एक गरीब किसान के घर पैदा हुई, टूट गया डॉक्टर बनने का सपना, फिर मेहनत की और IAS बनकर रच दिया इतिहास

इंसान किन परिस्थियों में जन्म लेता है ये उसके हाथ में नहीं होता लेकिन अपनी परिस्थितियों को बदलना इंसान के हाथ में जरूर होता है. यह भी बात सच है कि ऐसे विचर पढ़ना और सुनना किताबी लगता है. अधिकतर लोग यही मानते हैं कि जिस हाल में वे पैदा हुए हैं उन्हें उसी हाल में उम्र भर जीना होगा लेकिन जब कोई ऐसा उदाहरण सामने आता है तब लोग मानते हैं कि ये सब बातें केवल किताबी नहीं हैं बल्कि अपनी मेहनत से इन्हें सच भी किया जा सकता है. ठीक उसी तरह जिस तरह एक गरीब किसान की बेटी ने अपने आईएएस बनने के सपने को पूरा कर लिए. तो चलिए जानते हैं उस महिला आईएएस के बारे में जिसने अपनी मेहनत और लगन से नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया था :

कौन हैं वो महिला आईएएस

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एक पिता दिल से चाहता है कि उसके बच्चे खूब पढ़ें, कुछ बन कर उनका नाम रौशन करें लेकिन ये परिस्थितियां सबके हाथ बांध देती हैं. केरल के पिरवोम ज़िले के एक छोटे से गांव पंपाकुड़ा के एक किसान ने भी अपनी बेटी को पढ़ा लिखा कर कुछ बनाने का सपना देखा था लेकिन आर्थिक स्थिति ऐसी थी कि कई बार परिवार का पेट भरना तक मुश्किल हो जाता था. इसके बावजूद उस पिता ने अपनी बेटी को शिक्षा के पंख देने की पूरी कोशिश की और उस बेटी ने भी अपने पिता का खूब मान रखा. वो बेटी आज एक आईएएस ऑफिसर है और उसका नाम है एनीस कनमनी जॉय. एनीस के पिता चावल की खेती किया करते थे तथा उनकी मां घर से लेकर खेतों तक में काम करती थीं. एनीस की शुरुआती पढ़ाई उनके गांव के एक विद्यालय से हुई. पढ़ाई में एनीस की अच्छी रुचि देखने के बाद उनके पिता ने जैसे तैसे उन्हें हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के लिए एर्नाकुलम भेज दिया.

जब टूट गया बचपन का सपना

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माता पिता की मेहनत से एनीस बचपन में ही परिचित हो गई थी. यही कारण था कि उन्होंने यह निश्चय कर लिया था कि वह बड़ी हो कर एक डॉक्टर बनेंगी, जिससे कि उनके पिता को समाज में इज्जत प्रतिष्ठा मिल सके. एनीस पर डॉक्टर बनने का ऐसा जुनून सवार था कि उन्होंने 12वीं में जाते ही डॉक्टर बनने की तैयारी शुरू कर दी थी. वह जानती थी कि डॉक्टर बनने के लिए बहुत पढ़ाना पड़ता है और वह इसके लिए पूरी मेहनत भी कर रही थीं लेकिन इतनी मेहनत के बावजूद भी उनका डॉक्टर बनने का सपना पूरा ना हो सका.

वह मेडिकल एंट्रेंस टेस्ट में अच्छा रैंक ना ला सकीं, जिस वजह से उनका एमबीबीएस में दाखिला नहीं हुआ. एनीस आर्थिक रूप से इतनी सक्षम भी कहां थीं कि दोबारा इसके लिए प्रयास कर पातीं. भले ही एनीस का बचपन का सपना टूट गया था लेकिन कहते हैं न कि सपनों के टूटने से ज़िंदगी नहीं रुका करती. ज़िंदगी कोई ना कोई दूसरा रास्ता खोज ही लेती है. एनीस ने भी दूसरा रास्ता खोजा और त्रिवेंद्रम गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज से नर्सिंग की पढ़ाई करने लगीं. उन्होंने नर्सिंग में BSc की पढ़ाई की और एक नर्स बन गईं.

