Bihar Politics: बिहार की राजनीति में चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति पारस के बीच सियासी अदावत की चर्चा अर्से तक रही। बिहार विधानसभा चुनाव 2022 के बाद चिराग पासवान से चाचा पशुपति पारस LJP के सभी सांसदों के साथ अलग हो गए थे। अब ऐसा लग रहा है कि ये पारिवारिक लड़ाई जल्द थमने वाली है।
पटना: केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस और जमुई के सांसद चिराग पासवान के बीच चल रही जंग खत्म होने के आसार हैं। चाचा-भतीजे के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के दो गुटों के बीच की खाई कम होने का संकेत मिलने लगा है। क्योंकि पारस के नेतृत्व वाले गुट के प्रभावशाली नेता पदाधिकारी और पूर्व बाहुबली सांसद सूरजभान सिंह ने गुरुवार को चिराग पासवान को ‘देश का बड़ा दलित नेता’ बताया। सूरजभान सिंह ने यह टिप्पणी तब की जब पत्रकारों ने उनसे मोकामा में बीजेपी उम्मीदवार सोनम देवी के पक्ष में चिराग की ओर से किए गए प्रचार और रोड शो के संभावित प्रभाव के बारे में पूछा । मोकामा विधानसभा सीट पर गुरुवार को ही उपचुनाव संपन्न हुए हैं।
बिहार में तेजी से बन रहा C+ फैक्टर
अंदाजा लगाया जा रहा है कि इससे बिहार में तेजी से C+ फैक्टर बन रहा है। पहले सी यानि चिराग पासवान और दूसरे सी यानि चाचा पशुपति पारस के साथ आने की सुगबुगाहट तेज हो गई है। पारस की अगुवाई वाले गुट के बड़े चेहरे सूरजभान सिंह ने कहा कि ‘चिराग पासवान दलितों के बड़े नेता हैं। वो देश में जहां भी जाते हैं वहां बदलाव होता है और मोकामा देश से बाहर थोड़े ही है।’
क्या साथ आनेवाले हैं चिराग पासवान और चाचा पशुपति पारस
सूरजभान सिंह की इस टिप्पणी ने पारस और चिराग के बीच अलग-अलग संबंधों के फिर से जुड़ने का इशारा दिया है। इससे पहले पारस ने चिराग पर कई आरोप लगाते हुए LJP के सभी सांसदों के साथ अलग गुट बनाया था और केंद्र में मंत्री बन गए थे। इस दौरान पारस छह में से पांच सांसदों को केंद्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल होने के रास्ते पर ले गए थे, जिससे चिराग अकेले रह गए। वहीं सूत्रों ने बताया कि बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व भी पारस और चिराग को एक साथ लाने की कोशिश कर रहा है क्योंकि राज्य में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद बिहार में उसके पास कोई गठबंधन सहयोगी नहीं बचा है।