हमने 0 से 18 साल की उम्र के आधार पर बच्चों को 3 अलग कैटिगरी में रखा है। ताकि इनकी उम्र के आधार पर इनकी समस्याओं को समझा जा सके। आमतौर पर बच्चों को ये समस्याएं इसी उम्र में होती हैं लेकिन कुछ मामलों में किसी भी उम्र में हो सकती हैं।
सभी बच्चे अच्छे होते हैं। सच्चे होते हैं, अमूमन फर्क परवरिश में आता है। कुछ बच्चों के पैरंट्स योजना बनाकर फैसला लेते हैं कि बच्चे का व्यक्तित्व कैसे गढ़ना है जबकि ज्यादातर बच्चों का व्यक्तित्व उनके हालात गढ़ रहे होते हैं। यही स्थिति पैरंटिंग को कठघरे में खड़ा कर देती है और कई बार बच्चों की मानसिक सेहत को भी प्रभावित करती है। बच्चों की मानसिक सेहत को ठीक करने के लिए क्या-क्या कर सकते हैं, जानिए।
0 से 6 साल की उम्र में होने वाली समस्याएं
A समस्या: ऑटिज़म
ऑटिज़म में बच्चे की कम्युनिकेशन स्किल्स और लैंग्वेज दोनों ही उसकी उम्र के अनुसार विकसित नहीं हो पाती हैं।
B. समस्या: मेंटल रिटार्डेशन
उम्र के हिसाब से कोई भी काम ना सीख पाना। बैठना, क्रोलिंग, चलना, हर काम देरी से सीखना या पूरी तरह ना सीख पाना।
C. समस्या: लर्निंग डिसऑर्डर
लर्निंग डिसऑर्डर में बच्चे को किसी खास विषय को समझने, पढ़ने या लिखने में समस्या हो सकती है।
D. समस्या: फूड हैबिट्स
बच्चा भोजन करने में नखरे करता है। उम्र के हिसाब से कम खाता है।
E. समस्या: न्यूट्रिशन संबंधी समस्या
बच्चे की उम्र के हिसाब से उसके शरीर और ब्रेन का विकास ना होना।
7 से 12 साल की उम्र में होने वाली समस्याएं
A. समस्या: बेड वेटिंग
बच्चा रात को सोते समय बिस्तर पर ही पेशाब कर देता है।
B. समस्या: एडीएचडी (ADHD)
बच्चा बहुत अधिक शरारती होता है, एक जगह पर टिककर नहीं बैठ पाता, किसी भी एक काम को पूरा नहीं कर पाता, पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा पाता, दूसरे बच्चों को पढ़ने नहीं देता। बुलिइंग करता है।
C. समस्या: लर्निंग डिसएबिलिटी
बच्चे को मैथ्स पढ़ने में समस्या होती है, बच्चा शब्दों को उल्टा पढ़ता है, कई महीनों की प्रैक्टिस के बाद भी बच्चा एक लाइन पर नहीं लिख पाता, बच्चे को सिक्वेंस में चीजें याद रखने में समस्या होती है। यह समस्या छोटे बच्चों में भी होती है लेकिन उस समय पहचानकर यदि क्योर ना किया जाए तो यह बड़े होने पर भी बनी रहती है और प्री-स्कूल के बाद स्कूल के स्तर पर बच्चे को समस्या होने लगती है।
D. समस्या: डिप्रेशन की शुरुआत
बच्चा गुमसुम रहता है, चिढ़चिढ़ा हो गया है, खाना कम खाता है, दोस्तों से मिलने नहीं जाता, स्कूल में भी गेम्स जैसी ऐक्टिविटीज में इनवॉल्व नहीं होता है। पढ़ाई में परफॉर्मेंस गिरने लगती है, इत्यादि।
13 से 17 साल की उम्र से जुड़ी समस्याएं
A. समस्या: कंडक्ट डिसऑर्डर
एग्रेसिव बिहेवियर, सेल्फ हार्मिंग बिहेवियर, सुसाइडल बिहेवियर, पर्सेप्शन ऑफ अकैडमिक स्ट्रैस के कारण व्यवहार में नकारात्मक बदलाव आना।
B. समस्या: एडिक्शन, जैस- केमिकल एडिक्शन, इंटरनेट एडिक्शन
