भिंड के लोग 35 सालों से इस भक्त की अनोखी आस्था के गवाह हैं.
भिंड. कहते हैं कि भक्ति में बहुत शक्ति होती है. इसके प्रमाण भी कई बार देखने को मिलते हैं. भिंड में रहने वाले 65 वर्षीय विवेक कुमार त्रिपाठी ऐसा ही एक प्रमाण हैं. सरोवर के बीचोबीच बने सती माता मंदिर में दीपक जलाने त्रिपाठी हर रोज तैरकर जाते हैं. इस अनोखी भक्ति की शुरूआत उन्होंने 35 साल पहले की थी. यह सिलसिला सालों से लगातार जारी है, लेकिन यह शुरू कैसे हुआ और किस कारण से? इस बारे में त्रिपाठी ने न्यूज़18 लोकल से बात की.
शहर के वनखंडेश्वर मंदिर के पास रहने वाले विवेक कुमार त्रिपाठी उर्फ पप्पू दादा ने बताया ‘वैसे मैं लखनऊ का रहने वाला हूं, लेकिन पिछले 62 साल से मैं भिंड में ही रह रहा हूं.’ उनके मुताबिक 35 साल पहले इस मंदिर के आसपास असामाजिक तत्व बैठे रहते थे. तब मंदिर के आसपास पानी नहीं था. आसानी से मंदिर तक पहुंचा जा सकता था. मंदिर के पास असामाजिक तत्वों को हटाने और वहां पूजा पाठ शुरू करने के उद्देश्य से मंदिर में दीपक लगाने की शुरुआत उन्होंने की थी. इसके कुछ साल बाद मंदिर के आसपास पानी भर जाने से उनके साथ जो लोग दीपक लगाने जाते थे, उन्हें मंदिर जाना बंद करना पड़ा. लेकिन त्रिपाठी को चूंकि तैरना आता था तो उन्होंने दीपक लगाना जारी रखा, जो अब दिनचर्या का नियम बन चुका है.
क्या दीप लगाने से कभी नहीं चूकते त्रिपाठी?
रोज़ाना शाम के समय त्रिपाठी तैरकर मंदिर में दीपक जलाने जाते हैं. सर्दी, गर्मी या बारिश ही क्यों न हो रही हो, उनकी आस्था डगमगाती नहीं. वह बताते हैं कि 65 साल की उम्र में भी वह पूरी तरह स्वस्थ हैं. उनका कहना है ‘जब मैं भिंड से बाहर होता हूं, तभी दीपक लगाने माता के मंदिर नहीं जा पाता, लेकिन शहर में रहते हुए ऐसा कभी नहीं हुआ जब मैं माता के मंदिर न गया हूं.’
स्थानीय लोगों का कहना है कि वो पिछले कई सालों से त्रिपाठी का यह नियम देखते आ रहे हैं. उन्हें ऐसा करते देख सभी ने ऊर्जा का संचार होने की बात कही. समाजसेवी राेहित शुक्ला ने यह भी बताया कि एक समय की बात है जब हादसे में कुछ युवक सरोवर में डूब रहे थे, तब पप्पू दादा ने ही एक की जान बचाई थी.
क्या इस मंदिर को जानते हैं आप?
शहर की हृदय स्थली में गौरी सरोवर के ऐन बीच में सती माता का मंदिर है. इस मंदिर को अक्सर देखने वाले शहर के कई लोग मंदिर के नाम से वाफिफ शायद ही हों. इस मंदिर को मुखोबुआ सती माता मंदिर कहा जाता है. यह मंदिर करीब सवा तीन सौ साल पुराना बताया जाता है.