बात है 8 अप्रैल, 1929 की. केन्द्रीय विधान सभा (Central Legislative Assembly) के सदस्य इकट्ठा हुए थे और रोज़मर्रा की चर्चा में व्यस्त थे. अचानक एक चीज़ उड़कर आई और हॉल के बीचों-बीच मौजूद खाली जगह पर गिरी.
कुछ ही पलों में कमरा धुएं से भर गया और इसके साथ ही दो स्वर गूंज उठे-
“इंक़लाब ज़िन्दाबाद” “साम्राज्यवाद का नाश हो”दोनों युवक इसके बाद नारे लगाते हुए पर्चे फेंकने लगे और कहा, “बहरों को सुनाने के लिए बम के धमाके की ज़रूरत पड़ती है.”
बम विस्फोट से डरकर सभा के सदस्यों में अफ़रा-तफ़री मच गई, लोग इधर-उधर भागने लगे. बम फेंकने वाले दोनों युवक थे- भगत सिंह(Bhagat Singh) और बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt). बम फेंकने का मकसद था ट्रेड्स ऐंड डिस्प्यूट्स ऐंड पब्लिक सेफ़्टी बिल (Trades And Disputes And Public Safety Bill) का विरोध, बहरों को सुनाना, सो रहे साम्राज्यवादियों को जगाना.
बम फेंकने के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त बेहद आसानी से भाग सकते थे लेकिन दोनों भागे नहीं.
ये दृश्य सभी ने फ़िल्मों में देखे ही होंगे. भगत सिंह पर बनी हर फ़िल्म में ये दृश्य दिखाया गया है, कैमरे का फ़ोकस भगत सिंह पर रखकर. भगत सिंह के साथी की भी स्क्रीन प्रेजे़ंस (Screen Presence) थी.
India Today की एक रिपोर्ट के अनुसार, सालों बाद बटुकेश्वर दत्त के वकील असफ़ अली (Asaf Ali) ने एक इंटरव्यू में बताया कि बटुकेश्वर ने बम नहीं फेंका था, वो सिर्फ़ भगत सिंह के साथ आख़िरी वक़्त का रहना चाहते थे. सरेंडर करते हुए उन्होंने अंग्रेज़ से झूठ कहा कि दोनों में से एक बम उन्होंने फेंका था.
भगत सिंह को तो पूरा देश ही नहीं पूरी दुनिया जानती है, पूजती है, सम्मान करती है. बहुत दुख की बात है कि उनके साथी बटुकेश्वर दत्त को कम ही लोग जानते हैं, याद करते हैं. ये कहानी है स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त की. बटुकेश्वर दत्त की तरह ही भारत की आज़ादी (Freedom Movement) के लिए हज़ारों युवाओं ने अपने प्राणों की आहुति दे दी लेकिन उनका नाम इतिहास में कहीं ग़ुम हो गया है.
कौन थे बटुकेश्वर दत्त?
बटुकेश्वर दत्त, उर्फ़ बी.के.दत्त (B.K.Dutt) उर्फ़ मोहन (Mohan) उर्फ़ बट्टू (Battu) का जन्म 18 नवंबर, 1910 में बर्धमान, पश्चिम बंगाल (Bardhman, West Bengal) के एक गांव में हुआ. उनके माता पिता का नाम गोश्ठा बिहारी दत्त (Goshtha Bihari Dutt) और कामिनी देवी (Kamini Devi) था.
दत्त का बचपन कानपुर, उत्तर प्रदेश (Kanpur, Uttar Pradesh) में बीता. उन्होंने थियोसॉफ़िकल हाई स्कूल (Theosophical High School) और पृथ्वीनाथ चक हाई स्कूल (Prithvinath Chak High School) से पढ़ाई की. पृथ्वीनाथ चक हाई स्कूल में पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाक़ात सुरेंद्रनाथ पांडे और विजय कुमार सिन्हा से हुई. आगे चलकर तीनों कॉमरेड्स बने.
