CBI Raid- ED Raid: सीबीआई और ईड की सक्रियता ने इस समय राजनीतिक तापमान को काफी बढ़ा दिया है। कई राज्यों में सीबीआई और ईडी काफी एक्टिव है। खासकर ईडी, अपनी नई ताकत के साथ। ऐसे में वर्ष 2024 के लोकसभा का मुद्दा भ्रष्टाचार के खिलाफ ऐक्शन सेट होता दिख रहा है।
लखनऊ: बिहार में सीबीआई की रेड (Bihar CBI Raid) का मामला गरमाया हुआ है। रेड आईआरसीटीसी घोटाले और रेलवे में जमीन के बदले बहाली के मामले में हो रही है। इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) और राबड़ी देवी के साथ, तेजस्वी यादव और बहनें भी आरोपी हैं। 7 जुलाई 2017 को सीबीआई की टीम ने देश के कई ठिकानों पर एक साथ छापा मारा था। इसमें से राबड़ी देवी का आवास भी शामिल था। तब बिहार में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की महागठबंधन सरकार थी। एक बार फिर नीतीश और तेजस्वी ने मिलकर गठबंधन सरकार बनाई है। सीबीआई की 24 ठिकानों पर छापेमारी चल रही है। बिहार के छापों की धमक लखनऊ में भी सुनी जा सकती है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा उन केसों की होने लगी है, जिन पर केंद्रीय जांच एजेंसियों की टेढ़ी नजर जा सकती है। चाहे पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव हों, अखिलेश यादव हों या फिर मायावती, हर किसी के खिलाफ सीबीआई में मामले दर्ज हैं। इन पर जांच चल रही है। कभी धीमी तो कभी तेज, रफ्तार बढ़ती और कम होती रहती है। लेकिन, 2024 से पहले बिहार के नेताओं की तर्ज पर यूपी में सीबीआई ऐक्शन में दिखे तो अधिक आश्चर्य नहीं होगा।
2024 क्यों है महत्वपूर्ण?
यूपी और बिहार हो या फिर केंद्र, इमरजेंसी के बाद राजनीतिक बदलाव बड़े पैमाने पर देखने को मिला। 1977 के आम चुनाव में केंद्र की सत्ता पर स्थापित कांग्रेस पहली बार बेदखल हुई। जनता पार्टी सत्ता में आई, लेकिन 3 साल बाद दलों का गठबंधन बिखड़ा। अगले 10 साल तक कांग्रेस सत्ता में रही। वर्ष 1980 का चुनाव इंदिरा गांधी के कमबैक वाला रहा। वहीं, इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी सहानुभूति की लहर ने राजीव गांधी को ऐतिहासिक जीत दिलाई। इसके बाद के वर्षों में राजनीति पलटती चली गई। मंडल आंदोलन और राम जन्मभूमि आंदोलन के बाद खासकर।
यूपी की राजनीति में बदलाव ने क्षेत्रीय क्षत्रपों मुलायम सिंह यादव, कांशीराम, मायावती को मजबूत बनाया तो सियासत की डोर इनके हाथों में आ गई। 1989 से 1999 तक का दौर उथल-पुथल भरा रहा। राजीव गांधी की हत्या के बाद केंद्र की सत्ता पर कांग्रेस काबिज हुई। लेकिन, फिर गठबंधनों की सरकार का दौर चला। अटल बिहारी वाजपेयी ने भी जंबो गठबंधन की सरकार 2004 तक चलाई। यूपीए अगले 10 तक शासन में रहा, लेकिन 2010-11 से ही उनके खिलाफ एंटी इनकंबैसी बढ़ने लगी। घोटाले सामने आने लगे। फिर गुजरात की राजनीति से केंद्र में आकर नरेंद्र मोदी ने देश की राजनीति की दिशा बदली।
