हरियाणा में भजनलाल की सरकार के समय राजस्थान के गांवों के लोग हरियाणा की नहर से पीने का पानी लेकर जाते थे। अब उसी भाईचारे के दम पर हरियाणा के लोग राजस्थान में बह रही सिद्धमुख नहर से पानी के टैंकर लाकर अपनी प्यास बुझा रहे हैं।
सतलुज यमुना लिंक नहर को लेकर चल रही राजनीति में हरियाणा को अपना हक कब मिलेगा यह बाद की बात है। फिलहाल चुनावी धरती आदमुपर पर नजारा अलग है, यहां किसान राजस्थान से पानी उधार लेकर काम चला रहे हैं। सरकारों और उनके वादों से इतर यह लेनदेन भाईचारे का है। ग्रामीण बताते हैं कि जब राजस्थान के गांवों में पानी की जरूरत थी तो हरियाणा के गांवों ने उनकी मदद की और अब हरियाणा के गांव राजस्थान से पानी लाकर पी रहे हैं। भाईचारे की यह मिसाल पिछले 30 साल से बरकरार है।
चौधरी भजन लाल जब पहली बार 1979 में मुख्यमंत्री बने तो उस समय उन्होंने हलके लिए पानी की व्यवस्था की। नहरों की पक्का कराया और नए रजबाहे निकलवाए। ग्रामीण बताते हैं कि उस समय महीने में नहर में पानी 21 दिन तक पानी आता था और 7 दिन नहर बंद होती थी। लेकिन अब उल्ट हो रहा है, 7 दिन पानी आता है और 21 दिन नहर बंद रहती है। इसके चलते राजस्थान बार्डर के साथ लगते गांव टेल पर पड़ते हैं। यहां के गांवों को न तो पर्याप्त पीने का पानी मिल पाता है और न ही खेतों को। पानी की कमी को पूरा करने के लिए लोगों ने भाईचारे से इसका तोड़ निकाला है।
हरियाणा में भजनलाल की सरकार के समय राजस्थान के गांवों के लोग हरियाणा की नहर से पीने का पानी लेकर जाते थे। अब उसी भाईचारे के दम पर हरियाणा के लोग राजस्थान में बह रही सिद्धमुख नहर से पानी के टैंकर लाकर अपनी प्यास बुझा रहे हैं। लोगों ने अपने घरों में कई कई हजार लीटर पानी की हौद बना रखी हैं, इसमें पानी को स्टोर किया जाता है। खास बात ये है कि यह कार्य दोनों राज्यों के गांवों की सहमति से बदस्तूर जारी है। राजस्थान के गांव भिरानी निवासी राजबीर सिंह बताते हैं कि सरकारें अपनी जगह हैं और भाईचार अपनी जगह। क्योंकि हम पड़ोसी हैं और एक दूसरे की समस्या समझते हैं, सरकारें जब पानी लाएंगी, तब लाएंगी, तक तक हम पड़ोसी के नाते एक दूसरे के काम आते रहेंगे।
कभी होते थे अंगूर के बाग, आज बारिश के इंतजार में हजारों एकड़ जमीन
ग्रामीणों का कहना है कि आदमपुर के इन गांवों में एक समय ये भी था पानी पर्याप्त मिलने से खेतों में अंगूर के बाग भी लगाए गए थे। ईंख और गेहूं की फसलें होने लगी थी। लेकिन 1996 के बाद सत्ता से बेदखल हुए भजनलाल के बाद यहां फिर से पानी की कमी होती चली गई। आज हालात ये हैं कि यहां केवल सरसों, कपास और कम पानी वाली फसलें बोई जाती हैं। इन फसलों की बिजाई भी बारिश पर निर्भर होती है। क्योंकि नहरी पानी से 10 घंटों में एक एकड़ की मुशिकल से सिंचाई हो पाती है।
भूजल न पीने लायक और न ही खेती में हो सकता प्रयोग
इन गांवों में भूजल स्तर काफी नीचे है, साथ ही पानी न तो पीने के लायक है और न ही खेती के लिए लाभदायक। इसी के चलते खेती नहरी पानी या फिर बारिश पर निर्भर करती है। आसपास के गांवों की करीब एक लाख एकड़ भूमि को नहरी पानी की दरकार है।
गर्मी के दिनों में एक टैंकर का रेट पहुंच जाता है 1000 रुपये
इन गांवों में गर्मी के दिनों में अधिक दिक्कत रहती है। गांव के लोगों ने पानी के टैंकर तैयार करा रखे हैं। जब भी पानी की किल्लत होती है तो वह राजस्थान के सिद्धमुख ब्रांच नहर से पानी भरकर लाते हैं। हालांकि, कई लोगों ने इसे कारोबार के तौर पर अपनाया हुआ है। 6 हजार लीटर पानी के टैंकर की कीमत 400 रुपये तक होती है, गर्मी के सीजन में इसका रेट 1000 रुपये तक पहुंच जाता है।
नहीं भूलते भजन लाल के कार्य
गांव बुड़ाक निवासी प्रदीप कुमार ने बताया कि चौधरी भजनलाल के बाद यहां के गांवों को पर्याप्त पानी नहीं मिला। उस समय कभी लगा ही नहीं पानी की कमी है। नहर में पानी हमेशा रहता था, अब एक तो पानी सप्ताह तक चलता है, दूसरा न तो वह साफ होता है और कई बार बहुत कम मात्रा में पानी आता है, जो खेतों तक ही नहीं पहुंच पाता। वहीं, गांव के ही कृष्ण कुमार ने कहा कि चौधरी भजन लाल के बाद परिवार के सदस्य हलके की आवाज को बुलंद तरीके से नहीं उठा सके।
चुनाव आये तो नहर में पानी और बिजली फुल
गांव बुड़ाक के कृष्ण कुमार और सरसाना के मनीराम ने कहा कि उपचुनाव इन गांवों के लिए सौगात लेकर आया है। चुनाव से पहले ही नहर में पानी 15 दिन आ रहा है। इसके अलावा, बिजली फुल चल रही है। गांवों में बिजली के कट नहीं लग रहे हैं, जबकि चुनाव से पहले हालात दूसरे थे। वहीं, नरेंद्र का कहना है कि भाजपा की सरकार आने पर पीने के पानी में सुधार हुआ है, पहले दिक्कत ज्यादा थी।