बच्चा परिवार से कटने लगता है, घर में ज्यादा बातचीत नहीं करता और कमरा बंद करके अकेला रहना पसंद करता है। चिढ़चिढ़ा हो गया है। गुस्सा बहुत करने लगा है, स्कूल से शिकायतें आने लगी हैं, पढ़ाई पर ध्यान नहीं लगा पा रहा।
C. समस्या: बिहेवियरल डिसऑर्डर्स
बच्चा अचानक से गुमसुम रहने लगता है, अकेले में अधिक समय बिताता है, खेलने जाना और दोस्तों से मिलना बंद कर दिया है या बहुत कम कर दिया है, बातों को अनसुना करने लगा है, कुछ पूछने पर रिप्लाई नहीं करता यदि करता है तो गुस्से में या बहुत बेमन से जवाब देता है। बाथरूम के अधिक चक्कर लगाने लगा है।
D. समस्या: इमेज डिसऑर्डर
खाना बहुत कम खाना, खाना खाते ही उल्टियां करना। भूख से अधिक भोजन करना और फिर उल्टियां करके उसे निकाल देना। हर समय अपने लुक्स को लेकर चिंतित रहना। लोगों से घुलने-मिलने से बचना, घर से बाहर कम निकलना।
कौन-सी फिल्में करेंगी मदद?
1. फिल्म: तारे ज़मी पर
क्या देखने को मिलेगा: लर्निंग डिसऑर्डर से पीड़ित बच्चों की समस्याएं, उनके लिए बेहतर करियर का स्कोप कैसे पता करें।
2. फिल्म: डियर जिंदगी
क्या देखने को मिलेगा: बचपन का ट्रॉमा कैसे युवावस्था में भी बच्चे का पीछा नहीं छोड़ता और उसे सामान्य जीवन नहीं जीने देता।
3. फिल्म: उड़ान
क्या देखने को मिलेगा: टीनेजर बच्चे को घर में प्यार न मिले तो वे कैसे विद्रोही हो जाते हैं।
4. फिल्म: रमन राघव
क्या देखने को मिलेगा: सेक्शुअली एब्यूज के शिकार बच्चे को समय पर सपोर्ट न मिले तो उसकी मानसिकता कैसे विकृत हो सकती है।
सुझाव: रमन राघव फिल्म बच्चे के साथ बैठकर न देखें।
हाइपर ऐक्टिव बच्चा
समस्या: स्कूल से बच्चे की शिकायतें आती रहती हैं
लक्षण: स्कूल से बच्चे की लगातार शिकायतें आ रही हैं? जैसे, यह पढ़ता नहीं है, दूसरे बच्चों को पढ़ने नहीं देता, होमवर्क पूरा नहीं करता। क्लास के बच्चों को टंगड़ी मारकर गिरा देता है। बच्चों की बुलिंग करता है, मारपीट करता है आदि।
वजहें: अनुवांशिकता, प्रेग्नेंसी के दौरान अत्यधिक एल्कोहॉल, तंबाकू सेवन या स्मोकिंग करना। एनवायरमेंटल कारणों से लेड का एक्सपोजर (घर में होने वाला पेंट या मोबाइल का अधिक यूज)।
हल: ऐसा होने पर परेशान होने या बच्चे को सजा देने की जगह उससे बात करनी चाहिए। उसे सही और गलत का फर्क समझाना चाहिए। अगर आपकी बात का असर होता है तो ठीक है क्योंकि एक सामान्य बच्चा इन बातों को समझ भी जाता है और मान भी लेता है। हो सकता है, उसे एक से ज्यादा बार समझाना पड़े। लेकिन बार-बार समझाने के बाद भी बच्चे में सुधार नहीं हो रहा है तो चाइल्ड सायकायट्रिस्ट को दिखाने की जरूरत है क्योंकि ये लक्षण अटेंशन डिफिसिट हाइपर ऐक्टिविटी डिसऑर्डर (ADHD) के भी हो सकते हैं। समस्या का स्तर जांचने के बाद निर्णय लिया जाता है कि किन थेरपीज से बच्चे की समस्या दूर हो जाएगी।
समस्या: बच्चा एक जगह टिककर नहीं बैठता
