नई दिल्ली. केंद्र सरकार (Central Government) ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को बताया कि चुनावी बॉन्ड, राजनीतिक फंडिंग का एक बिलकुल पारदर्शी तरीका है. शीर्ष अदालत ने मामले की विस्तार से सुनवाई के लिए 6 दिसंबर की तारीख तय की है. कोर्ट कई याचिकाओं पर विचार कर रही है, जिन्होंने केंद्र की चुनावी बांड योजना की वैधता को चुनौती दी है. इसे राजनीतिक धन के स्रोत के रूप में पहली बार 2017 में शुरू किया गया और 2018 में लागू किया गया था. 18 महीने बाद यह मामला शीर्ष अदालत में सूचीबद्ध हुआ है.
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बीवी नागरत्ना ने एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के नेतृत्व में चुनौती पर विचार करते हुए बेंच का गठन किया है. चुनावी चंदे में पारदर्शिता लाने के प्रयास के तहत राजनीतिक दलों को दी जाने वाली नकद राशि के विकल्प के तौर पर बॉण्ड की शुरुआत की गयी है. चुनावी बॉन्ड योजना के प्रावधानों के अनुसार, यह बॉन्ड किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा खरीदा जा सकता है, जो भारत का नागरिक है या यहां पर रहता है. जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के तहत रजिस्टर्ड राजनीतिक पार्टी ही चुनावी बॉन्ड के जरिये चंदा ले सकती है.
आधिकारिक बैंक में खातों के जरिये ही बॉन्ड का भुगतान किया जा सकता है
हालांकि, इसके लिए पार्टी को पिछले राज्य विधानसभा चुनाव में कम-से-कम एक प्रतिशत वोट मिलना अनिवार्य शर्त है. पार्टी को किसी आधिकारिक बैंक में खातों के जरिये ही बॉन्ड का भुगतान किया जा सकता है. चुनावी बॉन्ड बिना किसी अधिकतम सीमा के 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये के रूप में जारी करता है. एसबीआई इन बॉन्डों को जारी करने और भुनाने के लिए अधिकृत बैंक है. ये बॉन्ड जारी करने की तारीख से पंद्रह दिनों तक वैध रहते हैं.
2018 में केंद्र सरकार ने चुनावी बॉन्ड योजना की अधिसूचना जारी की थी
केंद्र सरकार ने 2 जनवरी 2018 को इस चुनावी बॉण्ड योजना की अधिसूचना जारी की थी. इस योजना के तहत कोई भी व्यक्ति एसबीआई से चुनावी बॉन्ड खरीद कर किसी भी राजनीतिक दलों को फंड कर सकता है. इस तरह का बॉन्ड खरीदने पर बैंक को ड्राफ्ट या चेक के जरिए भुगतान करना होता है.