बाल मज़दूरी के अंधेरे में आज भी देश की कई बच्चे सांस ले रहे हैं. अपना और परिवार का पेट पालने के लिए इन बच्चों को मज़दूरी के काम में धकेला जाता है.
7 साल की उम्र में करवाई गई जबरन बाल मज़दूरी
रांची के बैदनाथ कुमार की उम्र तक़रीबन 7 साल थी. उनके माता-पिता बेहद ग़रीब थे और ठीक से बैदनाथ का पालन-पोषण करने में असमर्थ थे. बैदनाथ सरकारी स्कूल में पढ़ते थे और इसके बावजूद उन्हें एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (Administrative Training Institute) के मेस में काम करने के लिए भेजा गया.
18 साल की उम्र में Juvenile Justice Act के बारे में सुना
जब बैदनाथ 18 साल के हुए तब देश में Juvenile Justice Act लागू किया गया. एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफ़िसर्स को इस एक्ट के बारे में बताया जा रहा था. किस तरह इस एक्ट के ज़रिए बच्चों को बाल मज़दूरी से बचाया जा सकता है, ये समझाया जा रहा था. मेस बॉय होने की वजह से बैदनाथ को लेक्चर हॉल में प्रवेश करने की अनुमति थी. उन्होंने कुछ लोगों को इस पर बातें करते सुना. बैदनाथ इस एक्ट के बारे में कुछ जानकारी इकट्ठा की और उन्हें नोट कर लिया.
“मैंने कुछ IAS अफ़सरों से बात की. मैंने 14 माइनर कर्मचारियों से भी बात की और हमने अगले दिन हड़ताल करने की सोची. एटीआई के अधिकारियों को जब स्ट्राइक का पता चला तो उन्होंने हमसे वजह पूछी. हमने कह दिया कि मेस इनचार्ज हमें टॉर्चर करता है और ये JJ Act का उल्लंघन है.”, बैदनाथ ने The New Indian Express के साथ बातचीत में कहा.
स्ट्राइक रोकने और मामला सुलझाने के लिए ये तय किया गया कि जो वहां लंबे समय से काम कर रहे हैं और 18 के हो गए हैं उन्हें पर्मानेन्ट कर्मचारी बनाया जाएगा. ग़ौरतलब है कि वादे के मुताबिक कुछ भी नहीं हुआ. तंग आकर बैदनाथ ने ख़ुद को आग लगाने की धमकी दी. बैदनाथ को गिरफ़्तार कर लिया गया.
“मेरी धमकी काम कर गई. सारे योग्य ATI वर्कर्स को रख लिया गया. उन्हें लग रहा था मैं आगे और परेशानियां खड़ी कर सकता हूं.”
बैदनाथ के पास दूसरी नौकरी खोजने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था. 2003 में उन्होंने सिविल कोर्ट कैम्पस में एक फ़ोटोकॉपी की दुकान पर काम शुरू किया. बैदनाथ को भी नहीं पता था कि ये निर्णय उनकी ज़िन्दगी बदलने वाला है. दुकान पर वक़ील आते थे और बैदनाथ उनसे बात करते. बैदनाथ ने वक़ीलों से बताया कि उन्हें बाल मज़दूरी को ख़त्म करने के लिए कुछ करना है. वक़ीलों ने ही बैदनाथ को NGO बनाने को कहा. एक बार कोई NGO By-Laws फ़ोटोकॉपी करवाने लाया था और बैदनाथ ने भी अपने लिए एक कॉपी प्रिंट कर ली.
2004 में की दिया सेवा संस्थान की स्थापना
बैदनाथ ने 2004 में दिया सेवा संस्थान की स्थापना की. वो महिलाओं और बच्चों को शिक्षित करना चाहते थे. “मैंने रांची में स्कूल ने जाने वाले बच्चों पर सर्वे किया और पता चला कि ऐसे 7.777 बच्चे हैं.”, बैदनाथ के शब्दों में.
मिला 150 बच्चों को पढ़ाने का प्रोजेक्ट
डेटा लेकर बैदनाथ Education Project Council Director के पास पहुंचे और ऐसे बच्चों के लिए स्कूल खोलने की इच्छा ज़ाहिर की. इस अनोखे रेसिडेंशियल स्कूल से बच्चों को सरकारी स्कूल में दाखिला मिलने में भी मदद मिली. डायरेक्टर को बैदनाथ का प्रपोज़ल पसंद आया और उन्होंने बैदनाथ को 150 बच्चों को पढ़ाने का पहला प्रोजेक्ट दे दिया.
आस-पास के क्षेत्रों में भी फैलने लगी बैदनाथ की नेक पहल
रांची के आस-पास के ज़िलों- खुंटी, सिमदेगा में भी बैदनाथ के मॉडल स्कूल की तर्ज पर स्कूल बनने लगे. ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वे के दौरान ही उन्हें पता चला कि गांवों में युवा हैं ही नहीं. यही नहीं लड़कियों की भी ट्रैफ़िकिंग के बारे में उन्हें जानकारी मिली. बैदनाथ को बताया गया कि ग्रामीण इलाकों में कई सक्रिय एजेंट हैं और ये लोग आराम से अपना काम कर रहे हैं.
ट्रैफ़िकिंग से लड़कियों को बचाने के लिए पहुंचे CID के दफ़्तर
बैदनाथ को जब ये पता चला कि लड़कियों को बेचने-ख़रीदने का धंधा बेहद सिस्टमैटिक ढंग से चल रहा है तब उन्होंने इन बेसहारों का सहारा बनने की ठान ली. बैदनाथ को जब भी ट्रैफ़िकिंग के बारे में पता चलता तब वो CID (ADG) को मेल लिखते. बैदनाथ को CID ने अपना केस साबित करने के लिए कहा. बैदनाथ रुके नहीं और दिल्ली पहुंच गए. दिल्ली की एक प्लेसमेंट एजेंसी के साथ ट्रैफ़िकिंग करने वाली एजेंसियों के काम को समझने के लिए उन्होंने तीन महीने तक काम किया. जानकारी जुटाने के बाद वे दोबारा CID के पास पहुंचे, जानकारी को वेराइफ़ाई किया गया और बैदनाथ की मदद से पहले ही दिन 120 लड़कियों को बचा लिया गया.
अब तक 5000 महिलाओं और बच्चों को तस्करी से बचा चुके हैं
बैदनाथ अब तक 5000 महिलाओं और बच्चों को तस्करी के दलदल से निकाल चुके हैं. एक 7 साल की लड़की को बैदनाथ ने गोद भी ले लिया. इस बच्ची के माता-पिता का पता नहीं लगाया जा सका. ये बच्ची अभी 10वीं में पढ़ रही है और बैदनाथ ने उसकी पूरी ज़िम्मेदारी उठा ली है.
बैदनाथ को उनके काम के लिए राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया है. पुलिस भी उनके काम की तारीफ़ करती है. बैदनाथ ने ये साबित कर दिया कि आप कहां से आते हैं ये महत्त्व नहीं रखता, महत्त्व ये रखता है कि आपको कहां पहुंचना है. बैदनाथ ने न सिर्फ़ अपनी ज़िन्दगी बदली बल्कि कई इंसानों की ज़िन्दगी संवारने में भी मदद की.