राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने एक साल पहले ही जमीनी तौर पर चुनाव की तैयार शुरु कर दी थी। संघ ने चुनाव को ध्यान में रखते हुए गुजरात को दो हिस्सों में बांटा है। एक क्षेत्र का मुख्यालय अहमदाबाद तो दूसरा क्षेत्र का मुख्यालय सौराष्ट्र में बनाया है।
हिमाचल प्रदेश में टिकट वितरण के बाद से ही भाजपा को अंतर्विरोध का सामना करना पड़ रहा है। ऐसा ही दोहराव गुजरात में नहीं देखने को मिले। इसके लिए भाजपा फूंक फूंक कर कदम रख रही है। टिकट न पाने वाले नेताओं की वजह से पार्टी को चुनाव में नुकसान नहीं हो इसके लिए भाजपा ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक की शरण ले ली है। टिकट वितरण के बाद अगर कोई नेता नाराज होता है तो संघ के कार्यकर्ता घर जाकर उसे मनाएंगे। उन्हें पार्टी की अहमियत और उससे अलग होने के नफा नुकसान समझाएंगे।
हालांकि इस टीम की भूमिका टिकटों के एलान के बाद और बढ़ जाएगी, क्योंकि फिलहाल ये टीम इतने सालों से सत्ता में रही पार्टी के लिए तैयार हुए एंटी इनकंबेंसी या नाराज कार्यकर्ता जिनके कार्य नहीं हो पाए, उन्हें पार्टी के दोबारा नजदीक लाने का प्रयास कर रही है। अब यही टीम टिकट बंटवारे के बाद जब टिकट पाने से चूके नेताओं और कार्यकर्ताओं की नाराजगी बढ़ जाएगी तो उन्हें मनाने में लग जाएगी।
गुजरात आरएसएस के एक पदाधिकारी ने नाम न छापने के अनुरोध पर अमर उजाला से कहा कि इसका पूरा खाका पहले से तैयार किया जा चुका है, जिसमे संघ के कार्यकर्ता इन नेताओं के घर और उनसे जुड़े कार्यकर्ताओं के घर-घर जाकर उन्हें पार्टी की अहमियत और उससे अलग होने के नफा नुकसान समझाएंगे। जिन्हें टिकट नहीं मिल पाएगा, ऐसे दावेदार अगर पाला बदल कर विरोधी पार्टी से खड़े हो जाए, तो उन्हें समझा बुझाकर बिठाने की जिम्मेदारी अंदरखाने संघ के वरिष्ठ स्वयंसेवकों को सौंपी जा रही है। ताकि वो पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ परेशानी न खड़ी करें और पार्टी के आधिकारिक प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार करने के लिए तैयार हो जाएं।