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बामनौली गांव में दो सौ साल पहले बड़ी-बड़ी हवेलियां बनाने का कार्य शुरू हुआ और गांव में 24 से ज्यादा हवेलियां बनवाईं गईं। इनके कारण गांव को हवेलियों वाला गांव कहा जाता है। गांव की 24 से अधिक हवेलियां पूर्वजों की गाथाओं को चरितार्थ करती हैं। कुछ लोग गांव से हवेलियों को बेचकर शहरों में रह रहे हैं, जबकि तकरीबन 12 परिवार आज भी पूर्वजों की हवेलियों में रहकर अपने पूर्वजों के इतिहास को सहेजे हुए हैं। हालांकि गांव में आधुनिक मकानों की संख्या अब काफी ज्यादा है लेकिन ये पुरानी हवेलियां आज भी गांव की शान कहलाती हैं। आगे तस्वीरों में जानें इन पुराने हवेलियों का इतिहास।
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ग्रामीणों का कहना है कि उनके पूर्वजों ने हवेलियों का निर्माण करने के लिए ईंट बनाने को गांव में भट्ठियां लगाई गई थीं। हवेलियों में आज भी उन भट्ठियों से बनी ईंट लगी हैं, जो गांव व हवेलियां के 200 साल पुराने इतिहास को बयां करती हैं। हवेली में रहने वाले लोगों का कहना है कि पूर्वजों की हवेली में रहने पर गर्व महसूस होता है। उनके पूर्वजों ने गांव में जब हवेलियों का निर्माण कराया था, जब अधिकतर लोग कच्चे मकानों में रहते थे।
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गांव में तोताराम, तुलसी राम, हरज्ञान सिंह, बालमुकंद बनिया, अहलुवालिया, रघुवीर सिंह, चंदन सिंह, गिरवर सिंह, रामप्रसाद सिंह, रामनारायण सिंह, भोपाल सिंह, राधेश्याम, ज्योति स्वरूप ने सबसे पहले हवेलियों का निर्माण कराया था। इनके बाद गांव के अन्य लोगों ने हवेलियों का निर्माण शुरू कराया।
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बामनौली गांव व्यापार का बड़ा हब था। राजस्थान के भरतपुर से बैलगाड़ियों से यहां माल आता-जाता था। क्षेत्र के लोग यहां से सामान की खरीदारी करते थे। उस समय बड़ौत एक छोटे गांव की तरह था। बड़ौत के लोग भी जरूरत का सामान खरीदने के लिए बामनौली आते थे।
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गांव में 11 एतिहासिक मंदिर भी गांव की पहचान है। ये सभी मंदिर गांव के चारों ओर बनाए गए हैं। गांव के नागेश्वर मंदिर, बाबा सुरजन दास मंदिर, ठाकुर द्वारा मंदिर, शिव मंदिर, हनुमान मंदिर, बाबा काली सिंह मंदिर, दिगंबर जैन मंदिर, श्वेताम्बर स्थानक, शिव मंदिर, गुरु रविदास मंदिर, वाल्मीकि मंदिर दूर-दूर तक प्रसिद्ध हैं। इनमें से कई मंदिरों में दूर-दराज से श्रद्धालु पूजा-अर्चना करने आते हैं।
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– गांव की हवेलियों में आज भी 200 साल पुराना इतिहास जिंदा है। यह हवेलियां पूर्वजों की शान है। – चौधरी हरेंद्र सिंह
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– गांव व्यापार का बड़ा हब था। गांव से बैल गाड़ी से भरतपुर से सामान लाया और पहुंचाया जाता था। गांव में कारोबारियों का आना-जाना रहता था।