नई दिल्ली. इस साल रक्षाबंधन के त्योहार पर चीन को बड़ा झटका लगा है. बहनों ने अपने भाई की कलाई पर सिर्फ भारतीय राखी बांधकर चीन के कारोबार को तगड़ी चोट पहुंचाई है. कंफेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने बताया कि इस साल चीन से आई राखियों की बिलकुल डिमांड नहीं रही.
कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीसी भरतिया और राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने बताया कि इस साल पूरे देश में लगभग 7 हजार करोड़ रुपये का राखी का व्यापार हुआ. वह समय चला गया है जब भारतीय लोग चीनी राखी के डिजाइन और लागत कम होने के कारण उसे खरीदने के लिए उत्सुक रहते थे. अब लोगों की मानसिकता में परिवर्तन आ रहा और वे भारतीय उत्पादों की खरीद ज्यादा करते हैं.
रंग लाया वैदिक राखी का अभियान
कैट के अनुसार, इस साल पूरे देश में व्यापारी संगठनों ने वैदिक रक्षा राखी की तैयारियों पर अधिक जोर दिया. वैदिक राखी का अभियान रंग लाया और घरेलू उत्पादकों को इसका लाभ मिला. वैदिक राखी बनाने के लिए दूब घास, अक्षत यानी चावल, केसर, चंदन और सरसों के दाने को रेशम के कपड़े में सिलकर कलावा से पिरोया जाता है. इन पांच चीजों का विशेष वैदिक महत्व है जो परिवार की रक्षा और उपचार से संबंधित है.
पिछले साल से दोगुना कारोबार
कोरोना के बाद देश में रक्षाबंधन पर व्यापार में बड़ी गिरावट आई थी, लेकिन इस साल बाजारों की रौनक ने उस कमी की भरपाई कर दी है. कारोबार से जुड़े लोगों का कहना है कि बीते साल करीब 3,500 करोड़ रुपये का कारोबार रक्षाबंधन के त्योहार पर हुआ था, जो इस साल दोगुना बढ़कर करीब 7 हजार करोड़ रुपये पहुंच गया है.
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