छठ पूजा का आज दूसरा दिन है और इसे खरना के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रती घर पर ही खास प्रसाद तैयार करते हैं और पूरे दिन निराहार रहकर छठ मैया की पूजा करते हैं और व्रत के सफलता पूर्वक पूरा होने की प्रार्थना करते हैं …
आज कार्तिक शुक्ल पचंमी तिथि को छठ पर्व व्रती खरना कर रहे हैं। खरना में छठ मैया के लिए विशेष प्रसाद तैयार किया जाता है। इससे पहले कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि को नहाय-खाय के साथ ही छठ महापर्व की विधिवत शुरुआत 28 अक्टूबर को हो गई है। खरना के दिन का छठ पर्व में बड़ा महत्व है। खरना के समय व्रती नया वस्त्र धारण कर गुड़ और चावल से बनी खीर का सेवन करते हैं, जिसके साथ ही निर्जला उपवास शुरू होता है, जो करीब 36 घंटे का होता है। इसके प्रसाद का विशेष महत्व है, जिसका सेवन करना हर किसी के लिए अनिवार्य होता है। शनिवार को खरना के बाद रविवार को डूबते सूर्य को और सोमवार को उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा।
कद्दू की सब्जी खाने की है परंपरा
व्रतियों ने दिन में कद्दू की सब्जी और चावल खाकर पूजा की शुरुआत की जिसका समापन सोमवार, अर्थात षष्ठी तिथि के दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य के साथ होगा। नहाय-खाय के दिन व्रती के साथ ही घर के बाकी सदस्य भी कद्दू की सब्जी खाते हैं। गांवों में कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जिनके यहां छठ पर्व नहीं होता है। ऐसे लोगों के यहां जिनके यहां छठ होता है, उनके यहां से कद्दू की सब्जी देने की प्रथा है। कई जगहों पर कद्दू के साथ चना दाल खाने की भी परंपरा है।=
ऐसे करते हैं छठ मैया के लिए प्रसाद की तैयारी
नहाय-खाय वाले दिन से ही छठ का प्रसाद बनाने की तैयारी शुरू की जाती है। प्रसाद के लिए गेहूं और चावल की सफाई तो हालांकि पहले ही कर ली जाती है। लेकिन, उसे धोकर सुखाने, पीसने और उसके बाद उससे प्रसाद बनाने की तैयारी आज ही के दिन से शुरू होती है। व्रती के साथ घर के सदस्य मिलकर इसकी तैयारी करते हैं। छठ का प्रसाद बनाने के लिए चूल्हा और बर्तन बिल्कुल अलग होता है। इतना ही नहीं, प्रसाद बनाने में जो कोई भी साथ देता है उसके लिए भी लहसुन, प्याज इत्यादि खाना वर्जित होता है। कुछ ऐसे भी लोग हैं जो नहाय-खाय के दिन ही छठ के निमित्त बाजार से खरीदने वाले सामान जैसे कि टोकरी, फल, सब्जियां खरीदते हैं।
खरना के लिए ऐसे किया जाता है प्रसाद तैयार
छठ पर्व के दूसरे दिन को खरना या लोहंडा के नाम से जाना जाता है। कार्तिक महीने के पंचमी पर व्रती पूरे दिन व्रत रखते हैं। सूर्यास्त से पहले पानी की एक बूंद तक नहीं ग्रहण करते हैं। यह प्रसाद व्रती के द्वारा ही बनाया जाता है जो विशेष रूप से नए चूल्हे पर ही बनाया जाता है। नहाय-खाय के दूसरे दिन होने वाले खरना के दिन भी व्रती पूरे दिन व्रत रखते हैं और केवल एक बार शाम को भोजन करते हैं। शाम को व्रती भगवान सूर्य का पूजन कर प्रसाद अर्पित करते हैं। शाम को चावल, गुड़ और गन्ने के रस बने रसियाव-खीर को खाया जाता है। खाने में नमक और चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। खास ध्यान यह भी रखना होता है कि एकांत में रहकर भोजन ग्रहण किया जाए। प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रती अपने सभी परिजनों को ‘रसियाव रोटी’ का प्रसाद देते हैं। चावल का पिठ्ठा और घी लगी रोटी भी प्रसाद में दी जाती है। इसके बाद अगले 36 घंटों के लिए व्रती निर्जला व्रत रखते हैं। मध्य रात्रि को व्रती छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद ठेकुआ बनाती हैं।