रेनुका अपने तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे थे. उनका बड़ा भाई बेंगलुरु पढ़ाई के लिए चला गया लेकिन रेनुका परिवार के साथ रह कर ही पढ़ाई कर रहे थे. स्कूल से आने के बाद वो पिता के साथ जाकर भिक्षा मांगते. 12 साल की उम्र में उन्होंने एक घरेलु सहायक के तौर पर भी काम क
ग़रीबी और और अभाव बचपन छीन लेता है. हर दिन उम्मीद न छोड़ने का संघर्ष करते रहना पड़ता है. इस बदहाली को मात देने का हौसला ही आपको आगे बढ़ने देता है. कुछ ऐसी ही कहानी है रेनुका आराध्य की है, जिन्होंने ग़रीबी और संघर्ष से निकलकर एक कंपनी खड़ी कर दी. 150 लोगों को रोज़गार दिया और 38 करोड़ का सालाना टर्नओवर है.
ये सफ़र रिस्क, हार न मारने के जज़्बे और अपमान को सम्मान में बदलने की ज़िद के साथ भरा हुआ है.
पिता के साथ भिक्षा मांगा करते
बेंगलुरु के अनेकल तालुक के एक छोटे से गांव में जन्म हुआ. रेनुका के पिता पुजारी थे और उनके पास आय का कोई और ज़रिया नहीं था. ऊपर से परिवार के पास बस एक एकड़ ज़मीन थी जिस पर पूर्ति भर कुछ नहीं उगाया जा सकता था. यही वजह रही कि घर की भूख के लिए रेनुका अपने पिता के साथ भिक्षा मांगा करते थे. भिक्षा में मिले अनाज को बेचकर वो परिवार चलाते थे.
रेनुका अपने तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे थे. उनका बड़ा भाई बेंगलुरु पढ़ाई के लिए चला गया लेकिन रेनुका परिवार के साथ रह कर ही पढ़ाई कर रहे थे. स्कूल से आने के बाद वो पिता के साथ जाकर भिक्षा मांगते. 12 साल की उम्र में उन्होंने एक घरेलु सहायक के तौर पर भी काम किया.
कुछ साल बाद उनके पिता ने उनका एडमिशन चिकपेट में करवा दिया ताकि वो 10वीं की पढ़ाई पूरी कर सकें. Your Story की रिपोर्ट के अनुसार, उनकी फ़ीस उनके टीचर्स देते थे. इसके बदले वो रेनुका से अपने घरेलु काम करवा लेते थे. मगर दाखिले के तीन साल बाद उन्हें ख़बर मिली कि पिता की मृत्यु हो गई जिसके बाद उन्हें वापस गांव लौटना पड़ा.
15 की उम्र में फ़ैक्ट्री में किया काम
पिता के जाने के बाद कम उम्र में ही मां और बहन की ज़िम्मेदारी रेनुका पर आ गयी. उनके बड़े भाई ने शादी के बाद खुद को परिवार से अलग कर लिया और परिवार की ज़िम्मेदारी लेने से भी साफ़ इनकार कर दिया. नौबत ये आ गयी कि उन्हें अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी और काम करना पड़ा.
महज 15 की उम्र में उन्होंने कई फ़ैक्ट्रियों में काम किया. पैसे की कमी को पूरा करने के लिए उन्होंने रात में बतौर सिक्योरिटी गार्ड भी काम किया. उन्होंने एक प्रिटिंग सेंटर में झाड़ू लगाने का काम किया. रेनुका के काम से इस सेंटर के लोग खु़श हुए और उन्हें एक साल तक प्रिंटिंग और App में मदद करने का काम किया.
यहां से काम छोड़ने के बाद उन्होंने Shyam Sunder Trading Company में बतौर हेल्पर काम शुरू किया. यह कंपनी बैग और सूटकेस बनाने और व्यापार का काम करती थी. यहां रेनुका इन प्रोडक्ट्स को लोड करने का काम करते थे. साल 1987 में उन्हें सेल्समैन बना दिया गया और कुछ दिन यहां इस पद पर काम करने के बाद उन्होंने ख़ुद का काम शुरू करने के बारे में सोचा. रेनुका ने सूटकेस और वैनिटी बैग्स के कवर बनाकर उन्हें साइकिल से शहरों में जाकर बेचना शुरू कर दिया. मगर ये धंधा उन्हें जमा नहीं और नुकसान हो जाने की वजह से उन्हें एक बार फिर सिक्योरिटी गार्ड का काम करना पड़ा.
