम जान जाता हूं, लेकिन बताने में संकोच होता है। उसके बाद दादाजी ने मुझे हनुमान चालीसा पढ़ने की सलाह दी। उसके बाद मैंने हनुमान चालीसा का पाठ शुरू किया। लंबी तपस्या की और हवन किये। उन्होंने बताया कि मेरा सबसे ज्यादा लगाव मेरे दादाजी से था। ये सब होने के बाद मेरा मन घर में कम लगता था मैं बालाजी की सेवा में अपना जीवन व्यतीत करने लगा। उन्होंने कहा मैं कोई चमत्कार नहीं करता हूं वेदों और ग्रंथों में जो लिखा है उसे के जरिए लोगों के मन की बात को समझ लेता हूं।