लक्षण: जो बच्चे हाइपर ऐक्टिव होते हैं, वे बहुत ज्यादा चंचल होते हैं और उनमें अपने हमउम्र दूसरे बच्चों की तुलना में एनर्जी बहुत अधिक होती है। जब इनकी एनर्जी को सही गाइडेंस के साथ चैनलाइज न किया जाए तो ये बहुत उछल-कूद करते हैं। एक जगह टिककर न बैठना, घर का सामान फैला देना, खूब दौड़-भाग करना जैसी ऐक्टिविटीज करते हैं।
वजहें: पैरंट्स को लगता है कि बच्चा शरारत कर रहा है जबकि बच्चा खुद समझ नहीं पा रहा होता है कि वह क्या करे। उसके अंदर की एनर्जी उसे टिककर बैठने नहीं देती और पैरंट्स उसे डांटकर एक जगह टिककर बैठने को कहते हैं। हाइपर ऐक्टिव होना कोई बीमारी नहीं है।
हल: बस बच्चे को समझकर उसकी ऊर्जा का सही उपयोग करें। जैसे, उसे आउटडोर गेम्स के लिए मोटिवेट करें। एक्सरसाइज या रनिंग कराएं। ऐसे बच्चों में शानदार खिलाड़ी और ऐथलीट बनने की क्षमता होती है। अगर खुद की कोशिशों से फायदा न हो तो ऊर्जा को चैनलाइज करने के लिए चाइल्ड सायकायट्रिस्ट की मदद लेने में न झिझके।
समस्या: बच्चा बहुत ज्यादा गुस्सा करता है
लक्षण: यदि छोटा बच्चा बहुत ज्यादा गुस्सा करने लगा है तो इसका मतलब यह होता है कि वह किसी डर या इनसिक्योरिटी से गुजर रहा है। अगर 5 से 15 साल का बच्चा अचानक ज्यादा गुस्सा करना शुरू कर दे तो इसका कारण होता है कि बच्चे का साथ कुछ ऐसा हो रहा है, जिसे वह बता नहीं पा रहा है या परिवार में उसे प्यार नहीं मिल रहा है।
वजहें: यदि 15 से 18 साल का बच्चा अचानक गुस्सा करना, चीखना, उलटे जवाब देना, बात न मानना जैसी ऐक्टिविटी शुरू कर दे तो पीयर प्रेशर, स्कूल का प्रेशर, घर का खराब माहौल या ब्रेकअप जैसी समस्याएं या ऑपोजिशनल डिफाइंट डिसऑर्डर (ODD) इसका कारण हो सकता है। इसमें बच्चा खुद को उपेक्षित महसूस करता है।
हल: इस स्थिति में पैरंट्स बच्चे से प्यार से बात करें और उसकी समस्या समझने का प्रयास करें साथ में उसे गाइड करते हुए यह अहसास कराएं कि आप हर कदम पर उसके साथ हैं। अगर फिर भी न समझे तो चाइल्ड मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट की मदद लें।
शुरुआत में कैसे करें हैंडल
गलत तरीका
- बच्चों को डांटना या पीटना
- अपने बच्चों की तुलना दूसरे बच्चों से करना
- बच्चों को शारीरिक या मानसिक सजा देना
- बच्चों को डराना
- बच्चों को दूसरों के सामने भला-बुरा कहना
सही तरीका
- बच्चे से पूछें कि वो ऐसा क्यों कर रहा है
- उसे समझाएं कि ऐसा करना अच्छा नहीं होता
- बताएं कि उसे चोट लग सकती है और फिर वह दोस्तों से नहीं मिल पाएगा
- एनर्जी का सही उपयोग करने की विधि बताएं, जैसे, फुटबॉल या बैडमिंटन खेलने
- के लिए प्रेरित करें
- बच्चे से उसके फ्यूचर और करियर को लेकर सकारात्मक ढंग से बात करें
एक तेज बच्चा और हाइपर ऐक्टिव में फर्क को जरूर समझें
ज्यादातर पैरंट्स हाइपर ऐक्टिव बच्चे और ADHD से पीड़ित बच्चे के बीच फर्क नहीं समझ पाते क्योंकि दोनों ही केस में बच्चा एक जगह पर टिककर नहीं बैठ पाता। ऐसे में कैसे पता करें कि समस्या क्या है?