रेल यात्रा के दौरान मिल जीवन का असल लक्ष्य

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एनीस भले ही नर्स बन गई थीं लेकिन उनके लिए इतना पर्याप्त नहीं था. उन्हें पता था कि नर्स बनने से उनके पिता को वो मान सम्मान नहीं मिलेगा जो एक डॉक्टर या अधिकारी के पिता को मिलता है. लेकिन उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वो करें तो क्या करें. इन्हीं दिनों वह एक रेलयात्रा कर रही थीं जब उन्हें पता लगा कि आईएएस कैसे बनते हैं. यात्रा के दौरान एक यात्री ने एनीस को आईएएस के बारे में जानकारी दी और साथ ही यूपीएससी की परीक्षा देने का सलाह भी दी. एनीस को इस समय तक ये भी नहीं पता था कि काम करने के साथ-साथ यूपीएससी की परीक्षा दे सकते हैं या नहीं. इसी तरह एक बार एनीस मेंगलोर से त्रिवेंद्रम की यात्रा कर रही थीं तब उन्होंने देखा कि दो महिलाएं आपस में यूपीएससी के बारे में बात कर रही हैं. जिसमें से एक महिला ने बताया कि उनकी बेटी दिल्ली से यूपीएससी परीक्षा की कोचिंग कर रही है. एनीस ने उस महिला से इस बारे में और जानकारी ली और इसे लेकर अपनी दुविधाओं का निवारण खोजने लगी. एनीस को उन्हीं महिलाओं से ये पता चला कि यूपीएससी की परीक्षा कोई भी ग्रेजुएशन डिग्री करते हुए दी जा सकती है.

इस तरह रेल यात्राओं के दौरान ही एनीस को पता चला कि उनकी ज़िंदगी का लक्ष्य क्या है. उन्होंने यह तय कर लिया कि वह यूपीएससी परीक्षा की तैयारी करेंगी. लेकिन अब समस्या थी आर्थिक तंगी. एनीस जान गई थी कि यह बेहद ही कठिन परीक्षा है और इसके लिए कोचिंग लेनी पड़ेगी. लेकिन घर के हालात ऐसे नहीं थे कि वह कोचिंग करते हुए परीक्षा की तैयारी कर सकें.

जहां चाह वहां राह

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भले ही एनीस कोचिंग ना कर पाई हों लेकिन उन्होंने परीक्षा देने का विचार नहीं त्यागा. एनीस ने फैसला किया कि वह सेल्फ स्टडी करते हुए ही यूपीएससी की तैयारी करेंगी. अपनी सेल्फ स्टडी के दौरान एनीस ने सबसे ज़्यादा ध्यान दिया अखबारों पर. इन अखबारों से ही एनीस करंट अफेयर्स के बारे में अच्छे से जान पाती थीं. एनीस को समाचार पत्रों से काफी मदद मिली और उन्होंने अपनी तैयारी जारी रखी. अब परीक्षा नजदीक आ गई थी. 2010 में एनीस पहली बार यूपीएससी की परीक्षा में बैठीं और पहली बार में ही उन्होंने ऑल इंडिया 580वां रैंक प्राप्त कर लिया. भले ही वह यूपीएससी की परीक्षा पास कर चुकी थीं लेकिन ये रैंक उन्हें आईएएस के पद तक नहीं पहुंचा सकता था.

यही कारण रहा कि एनीस ने दोबारा प्रयास किया और 2011 में फिर से यूपीएससी की परीक्षा दी. इस बार उन्होंने असंभव को संभव कर दिखाया. यही वो साल था जब एक गरीब किसान की बेटी ने यूपीएससी परीक्षा में ऑल इंडिया 65वां रैंक प्राप्त किया था. आईएएस बनने के साथ ही एनीस ने यह इतिहास भी रच दिया था कि पहली बार कोई नर्स आईएएस के पद पर बैठने वाली थी.