Bhind: गांव में नहीं है मुक्तिधाम, बुजुर्ग महिला का बीच सड़क पर करना पड़ा अंतिम संस्कार

एमपी में भिंड जिले के अजनौल गांव में बुजुर्ग महिला की मौत के बाद उसका अंतिम संस्कार सड़क पर ही करना पड़ा। कारण यह कि इस गांव में आज तक मुक्तिधाम नहीं बना। प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री ओपीएस भदौरिया के मेहगांव विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा इस गांव में लोग सामान्य दिनों में खेतों में अंतिम संस्कार करते हैं। बारिश के चलते अभी खेतों में पानी भरा है। इसलिए शनिवार को मृत महिला का सड़क पर अंतिम संस्कार करना पड़ा।

 
bhind
भिंडः केंद्र हो या राज्य सरकार, समाज के अंतिम छोर तक विकास पहुंचाने के दावे करती हैं। लेकिन हकीकत यह है कि देश के कई गांव अब भी विकास की रोशनी से कोसों दूर हैं। मध्य प्रदेश के भिंड जिले के कई गांव ऐसे हैं जहां सड़क और अस्पताल तो दूर, मुक्तिधाम तक मौजूद नहीं हैं। प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार में कद्दावर मंत्री ओपीएस भदौरिया के विधानसभा क्षेत्र मेहगांव से ऐसी ही एक तस्वीर सामने आई है। मेहगांव के अजनौल गांव से आई यह तस्वीर मानवता को शर्मसार करने वाली है। यहां एक बुजुर्ग महिला के मरने के बाद उसे अंतिम संस्कार के लिए मुक्तिधाम तक नसीब नहीं हुआ। परिजनों को बीच सड़क पर उसका अंतिम संस्कार करना पड़ा। इसका कारण यह है कि गांव में मृतकों को जलाने के लिए मुक्तिधाम ही नहीं बनाया गया है।

शनिवार को अजनौल गांव के निवासी हरभजन सिंह की मां बिटोली बाई का निधन हो गया। मृतक महिला के अंतिम संस्कार के लिए मुश्किल खड़ी हो गई। गांव में शांतिधाम नहीं है। खेतों में बारिश की वजह से पानी भर जाने से वहां भी अंतिम क्रिया नहीं की जा सकी। ऐसे में परेशान ग्रामीणों ने अजनौल के आम रास्ते पर सड़क पर ही अंतिम संस्कार कर दिया। गुस्साए ग्रामीणों ने एक बार फिर मांग की है कि कोई उनकी सुनवाई कर ले और गांव में एक मुक्तिधाम बनवा दे। हरभजन सिंह को अपनी वृद्ध मां की मौत का इतना दुख नहीं है जितना दुख गांव में मुक्तिधाम ना होने के चलते उनका अंतिम संस्कार सड़क पर करने की मजबूरी को लेकर है।

गांव में वर्षों से मुक्तिधाम की दरकार है, लेकिन किसी ज़िम्मेदार ने आज तक इसकी सुध नहीं ली। लिहाजा स्थानीय लोग मृतकों का अंतिम संस्कार अपने खेतों पर करते हैं। बरसात में जब खेतों तक जाने के लिए रास्ता नहीं होता है तो अंतिम संस्कार के लिए इसी तरह की तस्वीरें सामने आती हैं।

ग्रामीणों ने बताया कि कई बार इस सम्बंध में गांव के सरपंच और जनपद में मौजूद अधिकारियों से गुहार लगाई है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती है। जब किसी का परिजन स्वर्ग सिधार जाता है तो उसका अंतिम संस्कार वे अपने खेतों में कर लेते हैं। बारिश के मौसम में सडक पर ही अंतिम संस्कार करना पड़ता है। सबसे ज्यादा समस्या तो भूमिहीन के लिए है। उनके लिए तो सामान्य दिनों में भी सड़क पर ही अंतिम संस्कार का आसरा है।