दृष्टिहीन शंकरलाल की अंगुलियां बन जाती हैं उनकी आंखें, छूकर कर लेते हैं नोटों की पहचान

पैसे गिनते चूरू के दृष्टिहीन शंकरलाल.

पैसे गिनते चूरू के दृष्टिहीन शंकरलाल.

चूरू. दिव्यांगता को कमजोरी समझकर कुछ लोग स्वयं को बेबस समझने लगते हैं तो कुछ ऐसे भी है जो इसे अपने पर हावी नहीं होने देते व संघर्ष के बल पर पैरों पर खडे़ हैं. चूरू के शंकरलाल सैनी दिव्यांग होने के बावजूद सभी प्रकार के नोटों की आसानी से पहचान कर लेते हैं. छोटी सी दुकान चलाने वाले सैनी प्रतिदिन आराम से दुकान को संभाल रहे हैं. आजतक उनके हिसाब किताब में किसी तरह की गड़बड़ी नहीं आई है.

परिजन बताते हैं कि शंकरलाल जब 8 साल के थे तो एक आंख लाल हो गई. इस पर नेत्र चिकित्सक को दिखाया तो उन्होंने दवा दी. लेकिन फायदा नहीं हुआ. काफी इलाज के बाद भी एक आंख से दिखना बंद हो गया. इसके बाद 10 वर्ष की उम्र में दूसरी आंख से भी पूरी तरह दिखना बंद हो गया. दिव्यांग होने के बावजूद शंकरलाल ने जीवन में हार नहीं मानी. आंखों की रोशनी जाने के बाद उन्होंने पढ़ाई नहीं की. इस बीच उन्होंने घर के बाहर छोटी से दुकान लगा ली. जहां पर रोजमर्रा का सामान बेचना शुरू किया

छूकर पहचान जाते हैं नोट

आंखों की रोशनी जाने के बाजजूद उनमें नोट पहचान करने की विलक्षण प्रतिभा को जन्म दिया. अब वे ग्राहक के नोट देने पर बता देते है कि नोट 10, 20 या 500 रुपए का है. इतना ही नहीं सामान देने के बाद बचे हुए रुपए भी ग्राहक को आराम से लौटा देते हैं. शंकरलाल की उम्र 55 साल की हो गई, लेकिन आज तक किसी ग्राहक ने उनसे किसी प्रकार की ​शिकायत नहीं की है. शंकरलाल सैनी के दो बच्ची व एक बच्चा भी हैं. उन्होंने बताया कि अकेले ही दुकान संभाल लेते हैं, हालांकि दुकान का सामान लाने में उनके परिजन उनकी मदद करते हैं.