- दोनों में फर्क यह है कि हाइपर ऐक्टिव बच्चे आमतौर पर अपना होमवर्क जल्दी पूरा कर लेते हैं। इन्हें जो भी कोई काम दिया जाता है, उसे ये फटाफट पूरा कर लेते हैं। ADHD वाले बच्चों में एकाग्रता की बहुत ज्यादा कमी होती है। इसलिए ये अपना होमवर्क पूरा नहीं कर पाते। किसी भी काम को बीच में ही छोड़ देते हैं और दूसरे काम में लग जाते हैं और यही सिलसिला चलता रहता है।
- हाइपर ऐक्टिव बच्चे जो गेम खेल रहे होते हैं, उसे पूरी तरह एंजॉय करते हुए मन लगाकर खेलते हैं। ADHD वाले बच्चे किसी खेल को भी ज्यादा देर तक नहीं खेल पाते। यदि आप अपने बच्चे की एनर्जी को सही तरीके से चैनलाइज नहीं कर पा रहे हैं या यह नहीं समझ पा रहे कि चाइल्ड हाइपर ऐक्टिव है या ADHD से पीड़ित है तो मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट या चाइल्ड सायकायट्रिस्ट की मदद लें।
गुमसुम बच्चा
आरव (बदला हुआ नाम) 12 साल का है और इस उम्र के ज्यादातर बच्चों की तरह हंसमुख, खेलकूद में आगे रहने वाला और हर स्कूल ऐक्टिविटी में बढ़-चढ़कर भाग लेनेवाला बच्चा है। लेकिन अचानक आरव ने बात करना बंद कर दिया, ग्राउंड में खेलने भी नहीं जाता और घर का कोई भी ऐसा कोना ढूंढता है, जहां अकेला बैठ सके। स्कूल जाने के नाम पर कांपने लगता, स्कूल न जाने के बहाने बनाता। जब पैरंट्स डांटकर स्कूल भेज देते तो आने के बाद फिर गुमसुम होकर कमरा बंद करके बैठ जाता। पैरंट्स के बहुत पूछने पर भी उसने कुछ नहीं बताया। फिर क्लिनिकल साइकॉलजिस्ट को दिखाने पर पता चला कि स्कूल वैन वाले भैया उसे गलत तरीके से छूते हैं। साथ ही कहते हैं कि किसी को बताया तो बहुत बुरा होगा। इससे आरव बहुत डर गया। उसे समझ नहीं आया कि वह इस बात को किसे और कैसे बताए। पैरंट्स को इस बात का पता चलने के बाद स्कूल में
शिकायत की गई और दोषी के खिलाफ ऐक्शन लिया गया। पैरंट्स बच्चे में ऐसा बदलाव देखें तो अनदेखा न करें। हो सकता है बच्चा किसी बड़ी मुसीबत में हो और कह न पा रहा हो।
समस्या: बात-बात पर रोने लगता है बच्चा
लक्षण: कुछ पैरंट्स को शिकायत रहती है कि बच्चा बात-बात पर रोने लगता है। जैसे, मम्मी-पापा कहीं जाने लगते हैं तब रोने लगता है। घर में कोई आता है तब रोने लगता है। उसे लेकर किसी रिश्तेदार के घर जाओ तो वहां रोता रहता है, बैठने नहीं देता।
वजहें: बच्चे का ऐसा व्यवहार यह बताता है कि वह किसी बात से बहुत डरा हुआ है। कोई ट्रॉमा, फोबिया या सेपरेशन एंग्जाइटी उसे परेशान कर रही है। 6 साल से कम उम्र के बच्चों में सोशल विड्रॉल अधिक देखा जाता है।
