मध्य प्रदेश में एकमात्र बुरहानपुर की शाही जामा मस्जिद एकमात्र ऐसी है जहां संस्कृत में शिलालेख लिखा हुआ है। गुजरात के कारीगरों की अद्भुत कारीगरी यहां दिखती है। मस्जिद में 1000 जैतून के दानों की ताजबी मौजूद है।मस्जद क ेखने के लिए हजारों देशी-विदेशी पर्यटक यहां पहुंचते हैं। 600 साल पुराना होने के बाद भी इस मस्जिद में कोई टूट-फूट नहीं दिखाई नहीं देती।
बुरहानपुरः मध्य प्रदेश का बुरहानपुर अपने इतिहास के लिए देश दुनिया में प्रसिद्ध है। दुनिया भर के इतिहास प्रेमी बुरहानपुर आते हैं। यहां के ऐतिहासिक मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारे लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। बुरहानपुर की ऐतिहासिक शाही जामा मस्जिद का इतिहास देश की गंगा जमुनी तहजीब को बयां करता है। पूरे प्रदेश में केवल बुरहानपुर के शाही जामा मस्जिद मौजूद में संस्कृत में शिलालेख लिखा हुआ है। इस शिलालेख को देखने देशभर से इतिहास प्रेमी विदेशी पर्यटक बुरहानपुर पहुंचते हैं।
जामा मस्जिद का इतिहास
इतिहासकार मोहम्मद नौशाद ने बताया कि फारुकी राजाओं ने जब 1400 ईस्वी में बुरहानपुर बसाया था, तब पहली मस्जिद इतवारा वार्ड में बनाई गई थी। जब फारुकी राजाओं को लगा कि यह मस्जिद छोटी है तो उन्होंने गांधी चौक में शाही जामा मस्जिद का निर्माण करवाया था। इस मस्जिद को बनाने के लिए मांडवा से काले पत्थर लाए गए थे जिन्हें संगे खारा कहा जाता है। उस पत्थर से इस मस्जिद का निर्माण किया गया था। इस मस्जिद के निर्माण में खास बात यह है कि इसकी नक्काशी पत्थर की लकड़ी की तरह दिखाई देती है। यह देश के सभी मस्जिदों में सुंदर और मजबूत मानी जाती है। इस मस्जिद के निर्माण को 600 साल हो चुके हैं, लेकिन आज भी यह पुरानी नहीं लगती। वो भी तब जबकि यहां पांचो टाइम की नमाज, रमजान की तिलावत और जुम्मे की खास नमाज अदा की जाती है।
गुजरात के कारीगरों ने की है नक्काशी
इतिहासकारों के मुताबिक इस मस्जिद का निर्माण गुजरात के कुशल कारीगरों ने किया था। उन्होंने ही मस्जिद में बेहतरीन नक्काशी की थी जो आज ऐतिहासिक दस्तावेज बन चुका है। मस्जिद की नक्काशी देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। मस्जिद की नक्काशी में आज भी कोई टूट-फूट नहीं दिखाई देती। ये नक्काशियां देसी-विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं।
कमल के फूल और सूरजमुखी के फूल की कलाकारी
शाही जामा मस्जिद में गुजरात के कारीगरों ने कमल के फूल और सूरजमुखी के फूल बनाकर नक्काशी की है। उस वक्त तक भारत में गुलाब के फूल मौजूद नहीं थे। िसके बावजूद यह डिजाइन उन्होंने कैसे तैयार किया, यह पर्यटकों के लिए आज भी कौतूहल का विषय है।
संस्कृत में लिखा है शिलालेख
मस्जिद के निर्माण में देश की गंगा-जमुनी तहजीब का भी पूरा ध्यान रखा गया है। पूरे प्रदेश में केवल बुरहानपुर की शाही जामा मस्जिद में संस्कृत का शिलालेख लिखा गया है। इसे देखने के लिए गुजरात, महाराष्ट्र, मुंबई और दिल्ली के साथ-साथ विदेशों से भी पर्यटक यहां आते हैं।
जैतून की ताज़्बी केवल यहां है मौजूद
इस शाही जामा मस्जिद के इतिहास में एक और चीज जुड़ी हुई है। वह है यहां मौजूद जैतून की ताज़्बी। जैतून की लकड़ी से 1000 दानों की ताज़्बी फारुकी राजाओं ने तैयार की थी जो आज भी शाही जामा मस्जिद में मौजूद है। करीब 75 फीट लंबी यह ताज़्बी देखने में बहुत सुंदर दिखती है जिस पर पुराने जमाने में बुजुर्ग खुदा का नाम जापा करते थे।