: प्रवासी पक्षियों की पनाहगार है बखिरा झील, अब डीएम प्रेमरंजन बदलेंगे इसकी रूपरेखा

बखिरा झील।

संतकबीरनगर जिले के बखिरा झील को विकसित करने की कार्य योजना तैयार हो रही है। पर्यटकों की सुविधा के लिए पर्यटन विभाग करीब 15 करोड़ की योजना बना रहा है। इसमें पर्यटकों के लिए वोटिंग आदि की भी सुविधा होगी। साथ ही बखिरा- मेंहदावल मार्ग से सीधे झील तक जाने के लिए सड़क बनाई जाएगी।

डीएम प्रेम रंजन सिंह ने बताया कि सहजनवा- बखिरा मार्ग के चौड़ीकरण की भी योजना है, ताकि गोरखपुर से पर्यटकों को आने में सुविधा हो। इसके लिए पीडब्ल्यूडी कार्य योजना तैयार कर कर रहा है। बखिरा के पूरे एरिया को मॉडल टाउन के रूप में विकसित किया जाएगा। स्पेशल डवलपमेंट एरिया के लिए विशेष कार्य योजना तैयार हो रही है। झील को विकसित करके इसे अंतरराष्ट्रीय फलक पर लाए जाने की कोशिश हो रही है।

उन्होंने बताया कि झील संतकबीरनगर और गोरखपुर दोनों जनपदों में फैली है। पर्यटकों को लुभाने के लिए यहां बहुत सारे काम कराए जाने की योजना है। इसकी मार्केटिंग और ब्रांडिग दोनों उच्च कोटि की होगी। जिससे झील के विकास के साथ यहां लोगों को सुगमता से रोजगार मिल सकें। डीएम ने बताया कि इस संबंध में आर्किटेक्चर मनीष कुमार मिश्रा और प्रदेश सरकार के टाउन प्लानर विभाग के हृदेश कुमार के साथ कई बैठकें हो चुकी है।

डीएम प्रेम रंजन सिंह।
जनपद मुख्यालय से करीब 20 किलोमी उत्तर खलीलाबाद–मेंहदावल मार्ग पर स्थित बखिरा कस्बा स्थित है। वहीं से तीन किलोमीटर पूर्वी भाग में 29 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बखिरा झील फैली हुई है। वैसे बखिरा झील को मोती झील के नाम से भी जाना जाता है। इसके किनारे बसे गांवों के मछुवारा समुदाय की आजीविका ही इसी झील पर आश्रित है। नवंबर से फरवरी तक चार माह झील का विशाल जलाशय प्रवासी पक्षियों के लिए पनाहगाह बन जाती है।

29 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली बखिरा झील।
इसी को देखते हुए वर्ष 1990 में केंद्र सरकार ने अधिसूचना जारी करते हुए इसे पक्षी विहार का दर्जा दे दिया, लेकिन तीन दशक बीत जाने के बाद भी झील का विकास अभी तक नहीं हो सका। इस पक्षी बिहार के विस्तृत भू-भाग में विचरते पक्षियों को देखने के लिए सैलानी यहां आ सकें, इसके लिए बखिरा से तीन किलोमीटर दूर बखिरा- सहजनवां मार्ग पर जसवल भरवलिया के उत्तर की ओर डेढ़ किलोमीटर लंबी सड़क बनी है। परिसर में वॉच टावर के अलावा वन विभाग के अधिकारियों कर्मचारियों के लिए आवास बने हुए हैं। क्षेत्रीय वनाधिकारी रणवीर सिंह बताते है यहां पर पूरे वर्ष पानी भरा रहता है। झील में जलीय वनस्पतियां, छोटे-छोटे कीड़े, घोंघे व सीप आदि प्रचुरता में है।
बखिरा झील।
रेंजर रणवीर सिंह ने बताया कि नवंबर माह की शुरुआत हो चुकी है। ठंडक कम होने से अभी तक मात्र पांच से छह सौ चिड़ियों की संख्या आई है। उनमें में पुछास, टिकिया, पटेहरा प्रजाति के पक्षी आ सके हैं। अधिक ठंडक पड़ने पर ही लालसर की आवक होती है। वहीं डिप्टी रेंजर मनीष पासवान ने बताया कि झील के क्षेत्रफल के अनुसार यहां पर कर्मचारियों की संख्या काफी कम है। 29 वर्ग किलोमीटर की रखवाली के लिए कम से कम दो दर्जन स्टाफ की जरूरत है, लेकिन यहां पर मात्र चार स्थायी व पांच अस्थायी स्टाफ की नियुक्ति है। स्टाफ की कमी होने से झील की सुरक्षा व्यवस्था में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
बखिरा झील
प्रवासी पक्षियों की पनाहगार है बखिरा झील
प्रवासी पक्षियों के लिए ठंड का महीना मुफीद होता है। खासकर बखिरा झील प्रवासी पक्षियों का पनाहगार बनती है। जैसे- जैसे ठंड बढ़ेगी, प्रवासी पक्षियों के कलरव से बखिरा झील गुलजार होगी। दूर-दराज से लोग यहां आते हैं। अक्तूबर की शुरुआत होते ही यूरोप, साइबेरिया, तिब्बत, चीन से पक्षियों का आना शुरू हो जाता है। बखिरा पक्षी विहार में दिवाली से होली तक प्रवासी और अप्रवासी पक्षियों की कलरवयुक्त ध्वनि पर्यटकों को खूब लुभाती है। सर्दी का मौसम बिताने के बाद प्रवासी पक्षी अपने मूल प्रदेश को लौट जाते हैं।