हल: आमतौर पर 3 से 12 साल की उम्र के बच्चे भी इस तरह के डर को बोलकर एक्सप्रेस नहीं कर पाते हैं। 6 से 12 साल की उम्र के बच्चों में सायकोलजिकल समस्या का सबसे बड़ा लक्षण होता है पेट दर्द। स्कूल जाने से पहले या कोई भी ऐसा काम करने से पहले जिसका डर इन बच्चों के अंदर हो, ये पेट दर्द की शिकायत करते हैं। इसलिए चाइल्ड सायकायट्रिस्ट की मदद ली जानी चाहिए।
समस्या: बच्चा उदास रहता है
लक्षण: 6 से 15 साल की उम्र होने पर भी कुछ बच्चे कम बोलते हैं। घर में मेहमान आने पर ऐसा कोना तलाशते हैं, जहां अकेले बैठ सकें। किसी के घर जाना पसंद नहीं करते, इनके दोस्त भी एक-दो ही होते हैं या नहीं होते हैं। इनसे जितना पूछा जाता है, सिर्फ उतना जवाब देते हैं। आगे बढ़कर खुद किसी से बात नहीं करते।
वजहें: इन बच्चों के साथ एक और समस्या यह होती है कि ये स्कूल, कॉलेज या प्ले स्टेशन पर आसानी से बुलिंग का शिकार हो जाते हैं, जिससे इनका गुमसुम रहना बढ़ जाता है और इनकी मानसिक सेहत पर बुरा असर पड़ने लगता है। जैसे एंग्जाइटी, फोबिया, डिप्रेशन। यदि आपका बच्चा भी ऐसा व्यवहार करता है तो इसका सबसे बड़ा कारण घर का माहौल होता है।
हल: बच्चे की तुरंत मदद करने का तरीका है: बहुत सवाल ना करें, ऐक्टिविटीज में लगाएं, ध्यान हटाएं, आशा और उम्मीद जगाएं, किसी ऐसे बड़े से बात कराएं जिससे बच्चे की बनती हो. जरूरी हो तो डॉक्टर के पास ले जाएं
लंबे समय में बच्चे को इन स्थितियों से बचाने का तरीका: पैरंट्स को देखना होगा कि क्या परिवार के सभी लोग एक-दूसरे के साथ बैठकर बात करते हैं, क्या पैरंट्स शुरुआत से ही बच्चे को रिश्तेदारों के घर, दोस्तों के घर या पार्टीज में अपने साथ लेकर गए हैं। क्योंकि बच्चे गुमसुम या शर्मीले स्वभाव के तभी बनते हैं, जब उन्हें शुरुआत से ही सोशल एक्सपोजर नहीं मिला होता है।
शुरुआत में कैसे करें हैंडल
पढ़ाई में पिछड़ जाने वाला बच्चा
समस्या: बच्चा मैथ्स पढ़ना नहीं चाहता
लक्षण: मैथ्स को ही समस्या मानता है। हमेशा इससे भागता रहता है। बच्चा शब्दों को उल्टा पढ़ता है, कई महीनों की प्रैक्टिस के बाद भी बच्चा एक लाइन पर नहीं लिख पाता, बच्चे को सिक्वेंस में चीजें याद रखने में समस्या होती है। यह समस्या छोटे बच्चों में भी होती है लेकिन उस समय पहचानकर यदि क्योर न किया जाए तो यह बड़े होने पर भी बनी रहती है और प्री-स्कूल के बाद स्कूल के स्तर पर बच्चे को समस्या होने लगती है।