क्रांतिकारी जीवन
किशोर बटुकेश्वर ने मॉल रोड, कानपुर (Mall Road, Kanpur) में अंग्रेज़ों को एक मासूम बच्चे को बेरहमी से पीटते देखा, बच्चे की बस इतनी ग़लती थी कि वो उस सड़क पर चला गया था जहां भारतीयों का चलन प्रतिबंधित था. इस घटना ने बटुकेश्वर को अंदर तक झकझोर दिया और वो किशोरावस्था में ही स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गए.
बटुकेश्वर प्रताप (Pratap) के संपादक सुरेशचंद्र भट्टाचार्य (Sureshchandra Bhattacharya) के ज़रिए वे एचआरए (Hindustan Republican Association, HSRA) के उपसंस्थापक सचिन्द्रानाथ सान्याल के संपर्क में आए.
भगत सिंह से मुलाकात
भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने लगभग एक ही समय पर एचआरए जॉइन किया. बटुकेश्वर 1924 में भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद (Chandra Shekhar Azad) से मिले.
1924 में कानपुर में आई बाढ़ के राहत कार्य में बटुकेश्वर और भगत सिंह दोनों शामिल थे और यहां उनकी पक्की दोस्ती हो गई. दत्त ने भगत सिंह को बंगाली सीखने में भी मदद की.
काकोरी कांड (Kakori Incident) के बाद अंग्रेज़ों ने कई स्वतंत्रता सेनानियों को गिरफ़्तार कर लिया एचआरए ने इन गिरफ़्तारियों का विरोध किया. बटुकेश्वर दत्त बिहार चले गए और वहां से कलकत्ता. मज़दूरों और आम जनता के साथ उन्होंने अपने साथियों की गिरफ़्तारी का विरोध किया.
HSRA का गठन
1927 में एचआर को नाम बदलकर हिन्दुस्तान सोशियलिस्ट रिपब्लिकन एसोशिएशन (Hindustan Socialist Republican Association, HSRA) रखा गया. पार्टी का मक़सद था पूरी आज़ादी. एचएसआरए में काम करते हुए बटुकेश्वर ने बम बनाना सीखा.
1929 में सेन्ट्रल असेम्ब्ली बम मामले में बटुकेश्वर को गिरफ्तार कर लिया गया, भगत सिंह को फांसी के लिए भेजा गया और दत्त को उम्रक़ैद की सज़ा हुई. अंडमान के काला पानी से उन्हें हज़ारीबाग जेल, फिर दिल्ली और फिर बांकीपुर जेल भेजा गया.
1938 में जेल से रिहाई
Hindustan Times की एक रिपोर्ट के अनुसार, बिगड़ते स्वास्थ्य की वजह से बटुकेश्वर को 1938 में जेल से रिहा कर दिया गया. शर्त थी कि वो किसी भी तरह की राजनैतिक गतिविधियों में हिस्सा नहीं लेंगे. बटुकेश्वर गांधी के साथ काम करने लगे और उन्हें दोबारा जेल हुई. देश की स्वतंत्रता के बाद ही बटुकेश्वर दत्त को जेल से रिहा किया गया.
बटुकेश्वर दत्त की तबीयत बिगड़ती चली गई. उन्हें बिहार से दिल्ली लाया गया. जब वे अस्पताल में थे जब भगत सिंह की मां उनसे मिलने पहुंची थी.
20 जुलाई, 1965 को बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली में आखिरी सांस ली. उनका अंतिम संस्कार इंडिया पाकिस्तान बॉर्डर के पास हुसैनीवाला में किया गया.
हमारी कोशिश है कि इस लेख के माध्यम से हम बटुकेश्वर दत्त को भारतीयों की स्मृति में हमेशा के लिए अंकित हों, उन्हें भी वही सम्मान मिले जिनका उन्हें बरसों से इंतज़ार है.