किसान मेहनत करता है, लेकिन उसकी मेहनत का फल मीठा होने की बजाए फीका तब लगने लगता है जब कई कारणों से उसकी लगाई हुई फसल नष्ट होने लगती है. ऐसे कई कारणों में एक बड़ा कारण है आवारा पशुओं का आतंक. कई बार आवारा पशु किसान की मेहनत पर पानी फेर जाते हैं. इनसे परेशान किसान अपने खेत के इर्द-गर्द कंटीले तारों की फेसिनग लगाते हैं इसके बावजूद फसलें बर्बाद हो ही जाती हैं.
खेतों में लगाई जंगली कैक्टस की बायो फेंसिग
ABP
महाराष्ट्र के एक प्रगतिशील किसान जगन प्रह्लाद बागड़े ने इस समस्या से निपटने का एक सस्ता, टिकाऊ और इको फ्रेंडली समाधान निकाला. उन्होंने अपने 30 एकड़ खेत के चारों तरफ एक जंगली कैक्टस की बायो फेंसिग कर दी. इस बायो-फेंसिंग के लिये कैक्टस के छोटे पौधों की रोपाई की गई थी और अब ये पौधे करीब 12 फीट तक लंबे हो चुके हैं. इससे आवारा जानवर फसलों के आसपास भी नहीं भटक सकते.
7 साल की मेहनत रंग लाई
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जब महाराष्ट्र के अकोला जिले के खापरवाड़ी बुद्रुक गांव निवासी जगन प्रह्लाद बागड़े ने अपने खेतों के आसपास कैक्टस लगाना शुरू किया तो लोग उन्हें पागल कहते थे. लेकिन आज बागड़े पूरे एरिया में कैक्टस मैन के नाम से प्रसिद्ध हैं. इन्होंने अपने खेत में यूफोरबिया लैक्टिया कैक्टस की बाड़बंदी की है, जिसकी लंबाई करीब 16 फीट तक पहुंच जाती है. एक समय था जब जब ये सब देख सब बागड़े का मजाक उड़ाते थे लेकिन आज उनके इन्हीं प्रयासों की जिले भर में तारीफ होती है. ये बागड़े की 7 साल की मेहनत का नतीजा है.
कभी लोग उड़ाते मजाक आज करते हैं सम्मान
Farmer Jagan Prahalad Bagda
आज की तारीख में आस-पास के किसान खुद जगन प्रह्लाद बागड़े के पास कैक्टस की जानकारी लेने आते हैं. इसके साथ ही उनकी खेतों की जैविक बाड़बंदी को लेकर अब कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं. इसके साथ ही वह जिले के कृषि अधिकारियों द्वारा संबोधन के लिये कार्यक्रमों में बुलाए जाते हैं. बागड़े उस समय चर्चा में आये, जब उनके खेत की बायोफेंसिंग बड़ी हो गई और उनके खेत की फोटो मैसेजिंग एप पर वायरल हो गई. इसके बाद खुद जगन प्रह्लाद बागड़े को बुलाकर करीब 30 किसानों ने अपने खेतों में भी कैक्टस लगवाये.
बागड़े ने कैक्टस की बाउंड्री बनाने की जानकारी सोशल मीडिया से प्राप्त की और इसे तुरंत अपने खेतों में लगाने का फैसला किया. पशु अब कैक्टस से डरते हैं और खेत में घुंस ही नहीं पाते. साथ ही कैक्टस की बाड़बंदी करने से तेज हवा से भी फसल को नुकसान नहीं होता, क्योंकि ये बिंडब्रेकर का काम भी करता है. एक तरफ जहां कांटेदार तार से बाड़बंदी करने के लिये 40,000 रुपये खर्च से ज्यादा खर्च करने पड़ते हैं वहीं बागड़े ने सिर्फ 15,000 रुपये की लागत में पूरे खेत की बाड़बंदी कर ली.