वजहें: मैथ्स में रुचि न होने के कई कारण हो सकते हैं। सबसे पहला कारण है, जिस तरीके से बच्चे को सिखाने की कोशिश हो रही है, उसके लिए वह सही नहीं है। मैथ्स की क्लास में कभी कोई ऐसी घटना हुई है, जिससे बच्चे का मजाक बना हो, उसे बुली किया गया हो या टीचर ने बहुत अधिक डांट दिया हो। इनके अलावा ‘डिसकैलकुलिया डिसऑर्डर’ भी इस समस्या का कारण हो सकता है। इसमें बच्चे को जोड़ने, घटाने और भाग करने में समस्या होती है। यह एक मेंटल डिसऑर्डर है जो बच्चे में ब्रेन के उस फंक्शन एरिया के ठीक से काम न करने के कारण होता है जो इसके लिए रिजर्व होता है।
हल: इस समस्या को स्पेशल ट्रेनिंग के जरिए ठीक किया जा सकता है। इसके लिए चाइल्ड साइकॉलजिस्ट और स्पेशल ट्रेनर की हेल्प ले सकते हैं।
समस्या: किताब देखकर भी गलत पढ़ता है
लक्षण: किताब देखते हुए भी ठीक से न पढ़ पाने की समस्या बच्चों में उम्र के साथ ठीक हो जाती है। लेकिन 6 साल का बच्चा उतना भी नहीं पढ़ पा रहा है, जितना 4 साल की उम्र में पढ़ना चाहिए तो यहां डिस्लेक्सिया लर्निंग डिसऑर्डर हो सकता है। इसमें बच्चे को पढ़ने में दिक्कत होती है। हालांकि ये एक-एक अक्षर को पहचानते हैं और उन्हें पढ़ते भी हैं लेकिन न्यूरॉलजिकल समस्या के चलते इन शब्दों की मात्राओं को नहीं समझ पाते, शब्दों को सही ढंग से असोसिएट नहीं कर पाते इसलिए उच्चारण करने में इन्हें दिक्कत होती है। हालांकि यह समस्या इन्हें सिर्फ बड़े शब्दों को पढ़ने में आती है। छोटे शब्दों को ये आसानी से पढ़ लेते हैं।
वजहें: ऐसा ब्रेन में लैंग्वेज प्रॉसेसिंग एरिया में न्यूरॉलजिकल समस्या होने की वजह से होता है। स्पेशल एजुकेशन और ट्रेनिंग के जरिए इसमें सुधार किया जा सकता है।
हल: लर्निंग मैथड को समझकर उसी प्रकार से उसे चीजें समझाई और सिखाई जाती हैं। इस काम में स्पेशल एजुकेटर और चाइल्ड साइकॉलजिस्ट का रोल अहम होता है।
समस्या: उम्र के साथ तालमेल नहीं बिठा पाना
लक्षण: उम्र के हिसाब से कोई भी काम न सीख पाना। बैठना, क्रोलिंग, चलना, हर काम देरी से सीखना या पूरी तरह न सीख पाना।
वजहें: अनुवांशिकता, प्रेग्नेंसी के दौरान गलत दवाओं का सेवन, बर्थ के दौरान सर्जरी संबंधी कोई समस्या, हेल्थ प्रॉब्लम्स।
हल: थेरपीज और रेग्युलर प्रैक्टिस के माध्यम से इन बच्चों को डेली लाइफ संबंधी चीजें सिखाई जाती हैं। इसका कोई पुख्ता इलाज नहीं है।
ये और भी समस्याएं
आन्या (बदला हुआ नाम) की उम्र 7 साल है और वह हर दिन मम्मी से यही शिकायत करती है कि आप मुझे सब्जी-चपाती देती हो जबकि मेरी फ्रेंड प्रिशा की मम्मी उसे टिफिन में पास्ता, बर्गर, पिज्जा रखकर देती हैं। मुझे भी अपने टिफिन में यही चाहिए। रोज-रोज होने वाली इस डिमांड को आन्या की मम्मी ने गंभीरता से लिया और फिर बैठकर आन्या से बात की। उसकी फ्रेंड प्रिशा (बदला हुआ नाम) की मम्मी को क्रिटिसाइज किए बिना उन्होंने आन्या को हेल्दी डायट, फ्रूट्स, पोहा, खिचड़ी, चीला, स्प्राउट्स