बिहार में निकाय चुनाव पर रोक लग चुकी है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो 10 अक्टूबर को लोग वोट कर रहे होते। दूसरे फेज का चुनाव 20 अक्टूबर को तय किया गया था। मगर पटना हाईकोर्ट की नजरें आरक्षण के मुद्दे पर टेढ़ी हो गई। इसके बाद बिहार सियासत में घमसान छिड़ा हुआ है। आरक्षण अब राजनीतिक मुद्दा बन चुका है।
नील कमल, पटना : बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा कि पिछले दिनों पंचायत चुनाव हुए थे। अगर उस समय भी कोई सुप्रीम कोर्ट चला जाता तो पंचायत चुनाव भी रूक जाती। बिहार की तरह महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में भी पहले से आरक्षण मिला हुआ है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में जब विशेष आयोग गठित कर ट्रिपल टेस्ट के आधार आरक्षण देने का निर्देश दे दिया, तब इससे पहले की बातें कोई मायने नहीं रखती। उन्होंने कहा कि गुजरात के गांधी नगर में भी निकाय चुनाव पर रोक लग जाती, अगर वहां कोई आरक्षण के मुद्दे पर कोर्ट की शरण में चला गया होता।
‘सरकार में बीजेपी के रहने पर ही अतिपिछड़ों को आरक्षण’
सुशील कुमार मोदी ने कहा कि बिहार में अतिपिछड़ों को तभी आरक्षण मिला, जब सरकार में BJP शामिल रही। उन्होंने दावा किया कि जब कर्पूरी ठाकुर ने आरक्षण दिया था, तब भी जनसंघ सरकार में शामिल थी। बीजेपी के समर्थन की वजह से ही नीतीश सरकार स्थानीय निकाय में अतिपिछड़ों को आरक्षण दे पाई। इसलिए इस मामले में मुख्यमंत्री या उनकी पार्टी अकेले श्रेय लेने का दावा न करे।
‘नीतीश+RJD मतलब अति पिछड़ों को अपमानित करना’
बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि नीतीश कुमार जब-जब RJD के साथ गए, तब-तब अतिपिछड़ा वर्ग को सम्मान नहीं मिला। अगर सरकार ने एक साल पहले विशेष आयोग गठित कर दिया होता, तो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन करते हुए आरक्षण देकर समय पर निकाय चुनाव कराए जा सकते थे। भाजपा चाहती है कि अतिपिछड़ों को आरक्षण देकर तत्काल निकाय चुनाव कराए जाएं फिर राहत पाने के लिए सरकार किसी भी कोर्ट में अपील करती रहे। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार की जिद और गलती के कारण निकाय चुनाव में इतनी फजीहत हुई।
सुशील मोदी ने जेडीयू से पूछा सीधा सवाल
निकाय चुनाव को लेकर सुशील मोदी यहीं नहीं रूके, उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जनता दल यूनाइटेड से पूछा कि ‘अगर सुप्रीम कोर्ट ने पिछड़ों को निकाय चुनाव में राजनीतिक आरक्षण देने के लिए विशेष आयोग बनाने का अपना निर्देश दोहराया, तब भी क्या नीतीश सरकार आयोग का गठन नहीं करेगी? आयोग बनाने और ट्रिपल टेस्ट के आधार पर अतिपिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने का सुझाव BJP का नहीं, बल्कि ये सुप्रीम कोर्ट का और पूरे देश पर लागू होने वाला दिशानिर्देश है।
AG के तीसरी बार भेजे गए मंतव्य को किसके दबाव में बदला गया?
महाधिवक्ता (AG) ने इस साल 4 फरवरी और 12 मार्च को, दो बार सरकार को पत्र लिख कर विशेष आयोग (डेडिकेटेड कमीशन) बनाने का मंतव्य दिया था। लेकिन उसका पालन नहीं हुआ। ये सुशील मोदी का दावा है। उन्होंने कहा कि जेडीयू बताए कि AG ने तीसरी बार जो मंतव्य भेजा, वो किसके दबाव में बदला गया? राज्य निर्वाचन आयोग ने महाराष्ट्र-मध्य प्रदेश के निकाय चुनावों के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के आरक्षण-संबंधी दिशानिर्देश का हवाला देकर कई बार पत्र लिखा। मुख्यमंत्री नीतीश सरकार की राय मांगी, लेकिन इस पर चुप्पी क्यों साध ली गई? नीतीश कुमार की आरक्षण विरोधी नीयत के चलते न विशेष आयोग बना, न निकाय चुनाव में आरक्षण तय हुआ। मतदान से सप्ताह भर पहले चुनाव पर रोक लगने और हजारों अतिपिछड़ा उम्मीदवारों के करोड़ों रुपए की क्षति के लिए कौन जिम्मेदार है? मुख्यमंत्री को स्थगित निकाय चुनाव के प्रत्याशियों के नुकसान की क्षतिपूर्ति का प्रावधान करना चाहिए।