अग्निपथ पर परमवीर चक्र विजेता और सियाचिन के हीरो कैप्टन बाना सिंह खुलकर बोले- प्रेस रिव्यू

भारतीय सेना

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परमवीर चक्र विजेता और सेना के मानद कैप्टन बाना सिंह ने कहा है कि अग्निपथ योजना की वजह से ‘भारी क़ीमत’ चुकानी पड़ेगी. उन्होंने कहा कि ये योजना सेना को बर्बाद कर देगी और पाकिस्तान-चीन को फ़ायदा पहुँचाएगी.

प्रेस रिव्यू में आज सबसे पहले अंग्रेज़ी अख़बार द टेलिग्राफ़ की ये ख़बर पढ़िए.

जम्मू में अपने घर पर रह रहे सेना के मानद कैप्टन बाना सिंह ने फ़ोन पर द टेलिग्राफ़ से बातचीत की.

उन्होंने कहा, “चार साल की अग्निपथ योजना भारतीय सेना को बर्बाद और ख़त्म कर देगी. इसे बिल्कुल लागू नहीं किया जाना चाहिए था.”

ख़बर के अनुसार सिंह ने अग्निपथ योजना पर एक ट्वीट भी किया था लेकिन सोशल मीडिया पर इसको लेकर विवाद छिड़ने के बाद उन्होंने इसे डिलीट कर दिया. उन्होंने कहा, “मुझे फ़ोन कॉल आने लगे थे.”

हालांकि, उन्होंने कहा कि वो आगे भी अपनी बात रखते रहेंगे और हमेशा सेना के हक़ और उसके भले के लिए बोलते रहेंगे.

‘सियाचिन हीरो’ के तौर पर पहचाने जाने वाले सिंह ने जून 1987 में 21,000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित पाकिस्तान के क़ायद-ए-आज़म चौकी पर हमले का नेतृत्व किया था. इस हमले में छह पाकिस्तानी जवान मारे गए थे और इस रणनीतिक पोस्ट पर भारत का नियंत्रण हो गया था.

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इस पोस्ट का नाम बाद में बदलकर ‘बाना पोस्ट’ कर दिया गया था और सिंह को सन् 1988 में देश का सर्वोच्च वीरता सम्मान यानी परमवीर चक्र से नवाज़ा गया.

पाकिस्तानी रक्षा से जुड़े कुछ दस्तावेज़ों में भी इस मिशन का ज़िक्र मिलता है. वहां इसे ‘तुलना से परे बहादुरी’ के तौर पर वर्णित किया गया है.

73 वर्षीय सिंह ने कहा कि जिस तरह से अग्निपथ योजना सब पर थोपी गई है वो ‘तानाशाही’ के समान है.

उन्होंने कहा, “एक लोकतंत्र में इस तरह के उग्र फ़ैसले सभी पक्षों और पूर्व सैनिकों के साथ विचार-विमर्श किए बिना नहीं लिए जा सकते हैं, जो सेना के बारे में बहुत कुछ जानते हैं क्योंकि उन्होंने वास्तव में युद्ध लड़ा है. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ.”

सिंह ने कहा, “ये तानाशाही जैसा है- जैसे मैंने कोई फैसला लिया है और इसे लागू किया जाना है.”

सेना की नई अग्निपथ भर्ती योजना के तहत निचले रैंक के तीन-चौथाई सैनिकों को बिना पेंशन या ग्रेच्युटी के ही चार साल की सेवा के बाद सर्विस से हटा दिया जाएगा. माना जा रहा है कि सेना के बढ़ते वेतन और पेंशन बिलों में कटौती के मक़सद से इस भर्ती योजना को लागू किया गया है.

सेना में भर्ती का सपना देखने वाले युवाओं ने बीते सप्ताह देश के अलग-अलग हिस्सों में इस योजना के ख़िलाफ़ प्रदर्शन भी किया. वहीं, पूर्व सैनिकों का भी कहना है कि इस योजना से सेना और समाज दोनों को नुकसान होगा.