आदि का महत्व समझाया। उसे बताया कि ये चीजें खाने से उसके शरीर और दिमाग पर अच्छा असर पड़ेगा और फास्टफूड खाने से बुरा असर पड़ेगा। साथ में प्रॉमिस किया कि हर संडे को आन्या की पसंद का कोई एक फास्टफूड खाएंगे। इस पर आन्या भी सहमत हो गई और उसकी मम्मी की समस्या भी दूर हो गई। खाने को लेकर बच्चे के साथ यह अप्रोच अपनाना बहुत सही और जरूरी कदम है क्योंकि जो बच्चे फ्रेंड्स को देखकर फास्टफूड की डिमांड करते हैं, वे समझदारी के स्तर पर इतने बड़े हो चुके होते हैं कि उन्हें प्यार से समझाया जाए तो सही और गलत का अंतर समझ लेते हैं।
समस्या: फूड हैबिट्स
लक्षण: बच्चा भोजन करने में नखरे करता है। उम्र के हिसाब से कम खाता है।
वजहें: लिक्विड डायट के बाद ठोस आहार का स्वाद पसंद ना आना।
हल: पैरंट्स और बच्चे की काउंसलिंग की जाती है, बच्चे का रुटीन सेट किया जाता है। कोई शारीरिक समस्या दिखने पर दवाएं भी दी जाती हैं।
समस्या: न्यूट्रिशन संबंधी
लक्षण: बच्चे की उम्र के हिसाब से उसके शरीर और ब्रेन का विकास ना होना।
वजहें: शारीरिक या मानसिक समस्या होना।
हल: पहले कारण का पता लगाया जाता है फिर उसी के अनुसार इलाज चलता है।
2. समस्या: दूसरों की चीजों को चुपके से उठा लेना
लक्षण: कुछ बच्चों में इस तरह की आदत पड़ जाती है। यह समस्या आमतौर पर 3 से 5 साल के बच्चे में भी देखने को मिल सकती है और 6 से 15 साल की उम्र के बीच कई अलग-अलग कारणों से शुरू हो सकती है। जब 3 से 5 साल का बच्चा ऐसा करता है तो उसकी मंशा चोरी नहीं होती। उसे कोई सामान पसंद आता है तो अपने पास रख लेता है। इससे बड़ी उम्र में बच्चे को पता होता है कि किसी दूसरे का सामान लेना अच्छी बात नहीं है।
वजहें: इसकी कई वजहें होती हैं। जैसे, घर में उसकी जरूरतें पूरी न होना, दोस्तों को गिफ्ट करने के लिए ऐसा करना, खुद को दूसरों के बराबर महसूस कराना, भाई-बहन की तुलना में खुद को उपेक्षित महसूस करना।
हल: जब पता चले कि बच्चे ने चोरी की है तो उसे डांटे नहीं, दूसरों के सामने बेइज्जत न करें। बल्कि अकेले में वजह पूछें। प्यार से समझाएं कि ऐसा करना अच्छी बात नहीं है। बच्चे को प्यार से बताएं कि वह किस तरह चुराई गई चीज को उसी व्यक्ति को वापस करे, जिसका वह सामान है। बच्चे के अंदर प्रॉपर्टी राइट्स और सेल्फ रेस्पेक्ट जैसे गुण विकसित करें। इसके लिए उसके साथ समय बिताएं, अच्छी कहानियां सुनाएं। कुछ जेब खर्च हर महीने दें। सुधार ना होने पर सायकाइट्रिस्ट को दिखाएं क्योंकि हो सकता है कि बच्चे को क्लिप्टोमेनिया डिसऑर्डर हो। इसमें बच्चा बिना किसी वजह के सामान उठाने लगता है।
3. समस्या: हर समय मोबाइल की डिमांड करता है