2014 के बाद 2019 में भारतीय जनता पार्टी को केंद्र में अपने दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफलता मिली है। लेकिन, 2019 में भाजपा के साथ शिवसेना भी थी और शिरोमणि अकाली दल भी। जदयू भी गठबंधन में शामिल था और लोजपा भी। यूपी में कमोबेश गठबंधन अपने स्वरूप में बरकरार है। लेकिन, यूपी चुनाव 2022 ने संकेत दिए हैं कि अगर चुनाव दो ध्रुवीय हुए तो कई स्थानों पर उन्हें परेशानी हो सकती है। 2019 के चुनाव सर्जिकल स्ट्राइल और एयर स्ट्राइक मोदी सरकार के चेहरे को खासा चमकाया था। वर्ष 2024 के लिए मोदी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘स्ट्राइक’ की रणनीति पर काम करती दिखती है।
यूपी में कई मामलों की चल रही है जांच
बिहार में जिस प्रकार से चारा घोटाला, आईआरसीटीसी घोटाला और रेलवे भर्ती घोटाला लालू परिवार के लिए गले की फांस बना हुआ है। यूपी में भी इस प्रकार के कई मामले हैं जो क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की गले की हड्डी बने हुए हैं। इसमें सबसे बड़ा मामला मुलायम परिवार पर बनता दिख रहा है। मायावती के खिलाफ भी। आजमगढ़ लोकसभा उप चुनाव के परिणाम साफ करते हैं कि अगर मायावती रणनीति के तहत चुनावी मैदान में उतरीं तो वे किसी के लिए भी मुसीबत बन सकती हैं। रामपुर में भाजपा की जीत ने साफ किया है कि आमने-सामने के मुकाबले में उन्हें बढ़त मिल सकती है। ऐसी स्थिति में ‘भ्रष्टाचार’ एक ऐसा मुद्दा है, जिसे गरमाया जाए तो इसका असर निचले स्तर तक दिख सकता है।
यूपी में घोटालों की जांच की बात करें तो खनन घोटाला, रिवर फ्रंट घोटाल, जल निगम भर्ती घोटाला, स्मारक घोटाला जैसे मामलों की जांच चल रही है। आय से अधिक संपत्ति के मामले में मुलायम परिवार पर केस दर्ज है। वहीं, ताज कॉरिडोर घोटाला भी इस लिस्ट में शामिल हो सकता है। अगर केंद्रीय जांच एजेंसियों ने यूपी के इन मामलों पर नजर गड़ाई तो प्रदेश की राजनीति एक बार फिर गरमा सकती है।
किस घोटाले में कौन फंसते दिख रहे हैं :
आय से अधिक संपत्ति का मामला : मुलायम सिंह यादव पर वर्ष 1999 से 2005 के बीच मुख्यमंत्री रहते गैरकानूनी तरीके से 100 करोड़ रुपये की संपत्ति अर्जित करने का आरोप लगा। इस मामले में मुलायम सिंह यादव, उनके बेटे अखिलेश यादव एवं प्रतीक यादव और बहू डिंपल यादव को आरोपी बनाया था। 7 अगस्त 2013 को सीबीआई ने पर्याप्त सबूत के अभाव में जांच बंद कर दी। इसके खिलाफ वर्ष 2019 मे वकील विश्वनाथ चतुर्वेदी ने याचिका दायर कर सीबीआई के जांच बंद करने के फैसले को चुनौती दी। विश्वनाथ चतुर्वेदी ने इसी साल जनवरी में रोज एवेन्यू कोर्ट में याचिका दायर कर सीबीआई की ओर से आय से अधिक संपत्ति के मामले में क्लोजर रिपोर्ट नहीं दिए जाने का मामला उठाया है। अगर मामले में जांच शुरू हुई तो मुलायम परिवार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
खनन घोटाला : खनन घोटाला भी पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की मुश्किलें बढ़ा सकती है। दरअसल, यह घोटाला खनन का स्वर्ग माने जाने वाले हमीरपुर से जुड़ा हुआ है। हमीरपुर के साथ सोनभद्र में भी बड़े पैमाने पर अवैध खनन का मामला सामने आया था। इस मामले में वर्ष 2019 में सीबीआई ने 12 जगहों पर छापे मारे थे। अखिलेश सरकार के दौरान गायत्री प्रसाद प्रजापति की सरपरस्ती में खनन का पूरा खेल चला था। इस मामले में अखिलेश यादव का भी नाम लिया जाता रहा है। हाई कोर्ट ने मोरंग के खदानों पर पूरी तरह से रोक लगाने का आदेश दिया था। इसके बाद भी हमीरपुर में अवैध खनन का काम चलता रहा। इसके पीछे गायत्री प्रजापति का हाथ था।
