Battle of Khanwa: राणा सांगा खानवा में उपद्रव से बचने में कामयाब रहे, लेकिन उनके द्वारा बनाया गया महागठबंधन टूट कर बिखर गया था।
खानवा का युद्ध (Battle Of Khanwa) भारत के इतिहास के उन युद्धों में से है जिसकी गाथा अमर हो गई। बाबर और राणा सांगा के बीच लड़ा गया यह युद्ध भारत में सदियों के लिए मुगलों की स्थापना का कारण बन गया। बाबर वही शासक था जिसने कई छोटी-छोटी लड़ाईयों में रियासतें जीती और अंत में पानीपत की लड़ाई जीतकर दिल्ली पर कब्जा कर लिया। आइए इस युद्ध (Battle Of Khanwa) की खास बातों को जान लेते हैं।
बाबर ने अपने पूर्वज तैमूर की विरासत को पूरा करने के लिए विजय अभियान शुरू किया था। 1524 तक, वह पंजाब क्षेत्र में अपने शासन का विस्तार करने का लक्ष्य बना रहा था, लेकिन कुछ घटनाओं ने उसे तैमूर के पूर्ववर्ती साम्राज्य की मूल सीमाओं से बहुत आगे बढ़ा दिया। लोदी वंश के तहत दिल्ली सल्तनत के पतन ने विजय के नए अवसर प्रस्तुत किए और बाबर को दौलत खान लोदी ने दिल्ली पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था। लगभग उसी समय राणा सांगा द्वारा गठबंधन का प्रस्ताव रखा गया था।
युद्ध के दौरान गतिविधियां
राणा सांगा ने प्रस्ताव रखा कि जहां बाबर दिल्ली सल्तनत पर हमला करेगा, वहीं राजपूत आगरा पर हमला करेंगे। हालांकि, दौलत खान ने बाबर को धोखा दिया और सियालकोट में मुगल गैरीसन को तोड़ दिया और लाहौर की ओर कूच किया। लेकिन दौलत खान पर मुगल भारी पड़ गए और मुगलों ने शहर के पास दौलत खान को हराया। इसके बाद बाबर पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी की सेना को नष्ट करने के लिए आगे बढ़ा, जिससे मुगल साम्राज्य की शुरुआत हुई।
इस दिन भिड़ गए थे बाबर और राणा सांगा
17 मार्च 1527 ई का वह दिन था जब राणा सांगा और बाबर एक दूसरे के साथ भिड़ गए। इस युद्ध में राणा सांगा के साथ हसन खां मेवाती, बसीन चंदेरी एवं इब्राहिम लोदी का भाई महमूद लोदी भी डटे हुए थे। राणा सांगा की फौज का मुकाबला करने के लिए बाबर अपने लश्कर के साथ फतेहपुर सीकरी के निकट खानवा जगह पर पहुंचा था। सबसे दिलचस्प बात यह रही कि बाबर ने खानवा के युद्ध में वह तरीका अपनाया जो इब्राहिम लोदी के खिलाफ किया था।
युद्ध के मैदान में राणा सांगा की सेना वीरता से लड़ी और बाबर की बीस हजार से अधिक सिपाहियों का जमकर मुकाबला किया। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि राणा सांगा ने यह लड़ाई काफी हद तक अपने पक्ष में मोड़ ली थी, लेकिन अंत में बाबर ने गोला बारूद का जमकर इस्तेमाल कर लड़ाई का रूख अपने पक्ष में मोड़ दिया और युद्ध को जीत लिया। इस युद्ध में बाबर ने उन सभी को हरा दिया दिन्होंने उसे चुनौती दी थी।
युद्ध का परिणाम
खानवा की लड़ाई ने 21 अप्रैल, 1526 को पानीपत की पहली लड़ाई के दौरान किए गए लाभों को एक साथ किया। राणा सांगा खानवा में उपद्रव से बचने में कामयाब रहे, लेकिन उनके द्वारा बनाया गया महागठबंधन टूट कर बिखर गया था। 30 जनवरी 1528 को राणा सांगा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
कई राजनयिक साधनों के माध्यम से, राणा सांगा ने न केवल राजपूत कुलों का, बल्कि अन्य अफगान प्रमुखों से भी एक महागठबंधन बनाया, जिन्होंने इब्राहिम लोदी के छोटे बेटे महमूद लोदी को सुल्तान घोषित किया था।
खानवा की लड़ाई का एक परिणाम यह भी था कि भारतीय उपमहाद्वीप, मुगल या अन्यथा की कई सेनाओं में तोपें युद्ध की आधार बन गई। जल्द ही भारत में अन्य राज्यों ने बारूद युद्ध में अपनी सेना को प्रशिक्षित करने के लिए भाड़े के सैनिकों को किराए पर लेना शुरू कर दिया और कुछ ने अपनी तोपों का निर्माण भी शुरू कर दिया था। इसके साथ ही इस युद्ध ने उपमहाद्वीप की सेनाओं के पुराने युद्ध तरीकों पर विराम लगा दिया।