लक्षण: बच्चों में मोबाइल की डिमांड बढ़ने की समस्या कोरोना के बाद से ज्यादा देखने को मिल रही है। इसके पहले भी बच्चे फोन की डिमांड करते थे लेकिन कोविड के बाद से मोबाइल बच्चों के लिए एक आदत बन गया है।
वजहें: इसके कई कारण हैं। जैसे, कोरोना के दौरान बच्चों का घर में ही कैद हो जाना, दोस्तों से न मिल पाना, ऑनलाइन पढ़ाई, दोस्तों के साथ ऑनलाइन बातें करना। पैरंट्स को कोरोना हुआ तो बच्चे एकदम अकेले हो गए, उन्हें कोई देखने वाला नहीं था इस दौरान उन्होंने मोबाइल को अपना साथी बना लिया। ऐसी कई वजहों से बच्चों में इंटरनेट एडिक्शन बढ़ा है।
हल: समय रहते इस आदत को लत में बदलने से रोकना जरूरी है। नहीं तो बच्चे की शारीरिक और मानसिक सेहत पर बुरा असर पड़ता है। आप बच्चे के लिए मोबाइल यूज करने का समय निर्धारित कर सकते हैं। बच्चे के लिए टाइमटेबल बनाएं और उसे समझाएं कि सभी जरूरी काम जैसे, होमवर्क, ट्यूशन, ग्राउंड प्ले आदि के बाद उसे सिर्फ आधे घंटे या एक घंटे के लिए मोबाइल मिलेगा।
4. समस्या: बात करने में परेशानी
लक्षण: ऑटिज़म में बच्चे की कम्युनिकेशन स्किल्स और लैंग्वेज दोनों ही उसकी उम्र के अनुसार विकसित नहीं हो पाती हैं।
वजहें: जन्म से ही मस्तिष्क में न्यूरॉन्स संबंधी समस्या होना, प्रेग्नेंसी के दौरान मां का ब्लड प्रेशर बहुत अधिक हाई रहना।
हल: इसका इलाज माइल्ड-मॉडरेट या सीवियर स्टेज को ध्यान में रखकर होता है। उसी अनुसार दवाएं और थेरपी दी जाती हैं।
5. समस्या: बेड वेटिंग
लक्षण: बच्चा रात को सोते समय बिस्तर पर ही पेशाब कर देता है। उसे यूरिन आने के प्रेशर का अहसास नहीं होता।
वजहें: ब्लेडर का पूरा विकास ना होना, ब्लेडर को कंट्रोल करने वाली नर्व में समस्या होना, ऐंटि-डाइयूरेटिक हॉर्मोन (ADH) का सही मात्रा में न बनना। स्लीप एपनिया, शुगर, क्रोनिक कॉन्स्टिपेशन, यूरिनरी ट्रैक्ट और नर्व्स सिस्टम में जन्म से ही कोई समस्या होना।
हल: समस्या का कारण जानने के बाद इलाज किया जाता है।
6. समस्या: इमेज डिसऑर्डर
लक्षण: खाना बहुत कम खाना, खाना खाते ही उल्टियां करना। भूख से अधिक भोजन करना और फिर उल्टियां करके उसे निकाल देना। हर समय अपने लुक्स को लेकर चिंतित रहना। लोगों से घुलने-मिलने से बचना, घर से बाहर कम निकलना।
वजहें: हॉर्मोनल बदलाव, अपोजिट जेंडर के किसी हमउम्र को इंप्रेस करने की तीव्र इच्छा, पर्फेक्ट दिखने का दबाव खुद पर हावी कर लेना।
हल: काउंसलिंग। पैरंट्स द्वारा बच्चों को ज्यादा समय देने का सुझाव, फैमिली के साथ बच्चों का ज्यादा से ज्यादा इंटरेक्शन बढ़ाना, बच्चों को घर के कामों और जिम्मेदारियों में शामिल करना।