धरती पर सबसे तेज़ दौड़ने वाले प्राणी का नाम क्या है? चीता… सही जवाब. आज तक ये सिर्फ़ जनरल नौलेज की किताबों में पढ़ते आए थे लेकिन भारत के जंगलों से चीते ‘गायब’ थे. 70 साल बाद भारत के जंगलों में चीते वापस (Cheetah returns to Indian Forests) आ रहे हैं.
नामीबिया से आएंगे 8 चीते
The Statesman
पहले खबरें आ रही थी कि अगस्त में नामीबिया से 8 चीते भारत पहुंचेंगे. NDTV की रिपोर्ट के अनुसार, शुक्रवार को ये मेहमान नामीबिया से भारत आएंगे. नामीबिया में ही दुनिया के सबसे ज़्यादा चीते बचे हैं. 1952 में भारत की धरती से चीते विलुप्त हो गए थे. बता दें की चीता 113 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से दौड़ सकता है और ये धरती पर सबसे तेज़ भागने वाला जीव है. 70 साल पहले भारत के जंगलों में चीतों की संख्या आधिकारिक तौर पर शून्य घोषित की गई थी. भारत के इको-सिस्टम का हिस्सा रहे चीते इंसानों की वजह से जंगलों से गायब हो गए थे.
The Times of India की एक रिपोर्ट के अनुसार, नामीबिया से भारत आ रहे 8 चीतों में से 3 चीते शिकार करना नहीं जानते थे. वाइल्डलाइफ़ इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया के डीन और एक्सपर्ट यादवेंद्रदेव विक्रम सिंह नामीबिया गए थे. उन्होंने देखा था कि क्वारंटीन में रखे गए 8 चीतों में से तीन शिकार नहीं कर सकते हैं. उन तीनों की जगह, तीन जंगली चीते भारत आ रहे हैं.
इंसानी गतिविधियों की वजह से चीतों की संख्या दुनियाभर में बहुत कम हो गई है. The Guardian की रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में सिर्फ़ 7000 चीते हैं. इंटरनेशनल यूनियन फॉर कन्ज़र्वेशन ऑफ नेचर ने चीतों को वल्नरेबल प्रजाति, घोषित किया है और इसका नाम रेड लिस्ट में दर्ज है.
कहां रहेंगे ये चीते?
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कूनो-पालपुर वन्यजीव अभयारण्य को 2018 में कूनो-पालपुर राष्ट्रीय उद्दान बनाया गया. यहीं देश की पहली चीता सेंचुरी बनेगी. नामीबिया से लाए जा रहे चार नर और चार मादा चीतों को यहां रखा जाएगा. वन विभाग के ग्राउंड स्टाफ़ चीतों के शिकार के लिए प्राकृतिक शिकार की भी व्यवस्था कर रहे हैं. कूनो-पालपुर राष्ट्रीय उद्दान के आस-पास पहले हज़ारों की संख्या में चीते पाए जाते थे.
ये सभी चीते राजा-महाराजा, ब्रिटिश साम्राज्य के शौकिया खेलों की भेंट चढ़ गए. इनकी संख्या इतनी घट गई की आज़ादी के सिर्फ़ 5 साल बाद ही इन्हें जंगलों से विलुप्त घोषित कर दिया गया था.
विशेषज्ञों का कहना है कि अगले 5 सालों में इनकी संख्या बढ़कर 20 हो सकती है. इससे पहले 1970 के दशक में भी ईरान से चीतों को भारत लाने की कोशिशें की गई थी.
75वें स्वतंत्रता दिवस पर भारत के जंगलों में एक और प्रजाति जुड़ने वाली है.