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मानद कैप्टन बाना सिंह

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‘भारत के दुश्मनों को मिलेगा फ़ायदा’

बाना सिंह ने मंगलवार को एक ट्वीट किया थआ, “देश को बचाइए, अग्निपथ स्कीम हमें बुरी तरह से नुकसान पहुँचाएगी, भारत एक मुश्किल स्थिति से गुज़र रहा है. युवा हमारे देश का भविष्य है.” हालाँकि, बुधवार को ये ट्वीट डिलीट कर दिया गया.

इस बारे में पूछे जाने पर सिंह ने कहा, “मैंने अपने बेटे से ट्वीट करने को कहा था…मुझे फ़ोन आने शुरू हो गए थे. इसलिए मैंने बेटे से ट्वीट डिलीट करने को भी कहा. मैंने सोचा कि जब सरकार इस योजना को लागू करने का मन बना ही चुकी है तो इस ट्वीट का क्या मतलब?”

उन्होंने कहा, “ये मायने नहीं रखता कि कोई एक आदमी क्या कहता है. पूरे देश को ये कहना होगा. देश को इसके (अग्निपथ योजना) लिए बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी.”

सिंह ने कहा, “अग्निपथ योजना भारत के दुश्मनों को फ़ायदा हो सकता है. सैनिक बनना खेल नहीं. इसके लिए सालों प्रशिक्षण से गुज़रना पड़ता है. केवल छह महीने में उन्हें किस तरह की ट्रेनिंग मिलेगी?”

उन्होंने कहा, “जिन लोगों ने इस योजना को लाने का फ़ैसला किया उन्हें सशस्त्र बलों के बारे में कोई जानकारी नहीं है. सेना को ख़िलौना नहीं समझा सकता है. चीन और पाकिस्तान इसका फ़ायदा उठाएंगे. चीनी सैनिक हमारे क्षेत्र में और आगे तक घुस जाएंगे.”

सन् 1987 में सियाचिन में तैनात आठवीं जम्मू-कश्मीर लाइट इन्फ़ेंट्री ने पाया कि ग्लेशियर पर बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सैनिक जुट गए हैं. उन्हें बाहर निकालना ज़रूरी लेकिन मुश्किल भी था. इसलिए एक स्पेशल टास्कफोर्स का गठन किया गया. उस समय सिंह नायब सूबेदार थे और स्वेच्छा से इस फ़ोर्स में शामिल हुए.

सिंह ने टास्क फोर्स की अगुवाई की और 21 हज़ार फीट की ऊंचाई पर भी वो और उनके जवान पाकिस्तान को खदेड़ने में कामयाब रहे. सिंह को हर साल गणतंत्र दिवस परेड और सेना दिवस के मौक़े पर होने वाले समारोह में विशेष मेहमान के तौर पर आमंत्रित किया जाता है.

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संकट के बीच शरद पवार अपने ही ख़ुफ़िया और गृह विभाग से क्यों हुए नाराज़

शरद पवार

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महाराष्ट्र सरकार के गिरने के कगार पर पहुंचने के बीच एनसीपी चीफ़ शरद पवार ने राज्य के गृह और ख़ुफ़िया विभाग से नाराज़गी ज़ाहिर की है.

अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के अनुसार पवार ने दोनों विभागों से पूछा कि बाग़ी शिवसेना विधायकों के महाराष्ट्र से सुरक्षित निकलकर बीजेपी शासित गुजरात पहुँचने की भनक पहले कैसे नहीं लगी.

इस संबंध में पवार ने राज्य के गृह मंत्री दिलीप वालसे पाटिल के सामने ‘नाख़ुशी’ व्यक्त की है. पाटिल भी एनसीपी के कोटे से ही महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार में मंत्री हैं.

सूत्रों के हवाले से अख़बार ने लिखा कि वालसे-पाटिल और जयंत पाटिल ने बुधवार को पवार से उनके आवास पर मुलाकात की. एनसीपी चीफ़ दिल्ली में थे और वो मंगलवार देर रात वापस मुंबई पहुँचे.

शरद पवार ख़ुफ़िया विभाग से इसलिए भी ज़्यादा नाराज़ हैं क्योंकि गृह विभाग उनके ही पार्टी के नेता के पास है.

