देश में चुनाव 2024 में है, मगर पौने दो साल पहले ही माहौल चुनावी हो गया है। ऐसा लग रहा है कि बस कल ही चुनाव है। पूरा देश इलेक्शन मोड में आ गया है। तीन दिनों तक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अलग-अलग पार्टियों के नेताओं से दिल्ली में मिलते रहे। फ्लैश चमकते रहे। फोटो खींचाते रहे। बयान पर बयान देते रहे। मीडिया अटेंशन के सेंटर में रहे। उधर, बीजेपी ने भी अपने बाजुओं को टाइट कर लिया है।
पटना : राजनीतिक तलवारों की धार तेज की जा रही है। मैनेजर्स पूरी तरह चौकन्ना है। नीतीश का दिल्ली दौरा और कांग्रेस के भारत जोड़ो अभियान ने पटना से दिल्ली और कन्याकुमारी से कश्मीर तक के फिजां में सियासत घोल दिया है। बीजेपी भी अलर्ट है। उसके ओर से ‘शैडो बॉक्सिंग’ की जा रही है। दरअसल, कोई नामचीन मुक्केबाज जब बॉक्सिंग करने के लिए रिंग में उतरता है तो पहले हवा में घूंसे मारता है। खुद का कॉन्फिडेंस बिल्डअप करने और सामनेवाले के मनोबल को तोड़ने के लिए ऐसा किया जाता है। मुक्केबाजी के इस प्रैक्टिस को खेल की दुनिया में शैडो बॉक्सिंग कहा जाता है। जिस दिन नीतीश कुमार दिल्ली में एक के बाद एक विपक्षी नेताओं के दरवाजे पर दस्तक दे रहे थे, उसी दिन बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा केंद्रीय मंत्रियों के साथ मेगा मंथन कर रहे थे। वो ‘टारगेट 72’ को फिक्स कर रहे थे।
बीजेपी का ‘टारगेट 72’ क्या है?
2019 लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 303 सीटों पर जीत दर्ज की थी। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा मानकर चल रहे हैं कि ये 303 सीटें तो हमारी हैं ही। लोकसभा में सीटों के नंबर को बढ़ाने के लिए ‘टारगेट 72’ को लाया गया। ये 72 वो सीटें हैं, जहां पर 2019 चुनाव में बीजेपी दूसरे नंबर पर रही थी। भीतरखाने की खबर ये है कि अगर 303 में कुछ ऊंच-नीच होता है तो इन 72 सीटों से उसकी भरपाई की जा सके। चूंकि ये कोई दावा नहीं कर सकता है कि पांच साल पहले जिस सीट को जीते थे, उसे पांच साल बाद भी जीत लेंगे।
ऐसे में उन सीटों पर फोकस किया जा रहा है, जिसे बीजेपी बहुत कम मार्जिन से हार गई थी। इसके लिए केंद्र सरकार के 25 मंत्रियों को लगाया गया है। एक-एक मंत्रियों को उनके राज्य के दो से पांच सीटों की जिम्मेदारी दी गई है। उसी को लेकर जेपी नड्डा ने दिल्ली में 6 सितंबर को रिव्यू मीटिंग की। इसे मीडिया में बहुत हाइप नहीं दिया गया। काफी लो प्रोफाइल रखा गया। 2019 चुनाव के हिसाब से अगर दूसरे के साथ तीसरे नंबर वाली सीटों को मिला लिया जाए तो ये आंकड़ा 144 पर जाता है। पहले चरण में 72 सीटों पर फोकस किया जा रहा है। इन लोकसभा क्षेत्रों में केंद्रीय मंत्री 24-48 घंटे का वक्त गुजारेंगे। स्थानीय नेताओं से फीडबैक लेकर रिपोर्ट भी देंगे।
क्या कहते हैं 2019 रिजल्ट के डेटा?
पर्दे पर दिख रहा है कि 2024 चुनाव को लेकर विपक्षी पार्टियां बिसात बिछा रहीं हैं। मगर बीजेपी को अपनी तैयारी पर भरोसा है। चुनाव के लिहाज से चरणबद्ध तरीके से प्लानिंग हो रही है। 2019 में हारी हुई सीटों पर बीजेपी का खास फोकस है। ताकि बिहार, महाराष्ट्र और पंजाब की भरपाई की जा सके। आंकड़ों के मुताबिक लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी और कांग्रेस के बीच आमने-सामने का मुकाबला 190 सीटों पर हुआ था। इनमें भारतीय जनता पार्टी 175 सीटों को जीतने में कामयाब रही थी। मात्र 15 सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया था।
अलग-अलग राज्यों में बीजेपी 72 लोकसभा सीटों पर सेकेंड पोजिशन पर थी। जबकि 209 सीटों पर कांग्रेस दूसरे स्थान पर थी। मगर 2019 और 2024 के सियासी तस्वीर में अंतर आ गया है। बिहार से नीतीश कुमार खिसक गए। महराष्ट्र का ठाकरे परिवार भी चिढ़ा हुआ है। पंजाब का बादल परिवार अब मोदी के साथ नहीं है। इसके अलावा लगातार 10 साल तक सत्ता में रहने के बाद सत्ता विरोधी लहर भी असर डालता है। नड्डा और शाह इसकी काट पहले से ढूंढने में जुटे हैं।
कौन, किसके पिच पर करेगा बैटिंग?
‘भारत जोड़ो’ यात्रा से पहले राहुल गांधी ने दिल्ली में रैली की। ठीकठाक संख्या में लोग जुटे, शायद इसीलिए विरोधियों ने भीड़ का लिटमस टेस्ट नहीं किया। राहुल गांधी के भाषण से लगा कि वो महंगाई, बेरोजगारी और माहौल को 2024 चुनाव का नैरेटिव सेट करना चाहते हैं। इसके लिए भारत जोड़ों यात्रा पर निकल चुके हैं। हालांकि ये घीसा-पीटा पिच है। अगर किसी मजबूत बल्लेबाज के सामाने गेंदबाजी करनी हो तो ज्यादा सावधान रहने की जरूरत होती है। वरना छक्का कभी भी लग सकता है। वहीं, बीजेपी पहले अपना डेटा दुरुस्त कर लेना चाहती है। ताकि बॉलर की खूबियां और खामियां दोनों के बारे में अच्छी जानकारी हो। 2014 चुनाव में करप्शन का मुद्दा बनाकर नरेंद्र मोदी दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुए।
2019 चुनाव में राष्ट्रवाद और सरकारी स्कीम ने कुर्सी को बरकरार रखा। बीजेपी की ओर से 2024 चुनाव का नैरेटिव अभी से ही सुनाई देने लगा है। परिवारवाद और भ्रष्टाचार को केंद्र में रखने की कोशिश की जा रही है। इन दोनों मुद्दों पर गांधी फैमिली के साथ-साथ कई सियासी परिवार लपेटे में आ जाएंगे। पॉलिटिक्स में परसेप्शन बड़ा मायने रखता है। इसलिए सत्ता पक्ष की कोशिश होती है कि ऐसे मुद्दे उछाल दो कि हिसाब-किताब लेने-देने की झंझट ही ना रहे।