केंद्रपाड़ा के सिलीपुर गांव के रजनीकांत दास बी फ़ार्मिंग करते हैं. वे पिछले 14 साल से मधुमक्खी पालन कर रहे हैं. अपने खेत में रजनीकांत ने मधुमक्खी के 150 बक्से लगा रखे हैं.
नई दिल्ली: भारत में पारंपरिक फसलों की खेती मौसम की मेहरबानी पर निर्भर करती है. बहुत से किसान इस साल बेमौसम की बारिश की वजह से नुकसान उठा सकते हैं. देश के कई इलाकों में बेमौसम की बारिश की वजह से तिल, सोयाबीन, मूंगफली और धान की फसल को काफी नुकसान हुआ है. परंपरागत खेती करने वाले किसान एक तरफ जहां मौसम की मार झेलते हैं, वहीं दूसरी तरफ उन्हें इससे होने वाले नुकसान की भरपाई करने में भी काफी मुश्किल आती है.
परंपरागत खेती में लागत अधिक होती है जबकि कमाई बहुत कम होती है. खेती करना भी आजकल बिजनेस की तरह हो गया है. परंपरागत खेती से रिश्ता तोड़ कर बहुत से किसान आजकल जैविक खेती, पॉलीहाउस फार्मिंग, पशुपालन आदि कर रहे हैं.
विकल्प के तौर पर पारंपरिक खेती से अलग हटकर काम करने की वजह से कई किसान काफी मुनाफा कमा रहे हैं. उड़ीसा के केंद्रपाड़ा जिले में कम से कम 1000 से अधिक किसान जीवन यापन के लिए मधुमक्खी पालन करते हैं.
700 रुपए तक मिलता है भाव
मधुमक्खी पालन और शहद बेचना किसानों के लिए कमाई का शानदार मौका बनकर सामने आया है. केंद्रपाड़ा के सिलीपुर गांव के रजनीकांत दास बी फ़ार्मिंग करते हैं. वे पिछले 14 साल से मधुमक्खी पालन कर रहे हैं. अपने खेत में रजनीकांत ने मधुमक्खी के 150 बक्से लगा रखे हैं. रजनीकान्त को इनसे 300 किलो शहद जुटाने में मदद मिलती है. इस शहद का भाव 600-700 रुपए किलो है. वह इस शहद को कटक, भुवनेश्वर और पुरी के साथ अन्य इलाकों में बेचते हैं.
साल में 10 लाख की कमाई
रजनीकांत दास ने कहा हर साल मधुमक्खी पालन के जरिए शहद बेचकर वे 10 लाख रुपए की कमाई करते हैं. कोरोना संकट में शहद की बिक्री पर कुछ असर पड़ा था, लेकिन अब हालात पहले से बेहतर हैं. मधुमक्खी पालने वाले बलिशाही गांव के हेमंत कुमार बेहरा ने कहा कि पारंपरिक पारंपरिक खेती की तुलना में मधुमक्खी पालन किसानों और कारोबारियों के लिए आमदनी का बेहतरीन जरिया बनकर सामने आया है.
जॉब छोड़कर मधुमक्खी पालन
दिलचस्प है कि अब कई ऐसे लोग भी मधुमक्खी पालन में उतर आए हैं जो पहले देश के बड़े शहरों में जॉब करते थे. हेमंत रिलायंस के आईटी सेगमेंट में मुंबई में जॉब करते थे. साल 2017 में उन्होंने मधुमक्खी पालन के लिए जॉब छोड़ कर अपने गांव लौटने का फैसला किया. इस इलाके के 1000 से अधिक किसान मधुमक्खी पालन के जरिए साल में ₹10 लाख तक की कमाई कर रहे हैं.
घर से बिक जाता है शहद
केन्द्रपाड़ा के ईश्वर पुर गांव के नारायण साहू ने कहा कि सरकार ने कारोबारियों और ट्रेडर को किसानों के घर से शहद जुटाने की अनुमति दे दी है. हर साल मई से जुलाई के बीच कारोबारी किसानों से शहद खरीद लेते हैं. एक किसान मधुमक्खी के बक्से से साल में 5 से 8 बार शहद जुटा सकता है. सिर्फ ओडिशा में ही नहीं बल्कि आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों में भी नेचुरल शहद की मांग बढ़ रही है.