भांग से बने लिडोकेन इंजेक्शन की कीमत केवल 30 से 40 रुपये है.
मुंबई. इस दुनिया में मेडिकल फील्ड में भारत के कई मशहूर योगदान हैं और अब परेल में टाटा मेमोरियल अस्पताल के कैंसर सर्जन जल्द ही इसमें एक और चीज जोड़ सकते हैं. पिछले पखवाड़े उन्होंने सर्जरी से निकाले जाने से ठीक पहले ट्यूमर में और उसके आसपास एक सस्ती दवा को इंजेक्ट करने की एक घरेलू तकनीक के ट्रायल को मंजूरी दी है. इस दवा को भांग के पौधे से बनाया जाता है. इसके पहले किए टेस्ट में पता चला कि इन इंजेक्शनों ने ठोस ट्यूमर के दोबारा होने की दर को एक तिहाई कम कर दिया.
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के मुताबिक इस रिसर्च को 9 सितंबर को पेरिस में आयोजित यूरोपियन सोसाइटी फॉर मेडिकल ऑन्कोलॉजी की बैठक में पेश किया गया था. फिलहाल इस बात को निर्विवाद रूप से साबित करने के लिए और टेस्ट भी चल रहे हैं या शुरू होने वाले हैं. ये विचार स्तन कैंसर सर्जन डॉ राजेंद्र बडवे के दिमाग की उपज है, जो पूरे टाटा मेमोरियल सेंटर के निदेशक हैं. टाटा मेमोरियल सेंटर अब देश भर में नौ अस्पतालों का प्रबंधन करता है. इन टेस्ट को देश भर के 10 अन्य अस्पतालों में किया जा रहा है
इस रिसर्च के प्रचार के बाद से 3 बड़ी घटनाएं हुईं हैं. अब लिडोकेन का उपयोग कम से कम टाटा अस्पतालों में स्तन कैंसर की सर्जरी का एक हिस्सा है. दूसरे, टाटा मेमोरियल और रायपुर के बाल्को सेंटर में ओरल कैंसर के मरीजों पर इसका ट्रायल शुरू हो गया है. तीसरी और सबसे बड़ी बात है कि उन कैंसर रोगियों के लिए भांग के उपयोग की अनुमति मिल गई है, जिनके ट्यूमर में इसे इंजेक्ट करना आसान नहीं होता है.
भांग से बने लिडोकेन का उपयोग करने का विचार लंबे समय से चला आ रहा है. दुर्भाग्य से कैंसर को हटाने के लिए की गई सर्जरी ही कुछ तरीकों से कैंसर स्थल के आसपास के वातावरण को बदल देती है और कैंसर के दोबारा होने या मेटास्टेसिस का खतरा बढ़ जाता है. जबकि स्टडी ने साबित किया कि कुछ स्तन कैंसर के रोगियों में इस इंजेक्शन ने कैंसर कोशिकाओं के शरीर के अन्य भागों में जाने की संभावना को कम कर दिया. जिससे दोबारा कैंसर होने की संभावना कम हो गई. यह इतना सुरक्षित है कि लिडोकेन के कारण किसी को भी साइड इफेक्ट नहीं हो सकता है. लिडोकेन इंजेक्शन की कीमत 30 रुपये से 40 रुपये है. जबकि मरीजों को आमतौर पर कैंसर के दोबारा होने पर लाखों रुपयों की एडवांस कीमोथेरेपी की जरूरत होती है.