अवैध खनन मामले में विजय द्विवेदी ने याचिका दायर की थी। 28 जुलाई 2016 को हाई कोर्ट ने शिकायतों और याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अवैध खनन की जांच सीबीआई को सौंप दी। इस मामले में तीन सीनियर आईएएस बी चंद्रकला, संध्या तिवारी और भवनाथ से भी पूछताछ हो चुकी है। सीबीआई ने वर्ष 2017 में मोरंग कारोबारी और बसपा नेता संजय दीक्षित से भी पूछताछ की थी। लोकसभा चुनाव से पहले इस मुद्दे के गरमाने की आशंका जताई जा रही है।
रिवर फ्रंट घोटाला : रिवर फ्रंट घोटाला भी प्रदेश की सियासत को काफी प्रभावित रहा है। इस घोटाले की जांच सीबीआई और ईडी कर रही है। 270 करोड़ की स्वीकृत परियोजना पर 1438 करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए। इस परियोजना में बिना अनुमति फ्रांस से महंगा फव्वारा मंगाए जाने का आरोप लगा है। परियोजना के तहत गोमती नदी की सफाई और नालों के गंदे पानी के एसटीपी ट्रीटमेंट के बाद गिराया जाना था। लेकिन, आज भी गोमती नदी में 37 नालों का गंदा पानी गिरता है। गोमती नदी की सफाई का कार्य भी पूरा नहीं हुआ। 27 मार्च 2017 को सीएम योगी आदित्यनाथ ने रिवर फ्रंट का दौरा किया था और घोटोल की जांच के निर्देश दिए थे। 1 अप्रैल 2017 को रिवर फ्रंट घोटाले की जांच के लिए रिटायर्ड जस्टिस आलोक सिंह की अध्यक्षमता में कमेटी गठित की गई। 16 मई को कमेटी ने अपनी रिपोर्ट दी। समिति की रिपोर्ट के आधार पर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जिम्मेदारी तत्कालीन नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना को सौंपी गई।
सुरेश खन्ना की रिपोर्ट के आधार पर सिंचाई विभाग ने 19 जून 2017 को गोमती नगर थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई। 20 जुलाई 2017 को राज्य सरकार ने सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी। 30 नवंबर 2017 को सीबीआई ने केस दर्ज कर जांच शुरू की। वहीं, ईडी ने प्रीवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत केस दर्ज कर जांच शुरू की। 24 जनवरी 2019 को ईडी ने लखनऊ, नोएडा और गाजियाबाद के 9 ठिकानों पर छापे मारे थे। जुलाई 2021 में सीबीआई ने 40 जगहों पर छापे मारे थे। गोमती रिवर फ्रंट योजना को लेकर घोटाले के मामले के दाग तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव पर भी लगाए जाते रहे हैं। इस केस का भी मामला गरमाने की आशंका जताई जा रही है।
यूपी जल निगम भर्ती घोटाला : उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से वर्ष 2016 में आरजीसी, जेई और एई के 1300 पदों पर भर्ती का विज्ञापन निकला। इस आधार नियुक्ति प्रक्रिया शुरू हुई। इसमें 122 सहायक अभियंता, 853 अवर अभियंता, 335 नैतिक लिपिक और 32 आशुलिपिक की भर्ती हुई थी। नियुक्तियों में अनियमितता का मामला सामने आया। नियुक्ति में अनियमितता की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया गया। इस मामले में तत्कालीन मंत्री और जल निगम के अध्यक्ष आजम खान के खिलाफ भी आरोप लगा था। इस मामले में यूपी जल आपूर्ति और सीवेज अधिनियम 1975 और जल निगम के नियमों एवं विनियमों के उल्लंघन का मामला सामने आया। यूपी में वर्ष 2017 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद इस मामले की जांच के आदेश दिए गए। भर्ती किए गए 122 इंजीनियरों को बर्खास्त कर दिया गया।
