नाहन, 28 अक्तूबर : वैसे तो समूचे प्रदेश में ही जातीय समीकरण की गोटियां बिठाकर चुनावी जंग जीतने की कोशिश की जा रही है। लिहाजा पांच विधानसभा क्षेत्रो वाला सिरमौर भी इससे अछूता नहीं है।
जातीय समीकरण की राजनीति में सिरमौर से जुड़ी अहम खबर ये है कि अनुसूचित जाति के समाज ने कांग्रेस व भाजपा की टेंशन को बढ़ा रखा है। वीरवार शाम तो ये क्यास भी लगाए जा रहे थे कि कांग्रेस ने अनुसूचित जाति के प्रतिनिधियों के साथ चंद रोज पहले गोपनीय बैठक की है। हालांकि अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाले नेताओं ने इस बात को नकार दिया।
अनुसूचित जाति में इस बात का रोष बढ़ाया गया कि भाजपा ने गिरिपार क्षेत्र के हाटी समुदाय को एसटी का दर्जा देकर हकों को छीन लिया है। इस बात का आभास भाजपा को भी है। सतौन की रैली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को भी टिप्पणी करनी पड़ी थी।
उल्लेखनीय है कि 2011 की जनगणना के मुताबिक सिरमौर में अनुसूचित जाति की आबादी 1 लाख 60 हजार है। 11 सालों में इस आबादी में बढ़ोतरी की स्थिति साफ है।
उधर, भाजपा से रुष्ट होकर अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाला समाज कांग्रेस को समर्थन देने को लेकर असमंजस में है, क्योंकि समाज के स्थानीय नेताओं ने कांग्रेस व भाजपा को वोट न डालने की अपील कर डाली थी।
गौरतलब है कि गिरिपार क्षेत्र का मुद्दा उठने के बाद समाज से कुछ युवा नेता भी उभर कर सामने आ गए। कांग्रेस व भाजपा की सीधी टेंशन इस वजह से भी है, क्योंकि रेणुका जी व पच्छाद विधानसभा क्षेत्र एससी रिजर्व तो हैं ही, साथ ही समाज के मतदाताओं की नाहन व शिलाई विधानसभा क्षेत्रों में भी अच्छी-खासी पैठ है। निर्णायक भूमिका तक निभा सकते हैं।
हालांकि भारतीय जनता पार्टी ने लंबा अरसा पहले ही प्रदेश, खासकर शिमला संसदीय क्षेत्र में समाज का बड़ा वोट बैंक होने के मद्देनजर ही सांसद सुरेश कश्यप को पार्टी अध्यक्ष की कमान सौंपी थी। इसके बाद डाॅ. सिकंदर को भी राज्यसभा सांसद बनाया गया। मौजूदा परिदृश्य में ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इन नेताओं के लिए भी समाज के वोट बैंक को भाजपा की झोली में डालना टेढ़ी खीर है।
बता दें कि रेणुका जी व शिलाई विधानसभा क्षेत्र गिरिपार में हैं, लेकिन इन निर्वाचन क्षेत्रों के कांग्रेसी नेताओं ने एसटी के स्टेटस को लेकर चुप्पी साध रखी थी, क्योंकि वो दलित समाज को रुष्ट नहीं करना चाहते थे।
खैर, जातीय समीकरण के लिहाज से पच्छाद निर्वाचन क्षेत्र सबसे आगे है। हालांकि, ये हलका अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, लेकिन यहां राजपूत व ब्राह्मणों के अलग-अलग रास्ते हैं। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप का संबंध भी इसी निर्वाचन क्षेत्र से है। इसके साथ-साथ नाहन में कांग्रेस ने राजपूत बिरादरी के अलावा मुस्लिम वोट बैंक पर निशाना साधा हुआ है। जबकि भाजपा अन्य जातियों के वोट बैंक के सहारे जीत हासिल करना चाहती है।
उधर, पांवटा विधानसभा क्षेत्र में भी जातीय समीकरणों का अंकगणित बिठाया जा रहा है। भाजपा प्रत्याशी सुखराम चौधरी का ताल्लुक बाहती बिरादरी से है। इस बिरादरी का सबसे अधिक वोट बैंक है, लेकिन बिरादरी से दो अन्य प्रत्याशियों ने भी नामांकन दाखिल किए हैं।
उल्लेखनीय है कि लंबे अरसे से बाहती बिरादरी का प्रत्याशी ही चुनाव जीतता रहा है। दिवंगत रतन सिंह के निधन के बाद कांग्रेस के किरनेश जंग ने एक बार सीट पर जीत हासिल की थी। शिलाई निर्वाचन क्षेत्र में भी कांग्रेस इस जद्दोजहद में जुटी है कि अनुसूचित जाति का समर्थन जुटा लिया जाए।
एक प्रबुद्ध मतदाता ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर कहा कि वो सोचा करते थे कि आने वाला समय शिक्षित समाज का होगा। इसमें प्रत्याशियों का चयन गुण व दोष के आधार पर होगा। लेकिन वो हैरान हैं कि सोशल मीडिया के जमाने में जातीय समीकरण अधिक हावी हो गए हैं।
कुल मिलाकर बड़ी बात ये है कि मतदाताओं को ऐसे चक्रव्यूह में फंसा दिया गया है कि वो प्रत्याशियों को गुण-दोष के आधार पर नहीं, बल्कि जातीय चश्मे से देख रहे हैं।