नई दिल्ली. दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि वह सेना में भर्ती की अग्निपथ योजना को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर 20 जुलाई को सुनवाई करेगा. गत 14 जून को घोषित अग्निपथ योजना में साढ़े 17 से 21 वर्ष तक की आयु के युवाओं के लिए रक्षा बलों में केवल चार साल के लिए भर्ती होने का प्रावधान है, जिनमें से 25 प्रतिशत को अतिरिक्त 15 साल के लिए बनाए रखने का प्रावधान है. इस योजना के खिलाफ कई राज्यों में विरोध प्रदर्शन हुए थे. बाद में, सरकार ने 2022 में भर्ती के लिए ऊपरी आयु सीमा को बढ़ाकर 23 वर्ष कर दिया था.
उच्च न्यायालय मंगलवार को एक लंबित याचिका में दायर एक आवेदन पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें भारतीय नौसेना के रोजगार विज्ञापन को चुनौती दी गई है. विज्ञापन में पहले से निर्धारित पात्रता मानदंड के विपरीत, कक्षा 12वीं की परीक्षा में कट-ऑफ अंक बढ़ाकर आवेदकों का चयन करने का अधिकार नौसेना के पास सुरक्षित होने की बात कही गई है.
कुछ सांसदों को ‘अग्निपथ’ योजना को वापस लेने की मांग की
इससे एक दिन पहले 11 जुलाई को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रक्षा संबंधी संसदीय परामर्श समिति के सदस्यों को सैन्य भर्ती के लिए लायी गयी ‘अग्निपथ योजना’ के बारे में प्रस्तुति दी. हालांकि, छह विपक्षी सांसदों ने इस योजना को तत्काल वापस लेने की मांग की. करीब दो घंटे तक चली बैठक में राजनाथ सिंह ने सैन्य बलों की परिचालन संबंधी तैयारी पर संभावित प्रभाव सहित विपक्षी दलों की चिंताओं को दूर करने का प्रयास किया.
किन दलों ने दर्ज कराई आपत्ति
तीनों सेनाओं के प्रमुखों ने भी सांसदों को योजना के बारे में बताया जिसको लेकर देश में हिंसक प्रदर्शन हुआ था और विपक्षी दलों ने इसका कड़ा विरोध किया था. कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा), राजद तृणमूल कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों ने नयी भर्ती योजना पर आपत्ति व्यक्त की और कहा कि इसे वापस लिया जाना चाहिए. जिन सांसदों ने इस ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये, उनमें शक्ति सिह गोहिल, रजनी पाटिल (कांग्रेस), सुप्रिया सुले (राकांपा), सौगत राय एवं सुदीप बंदोपाध्याय (तृणमूल कांग्रेस) और राजद के ए डी सिंह शामिल हैं. लेकिन कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किया.