वर्ष 2018 में इस मामले में आजम खान और उनके सहयोगियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 409, 420, 120-बी, 201 आईपीसी, और धारा 13 (1) के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई गई। बाद में सीबीआई की जांच शुरू हुई। इसी साल मई में सीतापुर जेल में बंद रहने के दौरान आजम खान को इसी केस में सीबीआई ने लखनऊ की विशेष अदालत में पेश किया था। यह केस भी समाजवादी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के लिए सिरदर्द बन सकता है।
स्मारक घोटाला : बसपा सुप्रीमो मायावती के शासनकाल का स्मारक घोटाला है। वर्ष 2007-2011 के दौरान लखनऊ और नोएडा में स्मारकों और उद्यानों के निर्माण एवं इससे जुड़े अन्य कार्यों के लिए प्रयोग किए जाने वाले सैंडस्टोन की खरीद-फरोख्त में अरबों रुपये के घोटाले का पूरा मामला है। इन स्मारकों में अंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल, कांशीराम स्मारक स्थल, गौतम बु़द्ध उपवन, ईको गार्डन और नोएडा का अंबेडकर पार्क शामिल है। इसके लिए 42 अरब 76 करोड़ 83 लाख 43 हजार का बजट आवंटित हुआ। इसमें से 41 अरब 48 करोड़ 54 लाख 80 हजार की धनराशि खर्च की गई। लोकायुक्त की जांच में मामला सामने आया कि कुल राशि का 34 फीसदी यानी 14 अरब 10 करोड़ 50 लाख 63 हजार 200 रुपये विभागीय मंत्रियों और अधिकारियों की मिलीभगत से भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए।
लोकायुक्त की रिपोर्ट के आधार पर एक जनवरी 2014 को गोमती नगर थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई गई। विजिलेंस की ओर से इस मामले में 57 अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई है। मामले का जिन्न कभी भी निकल सकता है। सपा शासनकाल के दो कद्दावर मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा जांच के दायरे में हैं। घोटाले के तार तत्कालीन मुख्यमंत्री तक पहुंच सकती है।
ताज कॉरिडोर घोटाला : ताज कॉरिडोर घोटाले का जिन्न बार-बार निकल आता है। वर्ष 2002 में तत्कालीन सीएम मायावती ने ताज की खूबसूरती बढ़ाने के नाम पर 175 करोड़ की योजना लॉन्च कर दी। पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति के बिना ही 17 करोड़ रुपये जारी कर दिए गए। इस प्रोजेक्ट में ताजमहल से आगरा फोर्ट तक दो किलोमीटर के रास्ते पर एक कॉरिडोर यानी गलियारा बनाने की बात कही गई थी। इस गलियारे में शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, एम्यूजमेंट पार्क और रेस्टोरेंट का प्रस्ताव था। बिना पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति के योजना को मंजूरी किए जाने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। वर्ष 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच के आदेश सीबीआई को दिए। 2007 में सीबीआई ने चार्जशीट दायर की थी। इसमें मायावती और नसीमुद्दीन सिद्दीकी के खिलाफ फर्जीवाड़े के आरोप लगे।
