4 अप्रैल, 1944 के दिन है कोहिमा की लड़ाई शुरू हुई. इसी युद्ध ने एशिया में तेजी से आगे बढ़ रही जापान की सेना को पीछे किया. अंत में कभी ‘पूरब के स्टालिनग्राद’ के नाम से मशहूर इस इलाके में 22 जून, 1944 को युद्ध का समापन हुआ और जापान की सेना हार के बाद पीछे लौटी
बी.के. सचू
इस जंग में बड़ी संख्या में ब्रिटिश और जापानी सैनिक मारे गए थे. जंग की कई यादें आज भी लोगों के दिलों में जीवंत हैं. 86 वर्षीय बी.के. सचू ने युद्ध में शामिल जापानी डॉक्टर की दया को याद करते हैं जो “बच्चों को पीड़ित नहीं देख सकता था और उनका हर संभव इलाज करता था.
Viketouzo Miachieo
कहते हैं इस जंग के कई निशान आज भी कोहिमा में पाए जाते हैं. Viketouzo Miachieo नाम के 22 वर्षीय नागा लड़के ने द्वितीय विश्व युद्ध के गोला-बारूद को प्रदर्शित किया था. कथित तौर पर उसने कुछ साल पहले कोहिमा में अपने घर के बगल की सफाई के दौरान इसे पाया था.
Kekhrieselie Mepfuo
55 वर्षीय Kekhrieselie Mepfuo 18 फरवरी, 1976 के उस दिन को याद करते हैं, जब कोहिमा में युद्ध के समय एक बम विस्फोट में उनके आठ दोस्तों की मौत हो गई थी. उन्होंने कहा, “मैं अभी भी इसके बारे में सोचता हूं तो दर्द से कांप जाता हूं. मैं इसे कभी नहीं भूल सकता’.
M3 Lee Tank
M3 Lee Tank 6 मई, 1944 को कोहिमा में द्वितीय डिवीजन के ब्रिटिश सैनिकों का समर्थन करने के लिए कोहिमा रिज पर चढ़ते समय एक पेड़ से टकरा गया था.
Khriepra-u Rutsa
85 वर्षीय Khriepra-u Rutsa, 1944 में अपने गांव में जापानी और ब्रिटिश सैनिकों के बीच लड़ाई के दौरान एक युवा लड़की थीं. Khriepra-u Rutsa अपना अनुभव शेयर करते हुए वो कहती हैं, “एक रात जापानियों का एक समूह घर आया और हमारा सारा चिकन खा गया.ृ
Kuou Kesiezie
कोहिमा की लड़ाई में जीवित बचे 108 वर्षीय Kuou Kesiezie को भी इस युद्ध से जुड़ी कई घटनाएं याद हैं. युद्ध के बारे में बात करते-करते आज भी वो कई बार रो पड़ते हैं.
Kuozeu Vizo
98 वर्षीय Kuozeu Vizo इस खूनी लड़ाई की यादों के बारे में बात करते हुए अपने हाथों को एक साथ पकड़ लेती हैं. उसके गांव ने बमबारी का दंश झेला था. उन्होंने कहा, “मुझे जब उन्होंने अपने गांव का पुनर्निर्माण शुरू किया तो उन्हें यह नहीं पता था कि कौन सी जमीन किसकी है.
पूर्वोत्तर का बड़ा नुकसान
माना जाता है कि पूर्वोत्तर के इस युद्ध में जापान को कुल 53,000 सैनिकों को खोना पड़ा. ब्रिटिश और भारतीय सेना को इंफाल में 12,500 और कोहिमा में 4,000 जवानों का नुकसान उठाना पड़ा.