सूत्रों ने कहा, “पवार बहुत नाराज़ हैं. उन्होंने अपनी ये नाराज़गी पार्टी नेताओं से ज़ाहिर की है. उन्होंने हैरानी जताई कि कैसे राज्य के ख़ुफ़िया विभाग ने सरकार को समय रहते सतर्क नहीं किया. वो भी तब जब इतनी बड़ी संख्या में विधायक, जिनमें मंत्री भी थे…राज्य से बाहर जा रहे थे.”

एक अधिकारी ने कहा आमतौर पर अगर किसी विधायक के पास सुरक्षा कवर है तो उनके दूसरे राज्य जाने से पहले, उनकी सुरक्षा में लगे स्पेशल प्रोटेक्शन यूनिट (एसपीयू) अपने सीनियर को इस बारे में सूचित करते हैं ताकि दूसरे राज्य में किसी तरह की दिक्कत न हो.

एक वरिष्ठ मंत्री ने पहचान ज़ाहिर न करने की शर्त पर बताया, “मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को हर दिन ब्रीफ़िंग मिलती है. इसके अलावा, गृह मंत्री को भी सभी महत्वपूर्ण गतिविधियों के बारे में सूचित किया जाता है.”

शिवसेना के बाग़ी विधायक और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री एकनाथ शिंदे सोमवार को दो दर्जन से अधिक विधायकों के संग मुंबई से सूरत पहुँच गए. साथ जाने वाले विधायकों में तीन महाराष्ट्र के मंत्री भी शामिल हैं.

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बुलडोज़र कार्रवाई नियमों के अनुसार, यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया

बुलडोज़र

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हिंदी अख़बार अमर उजाला की ख़बर के अनुसार, उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि हाल ही में राज्य में कई संपत्तियों पर बुलडोज़र चलाने की प्रक्रिया नियमों के अनुसार थी और इसका दंगाइयों के ख़िलाफ़ कार्रवाई से कोई संबंध नहीं है.

बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा के पैग़ंबर मोहम्मद पर विवादित बयान के बाद देश के अलग-अलग हिस्सों में हिंसा और पत्थरबाज़ी हुई थी. इसके बाद यूपी में ऐसे लोगों की संपत्तियों पर बुलडोज़र चलाए गए, जो हिंसा मामले में अभियुक्त भी हैं.

उत्तर प्रदेश सरकार की इस कार्रवाई को जमीयत उलमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. इसी अर्ज़ी के जवाब में यूपी सरकार ने शीर्ष न्यायालय में हलफ़नामा दायर किया है. यूपी सरकार ने कहा है कि राज्य में बुलडोज़र से संपत्तियां ढहाने का काम प्रक्रिया का पालन करते हुए ही किया गया. ये कार्रवाई किसी भी तरह से दंगे के अभियुक्तों से संबंधित नहीं है.

ख़बर के अनुसार हलफ़नामे में यूपी सरकार ने कहा कि दंगाइयों के ख़िलाफ़ अलग-अलग कानूनों के अनुसार कार्रवाई की है. कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करने के बाद 12 जून को प्रयागराज विकास प्राधिकरण अधिनियम की धारा 27 के तहत उचित सुनवाई और पर्याप्त मौके देने के बाद ही अवैध निर्माण को ढहाया गया था. इसका हिंसा की घटना से कोई संबंध नहीं था.

यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि जमीयत उलमा-ए-हिंद की याचिका में कोई दम नहीं है, इसलिए इसे खारिज किया जाना चाहिए. प्रयागराज में जावेद मोहम्मद का घर गिराने का उदाहरण देते हुए याचिकाकर्ता को चुनिंदा मामले उठाने का दोषी ठहराते हुए यूपी सरकार ने कहा कि इस अवैध निर्माण को गिराने की प्रक्रिया दंहों की घटनाओं से बहुत पहले शुरू कर दी गई थी.

उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने हलफनामे में यह कहा कि जहां तक दंगे के आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई का सवाल है, राज्य सरकार उनके खिलाफ पूरी तरह से अलग कानून के अनुसार सख्त कदम उठा रही है. जमीयत ने राज्य की मशीनरी और उसके अधिकारियों के खिलाफ निराधार आरोप लगाए हैं. उसके आरोप कुछ मीडिया रिपोर्ट पर आधारित हैं. यह तथ्यों से परे हैं. संगठन वो राहत मांग रहा है, जिनका कोई कानूनी या तथ्यात्मक आधार नहीं है.