जो इंसान अपनी खराब परिस्थितियों का हवाला दे कर अपनी किस्मत को कोसता रहता है वह जीवन भर गरीबी की मार ही झेलता रह जाता है. कामयाबी हमेशा उन्हें ही नसीब होती है जो बुरी परिस्थितियों से लड़कर आगे बढ़ने का दम रखते हैं. अपनी मेहनत को हथियार बना कर गरीबी से लड़ने और उस पर जीत पा कर सफल होने वाले एक ऐसी ही शख्सियत हैं प्रेम गणपति.
गरीबी में जन्में इस शख्स ने एक समय अपना पेट पालने के लिए बर्तन तक धोए, ठेला भी लगाया लेकिन ये इनकी मेहनत ही थी जिसने इन्हें आज अरबपतियों की सूची में लाकर खड़ा कर दिया है.
गरीबी के कारण पढ़ाई छोड़ी
तमिलनाडु के तूतीकोरिन जिले के नागलपुरम के एक गरीब परिवार में जन्मे प्रेम गणपति पढ़ना तो चाहते थे लेकिन उनका ये सपना 10वीं तक ही जिंदा रह पाया. गरीबी की कड़ी मार झेल रहे परिवार की चिंता में इनके पढ़ने के सपने का गला घोंट दिया. माता-पिता और सात भाई-बहनों का पेट भरने के लिए प्रेम को पढ़ाई छोड़ कर कमाई की तलाश में निकलना पड़ा. छोटी सी उम्र में ही वह स्कूल जाने की बजाए दुकानों में काम करने के लिए जाने लगे. छोटी मोटी नौकरियों के सहारे उन्हें महीने के कुल मिलाकर लगभग 250 रुपये मिल जाते थे. परिवार का पेट भर सके इसलिए वह ये पैसे अपने घर भेज दिया करते थे.
मुंबई में ठगे गए
समय बीतता गया और प्रेम के लिए ये छोटी मोटी नौकरी ही उनकी आजीविका बन गई. ऐसे में कुछ बेहतर की उम्मीद उन्हें तब दिखी जब उनके एक परिचित ने एक दिन उन्हें मुंबई चलने को कहा. उन्होंने प्रेम को एक नौकरी ऑफर की जिसका वेतन उन्होंने 1,200 रुपये प्रति माह बताया. प्रेम गणपति इस ऑफर से खुश थे लेकिन एक दिक्कत ये थी कि उन्हें अपने माता-पिता से मुंबई जाने की इजाजत नहीं मिलने वाली थी. इधर प्रेम ने अपना पूरा मन बना लिया था. यही वजह थी कि वह बिना घरवालों को बताए मुंबई के लिए रवाना हो गए.
17 साल के प्रेम सन 1990 अच्छी जिंदगी के सपने लिए मुंबई पहुंचे लेकिन उन्हें तब तगड़ा झटका लगा जब मुंबई ने उन्हें अपना शुरुआती रंग दिखाया. मुंबई पहुंचते ही प्रेम ठगे गए. उनके परिचित ने उनसे 200 रुपये लूट लिए. प्रेम के पास इतने ही पैसे थे, जिस वजह से वह वह बांद्रा में ही फंस. समस्या ये भी थी कि प्रेम को अपनी भाषा के अलावा दूसरी कोई भाषा समझ में नहीं आती थी. न शहर में उनकी कोई दूसरी जानपहचान थी. पैसे न होने की वजह से वह वापस घर भी नहीं लौट सकते थे. शायद ये किस्मत का रचा हुआ खेल ही था कि उन्हें मुंबई में रुकना ही पड़ा.
150 रुपये वेतन पर बर्तन मांजे
अब जैसे तैसे उन्हें अपना पेट पालना ही था, इसी वजह से उन्होंने अगले ही दिन माहिम स्थित एक बेकरी में काम करना शुरू कर दिया. यहां उन्हें बर्तन धोने थे, जिसके बदले उन्हें 150 रुपये प्रति माह मिलनी तय हुई. यहां एक अच्छी बात ये थी कि उन्हें सोने के लिए बेकरी में ही जगह मिल गई. जिससे उन्हें रहने के लिए कोई दूसरी छत नहीं तलाशनी पड़ी. दो साल बीत गए, इस दौरान उन्होंने कई रेस्टोरेंट्स में अजीबोगरीब नौकरियां कीं और पैसे जमा करने की कोशिश करते रहे. प्रेम के लिए तमिलनाडु से होना एक वरदान साबित हुआ क्योंकि इस वजह से उन्हें डोसा बनाने का शौक था और यही शौक आगे चलकर उनकी कामयाबी का कारण बना.