वर्ष 2007 में मायावती के सत्ता में आने के बाद तत्कालीन राज्यपाल टीवी राजेश्वर ने मामले में मुकदमा चलाने की इजाजत देने से इनकार कर दिया। सीबीआई की विशेष कोर्ट में सुनवाई स्थगित हो गई। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने प्राथमिकी को रद्द कर दिया। वर्ष 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में मायावती को नोटिस किया था। उस समय जस्टिस एचएल दत्तू और जस्टिस रंजन गोगोई की बेंच ने मामले का अध्ययन करने की बात कही थी। बाद में वर्ष 2017 में भी यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गरमाया था।
चीनी मिल घोटाला : वर्ष 2010-11 में मायावती सरकार की ओर से 21 सरकारी चीनी मिलों को बेचा गया था। उस समय औने-पौने दाम पर मिलों को बेचकर 1100 करोड़ रुपये के घोटाले करने का आरोप लगा था। बसपा सरकार की ओर से 10 संचालित और 11 बंद पड़ी चीनी मिलों को बेची गई। यूपी में वर्ष 2017 में योगी सरकार के आने के बाद गोमती नगर थाने में 7 नवंबर 2017 को प्राथमिकी दर्ज कराई गई। बाद में इसे सीबीआई लखनऊ की एंटी करप्शन ब्रांच ने टेकओवर कर लिया। सीबीआई ने सात चीनी मिलों में हुई धांधली में धोखाधड़ी और कंपनी अधिनियम और अन्य धाराओं में रेगुलर केस दर्ज किया। वहीं, 14 चीनी मिलों में हुई धांधली पीई दर्ज की गई थी।
वर्ष 2010-11 प्रदेश में चीनी निगम की 35, चीनी फेडरेशन की 28 और प्राइवेट 93 चीनी मिलें थी। चीनी निगम के अस्तित्व में आने के दौरान चीनी मिलें काफी घाटे में चल रही थीं। इसको देखते हुए मायावती सरकार ने मिलों को बेचने का फैसला लिया। सीएजी की रिपोर्ट में मिलों की बेचने की प्रक्रिया पर सवाल उठाया गया तो अखिलेश सरकार ने मामले की जांच लोकायुक्त को सौंपी। लोकायुक्त ने मामले में बड़े पैमाने पर अनियमितता पकड़ी। कार्रवाई की सिफारिश की गई, लेकिन जांच रिपोर्ट दबी रह गई। योगी सरकार के समय में 25 सहकारी और निजी क्षेत्र की 100 चीनी मिल अस्तित्व में थे। मामले की समीक्षा के क्रम में लोकायुक्त रिपोर्ट सामने आई। इसके बाद केस दर्ज कराकर मामला सीबीआई को सौंपा गया। यह मामला भी बसपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
अब डर ईडी का भी है
पुराने मामलों में अब डर ईडी का भी है। ईडी की पिछले दिनों शक्ति बढ़ गई है। सीबीआई को कई राज्य सरकारों ने अपने राज्य में प्रवेश पर रोक लगा दी थी। ईडी पर कोई राज्य सरकार रोक नहीं लगा सकती है। यही वजह है कि जब पश्चिम बंगाल में सीएम ममता बनर्जी के मंत्री पार्थ चटर्जी पर ईडी की कार्रवाई हुई तो प्रदेश में चुप्पी देखी गई। कोलकाता के पूर्व पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के मामले को लेकर हंगामा खड़ी करने वाली सीएम ममता भी इस मामले में खामोश रहीं। दरअसल, राज्य सरकारों के पास ऐसा कोई कानून नहीं है कि वे ईडी की दखल को रोक सकें। यही वजह है कि पिछले 8 सालों में ईडी के ऐक्शन 5 गुना बढ़ गए हैं। भ्रष्टाचार के मामलों में मनी लॉन्ड्रिंग प्रावधानों की ताकत से लैस ईडी का डर बड़े राजनेताओं को सताने लगा है।