Chhath Puja 2022 Date: दीपावली के बाद सबसे बड़ा त्योहार मनाया जाता है। छठ का आरंभ इस बार 30 अक्टूबर से नहाय खाय से हो रहा है और इसका समापन सुबह के अर्घ्य के साथ 2 नवंबर को होगा। आइए जानते हैं छठ के बारे में खास बातें।
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छठ पर्व का आरंभ इस बार 30 अक्टूबर को नहाय खाय के साथ होगा और 2 नवंबर को समाप्त होगा। प्रमुख रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में मनाया जाने वाला यह त्योहार अब लगभग देश के हर राज्य में मनाया जाता है। देश ही नहीं बल्कि नेपाल जैसे पड़ोसी देश के कुछ हिस्सों में भी मनाया जाता है। छठ पर्व अब महापर्व का रूप ले चुका है और 4 दिन तक चलने वाले इस त्योहार में इस पर्व में महिलाएं 36 घंटे का उपवास रखती हैं और संतान की दीर्घायु के लिए कामना करती हैं। आइए आपको बताते हैं छठ पर्व की पूजाविधि, महत्व और शुभ मुहूर्त।
छठ पर्व कब मनाया जाता है
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, छठ पर्व का आरंभ कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होता है और सप्तमी पर जाकर इस त्योहार का समापन होता है। इस बार नहाय खाय 30 अक्टूबर को होगा और उसके बाद 31 अक्टूबर को खरना, फिर संध्या अर्घ्य और फिर सूर्योदय अर्घ्य के साथ यह पर्व समाप्त हो जाता है।
छठ पर्व की पूजा सामिग्री
छठ पर्व पर चतुर्थी के दिन स्नान आदि करके भोजन किया जाता है और फिर पंचमी के दिन उपवास करके संध्याकाल में तालाब या नदी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। उसके बाद अगले दिन सुबह सूर्योदय के वक्त फिर से सूर्य भगवान की पूजा की जाती है। अर्घ्य देने के लिए बांस की तीन बड़ी टोकरी या बांस या पीतल के तीन सूप ले सकते हैं। इनमें चावल, दीपक, लाल सिंदूर, गन्ना, हल्दी, सुथनी, सब्जी और शकरकंदी रख लें। फलों में नाशपाती, शहद, पान, बड़ा नींबू, सुपारी, कैराव, कपूर, मिठाई और चंदन रखें। इसमें ठेकुआ, मालपुआ, खीर, सूजी का हलवा, पूरी, चावल से बने लड्डू भी रखें। सभी सामग्रियां टोकरी में सजा लें। सूर्य को अर्घ्य देते समय सारा प्रसाद सूप में रखें और सूप में एक दीपक भी जला लें। इसके बाद नदी में उतर कर सूर्यदेव को अर्घ्य दें। अर्घ्य देते समय इस मंत्र का उच्चारण करें।
छठ पूजा में कैसे रखा जाता है व्रत
छठ पूजा के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें और व्रत करने का संकल्प लें। पूजा के पहले दिन नहाय खाय होता है। इस दिन सभी लोग मिलकर भोजन तैयार करते हैं और दोपहर में इसे सभी लोग मिलकर खाते हैं। पूजा के दूसरे दिन खरना होता है, जिसमें महिलाएं निर्जला व्रत करती हैं। यह व्रत सूर्योदय से आरंभ होता है और सूर्यास्त तक रखा जाता है। शाम में डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर महिलाएं उस दिन के व्रत का पारण करती हैं। उसके बाद अगले दिन सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर इस व्रत का समापन हो जाता है।