शुरू हुआ कामयाबी का सफर
प्रेम की किस्मत बदलने का साल था 1992. इसी साल उन्होंने अपने बचाए हुए पैसों से खुद का फूड बिजनेस शुरू किया. 150 रुपये किराए पर लेकर वह इडली और डोसा बेचने लगे. इसके अलावा उन्होंने 1000 रुपये में बर्तन, एक स्टोव और बेसिक सामग्री खरीदी. उसके बाद और वाशी ट्रेन स्टेशन के सामने की सड़क पर दुकान स्थापित की. 1992 तक प्रेम ने अपने दो भाइयों मुरुगन और परमशिवन को भी मुंबई बुलाकर अपने कारोबार में शामिल कर लिया था.
साफ सफाई का विशेष ध्यान रखने के कारण हर तरह के लोग उनके स्टाल पर आया करते थे. इसके ऊपर से उनके इडली-डोसा का स्वाद बिल्कुल ओरिजनल था. इन्हीं कारणों से प्रेम का काम चल पड़ा और वह हर महीने लगभग 20,000 रुपये का शुद्ध लाभ कमाने लगे. इसके अलावा प्रेम वाशी में एक छोटी सी जगह किराए पर लेकर खुद से ही सभी सामग्री और मसाला तैयार करने लगे.
झेलनी पड़ी परेशानी
सब कुछ सही चल रहा था लेकिन प्रेम को एक बार फिर से परेशानी तब झेलनी पड़ी जब नगर निगम के अधिकारियों ने लाइसेंस न होने की वजह से प्रेम और उनके भाइयों की गाड़ी जब्त कर ली. अधिकारियों ने आरोप लगाया कि ठेले के जरिए खाद्य पदार्थों को बेचकर व्यापार करने का लाइसेंस उनके पास नहीं है. ऐसे में कई बार उनका ठेला जब्त हुआ और जुर्माना भरने के बाद ही उन्हें वापस मिला. प्रेम को इस परेशानी से छुटकारा तब मिला जब उन्होंने अपना रेस्तरां खोल लिया.
जन्म हुआ डोसा प्लाजा का
आखिरकार अपने जमा किये हुए पैसों से 1997 में प्रेम गणपति और उनके भाइयों ने वाशी इलाके में वो दोसा प्लाजा खोल ही लिया जिसके लिए किस्मत उन्हें मुंबई लेकर आई थी. 5,000 रुपये महीने पर एक किराये की दुकान में 50,000 रुपये की लागत से खोले गए इस डोसा प्लाजा में उन्होंने दो लोगों को काम पर रखा. इसी डोसा प्लाजा से उनकी दोस्ती कॉलेज जाने वाले कुछ छात्रों से हुई. इन्होंने ने ही प्रेम को इंटरनेट का उपयोग करना सिखाया और इसी इंटरनेट पर उन्हें दुनिया भर से नई रेसिपी प्राप्त करने में मदद मिली.
प्रेम ने इसके साथ ही प्रेम सागर डोसा प्लाजा नामक वेबसाइट भी बना ली. अब प्रेम के डोसा प्लाजा के मेनू में डोसा की 10-15 वेरायटी शामिल हो गई थीं. 2002 तक प्रेम अपने डोसा प्लाजा से 10 लाख रुपये/प्रति माह का बिजनेस करने लगे. इसके साथ ही उन्होंने दो आउटलेट्स भी खोले और 15 व्यक्तियों को स्टाफ के रूप में काम पर भी रखा.
पा ली सफलता
इसके बाद प्रेम निरंतर बढ़ते गए. एक गरीब परिवार में पैदा हुआ लड़का, जिसने दुकान पर बर्तन तक मांजे, वह 2005 तक अपने डोसा प्लाजा को भारत की 7 अलग-अलग जगहों तक पहुंचा चुका था. 2007 में प्रेम के डोसा प्लाजा आउटलेट की संख्या देश भर में 9 हो गई. पूरे देश में डोसा प्लाजा के 23 आउटलेट खोलने के बाद उन्होंने 2008 में एशिया के सबसे बड़े मॉल में डोसा प्लाजा को स्थापित किया.
इसी साल उनके डोसा प्लाजा की एंट्री न्यूजीलैंड में हुई और उन्होंने यहां आउटलेट खोलकर अंतरराष्ट्रीय मार्केट में कदम रखा. आज के समय में 105 तरह के एक्जॉटिक वैराइटी के डोसा फ्यूजन के साथ डोसा प्लाजा के पास 27 ट्रेडमार्क डोसा हैं. आज प्रेम करोड़ों की संपत्ति के साथ भारत में डोसा प्लाजा के 45 आउटलेट्स खोल चुके हैं. इसके अलावा न्यूजीलैंड, मध्यपूर्व और दुबई समेत 10 देशों में डोसा प्लाजा के आउटलेट्स खोल चुके हैं.