बृजमोहन शर्मा. आज भले ही देश के बड़े पर्वतारोहियों में से एक हैं. मगर उनकी सफलता का सफ़र बहुत मुश्किल भरा रहा है. साल 2015 में मौत ने उन्हें लगभग अपने आगोश में ले लिया था. मगर अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के दम पर वह उसे मात देने में कामयाब रहे. एक समय पर वह गले तक कर्ज़ में भी डूबे गए थे, मगर उन्होंने अपना धैर्य नहीं खोया और ज़िदंगी की हर जंग जीत ली.
आज जब वह पहले भारतीय हैं, जिनके नाम माउंट एवरेस्ट को फ़तेह करने के साथ-साथ अल्ट्रा मैराथन रेस बैडवॉटर 135 और ब्राज़ील 135 पूरा करने का कीर्तिमान दर्ज है. 1974 वह साल है, जब बृज ने राजस्थान के जयपुर में अपनी आंखें खोलीं. आम बच्चों की तरह बचपन बीता. महज़ 15 साल के थे, जब अपने परिवार के साथ मुंबई आ गए. पढ़ाई के बाद बृज ने करियर के रूप में नौ-सेना को चुना. नौकरी के दौरान उन्होंने ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों को करीब से देखा और महसूस किया.
साथी सुरेश पिल्लै बने प्रेरणा
सुरेश पिल्लै ने उन्हें मैराथन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया. इस तरह बृज ने एक बार दौड़ना शुरू किया, तो फिर रुकने का नाम नहीं लिया. कड़ी मेहनत के बाद बृज की जिंदगी में आख़िर वो पल आ ही गया, जिसका उन्हें इंतज़ार था.
साल था 2015 बृज माउंट एवरेस्ट को फ़तेह करने की पूरी तैयारी कर चुके थे. उन्होंने चढ़ाई तक शुरू कर दी थी. पर नियति को कुछ और ही मंजूर था. वह अपनी मंज़िल तक पहुंचते इससे पहले नेपाल में आए विनाशकारी भूकंप ने उन्हें अपने आगोश में ले लिया. इस आपदा के कारण हुए हिमस्खलन में वो कुछ इस तरह दब गए थे कि एक पल के लिए लगा कि वो जीवित नहीं बच पाएंगे.
जहां चाह होती है, वहां राह…
मगर जीने की दृढ़ इच्छा-शक्ति के दम पर वह मौत को मात देकर वापस लौटे. हालांकि, जब वह घर लौटे, तो परिस्तिथियां उनके बिल्कुल विपरीत थीं. वह बुरे तरह से कर्ज़ में डूब चुके थे. ऐसे में दोबारा से एवरेस्ट फ़तेह करने के बारे में सोचना तक उनके लिए मुश्किल था.
ख़ैर, कहते हैं न कि जहां चाह होती है, वहां राह…
2016 में उन्होंने वापसी की और अल्ट्रा मैराथन बैडवॉटर 135 अल्ट्र मैराथन (217 किमी) दौड़ जीतने वाले भारतीय बने. इसके बाद वह साल 2017 में माउंट एवरेस्ट के लिए निकले और फ़तेह करके लौटे. अब उनकी नज़र ऑस्ट्रेलिया में होने वाली डिलिरियस वेस्ट रेस पर, जिसे जीतने के लिए वह मेहनत कर रहे हैं. भविष्य के लिए बृजमोहन को शुभकामनाएं