कोलाकाताः कलकत्ता हाई कोर्ट ने ममता बनर्जी सरकार को बड़ी राहत देते हुए दुर्गा पूजा समितियों पूजा अनुदान के वितरण की अनुमति दे दी है. बंगाल में दुर्गा पूजा समितियों को वित्तीय अनुदान देने संबंधी ममता सरकार के फैसले के खिलाफ दायर की गई जनहित याचिकाओं पर कलकत्ता उच्च न्यायालय ने 8 सितंबर को ही सुनवाई पूरी कर ली थी, लेकिन फैसला सुरक्षित रख लिया था. मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव और राजर्षि भारद्वाज की खंडपीठ अनुदान राशि का उपयोग कैसे किया जा सकता है, इसको लेकर छह.सूत्रीय सख्त दिशा निर्देश भी जारी किए हैं. ममता बनर्जी ने इस साल राज्य की 43,000 दुर्गा पूजा समितियों को 60,000 रुपये का अनुदान देने की घोषणा की थी. आपको बता दें कि कोलकाता की प्रतिष्ठित दुर्गा पूजा को यूनेस्को ने अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (Intangible Cultural Heritage) की सूची में शामिल किया है.
कलकत्ता हाई कोर्ट में तीन जनहित याचिकाएं दाखिल कर पूछा गया था कि राज्य की 43000 दुर्गा पूजा समितियों को 60,000 रुपये का सरकारी अनुदान क्यों दिया जा रहा है? याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि राज्य सरकार अपने कर्मचारियों को महंगाई भत्ता नहीं दे पा रही है, लेकिन 43000 पूजा समितियों को 60,000 रुपये का वित्तीय अनुदान देने के लिए उसके पास पैसा है. कलकत्ता हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश प्रकाश श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति राजर्षि भारद्वाज की खंडपीठ ने इन याचिकाओं पर 29 अगस्त को सुनवाई करते हुए कहा था कि राज्य सरकार 5 सितंबर तक एक हलफनामा पेश करे और पूजा समितियों को अनुदान देने का कारण बताए.
पश्चिम बंगाल के महाधिवक्ता सोमेंद्र नाथ मुखर्जी ने 8 सितंबर को मामले में सुनवाई के दौरान कलकत्ता हाई कोर्ट को बताया कि पर्यटन, सांस्कृतिक धरोहर के विकास और जनता व पुलिस के बीच बेहतर तालमेल संबंधी व्यवस्थाएं विकसित करने के लिए दुर्गा पूजा समितियों को राज्य सरकार की ओर से दी जाने वाली अनुदान राशि का इस्तेमाल होगा. इस पर हाई कोर्ट ने पूछा कि आप जो दावा कर रहे हैं, उसी काम के लिए दुर्गा पूजा समिति इन पैसा का इस्तेमाल करेंगी, यह सुनिश्चित करने का क्या रास्ता है? इसके जवाब में सोमेंद्र नाथ मुखर्जी ने बताया कि खर्च का पूरा हिसाब और बिल वाउचर लिया जाएगा, जिन समितियों को अनुदान प्राप्त करना है, उन सभी ने बिल वाउचर देने पर सहमति जताई है. जो पूजा समितियां खर्च का ब्योरा नहीं देंगी, उन्हें अनुदान भी नहीं मिलेगा.
उच्च न्यायालय की पीठ ने याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता विकास रंजन भट्टाचार्य से पूछा कि आपकी इस पर क्या राय है? भट्टाचार्य ने कहा कि 3 साल पहले राज्य सरकार ने दावा किया था कि ‘सेफ ड्राइव, सेव लाइफ’ के प्रचार प्रसार के लिए इस राशि का इस्तेमाल किया जाएगा. उसके बाद कोरोना रोकथाम इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने के नाम पर रुपए दिए गए. अब सांस्कृतिक धरोहर का नाम लेकर रुपया दिया जा रहा है. दरअसल राज्य सरकार के पास जो रुपये आते हैं, वह आम लोगों के टैक्स का पैसा होता है. उसे इस तरह से पूजा समितियों में बांटना अन्याय है. रंजन भट्टाचार्य ने आगे कहा कि पूजा के नाम पर एक खास समुदाय को सरकारी अनुदान देना असंवैधानिक है. इसी को आधार मानते हुए कलकत्ता हाई कोर्ट ने इमामों को भत्ता देने के राज्य सरकार के फैसले को रद्द किया था. इस तरह के अनुदान के लिए राज्यपाल की अनुमति की जरूरत पड़ती है, लेकिन राज्य सरकार के संबंधित विभाग एक दूसरे को पत्र भेजकर रुपये दुर्गा पूजा समितियों को पैसे दे रहे हैं. यह पूरी तरह से गैरकानूनी है और इस पर रोक लगनी चाहिए.