नारियल के पेड़ पर चढ़कर पैसे कमाए
खैर, 20 साल की उम्र में उनकी शादी पुष्पा से हुई. पत्नी ने पति का साथ देने के लिए एक कपड़ा फैक्ट्री में काम शुरू कर दिया. ये कपल मिलकर उस समय 600 रु. कम लिया करता था. वो नारियल के पेड़ पर चढ़ने के 20 रुपये लेकर अतिरिक्त कमाई भी कर लेते थे. सिक्योरिटी गार्ड का काम करते हुए उन्हें ड्राइविंग का विचार आया. उन्हें लगा ये काम कभी बंद नहीं हो सकता है. इसके बाद उन्होंने कुछ उधार लेकर और अपनी शादी की अंगूठी बेचकर गाड़ी चलाना सीखा और ड्राइविंग लाइसेंस लिया.
द बेटर इंडिया से बात करते हुए रेनुका ने कहा, टैक्सी ऑपरेटर सतीश रेड्डी ने उनकी मदद की. “वह मुझे अपने घर ले गया और मुझे ट्रेन किया. उन्होंने यात्रियों और ड्राइविंग की स्किल सिखाई, जिससे आत्मविश्वास को बढ़ाने में मदद मिली. मैंने उसके साथ दो साल काम किया.”
बन गए ड्राईवर…
इसके बाद उन्होंने एक ट्रांसपोर्ट कंपनी जॉइन की. ये कंपनी डेड बॉडी भी ट्रांसपोर्ट करती थी. रेनुका ने कहा, “मैंने वहां चार साल काम किया और लगभग 300 शवों को ट्रांसपोर्ट किया. कई बार, मैं दो दिनों के लिए शव के साथ अकेले यात्रा करता था. मैंने अपने आप को सौभाग्यशाली समझा कि मृतक को अपने परिवार के घरों में अंतिम समय पर पहुंचने में मदद मिलेगी. मैंने अपनी वर्दी और गर्व अपने कंधे पर पहना. मैं एक ड्राइवर होने पर गर्व महसूस कर रहा था.”
सब काम ठीक चल रहा था. हुआ दरअसल ये कि एक बार उन्हें कुछ काम से एक कंपनी में जाना था. वो वहां गए और उन्हें बाहर ही रुकने को कह दिया गया और शीट्स को सिक्यूरिटी गार्ड के ज़रिये भेजने को कहा, उस दिन उन्हें बहुत महसूस हुआ. उन्होंने सोचा कि वो एक ऐसी कंपनी बनाएंगे, जहां सभी को सम्मान दिया जाए. जिसके बाद 2000 में उन्होंने लोन पर अपनी कार लेने के लिए अपने भाई के गारंटर बनने को कहा, लेकिन उन्होंने मना कर दिया. इसके बाद उन्होंने इधर-उधर से इंतजाम करके गाड़ी ख़रीदी.
इसके बाद कुछ ही सालों में उन्होंने 6 टैक्सी और 12 ड्राईवर रख लिए, जो 12 घन्टे की शिफ्ट में काम करते थे. उन्होंने दो साल तक अपनी गाड़ियां शहर की Spot City Taxi में लगाए रखी.
शुरू की अपनी कंपनी
साल 2006 में, उन्हें पता चला कि Indian City Taxi नाम की एक कंपनी मंदी की वजह से सेल पर है. जिसके बाद उन्होंने अपनी सारी गाड़ियां बेच दी और इस कंपनी को खरीद लिया.इस कंपनी के पास 30 कैब्स थी. उन्होंने इन कैब्स को ‘Pravasi Cabs’ के तहत रजिस्टर करवाया. रेनुका का पहला क्लाइंट Amazon India था. काम बढ़ता गया और उनका 30 कैब्स का बिज़नेस 300 तक पहुंच गया. उनकी क्लाइंट्स लिस्ट में LinkedIn, Walmart, Akamai, General Motors जैसे बड़े नाम हैं.
2018 तक उनकी कंपनी चीनी और हैदराबाद तक फ़ैल गयी. वर्तमान में उनकी 1,300 कैब्स चल रही है. मगर ओला और उबर के बाद इस संख्या में गिरावट आई है. रिपोर्ट्स के अनुसार, अपने चरम पर, इस व्यवसाय ने 46 करोड़ रुपये का कारोबार किया. हालांकि वर्तमान में इसका 38 करोड़ रुपये का कारोबार है, लेकिन उसका लक्ष्य अगले कुछ वर्षों में 100 करोड़ का आंकड़ा पार करना है!