चांद पर स्थाई बेस बनाने के लिए चीन ने 3 नए अभियानों को दी मंजूरी

चीन का चांग ई कार्यक्रम (Chang’e lunar program) की शृंखला विशेष तौर से चंद्रमा के लिए ही बनाई गई है. (प्रतीकात्मक तस्वीर:  Axel Monse/shutterstock)

चीन का चांग ई कार्यक्रम (Chang’e lunar program) की शृंखला विशेष तौर से चंद्रमा के लिए ही बनाई गई है.

एक तरफ अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा (NASA) चंद्रमा पर इंसान भेजने की तैयारी में हैं, तो वहीं चीन (China) भी अपनी गति से चंद्रमा के लिए अपने अभियानों पर काम कर रहा है. वह चंद्रमा के पिछले हिस्से पर पहुंच चुका है, चंद्रमा से मिट्टी और चट्टानों के नमूने भी ला चुका है. वह रूस के साथ मिलकर चंद्रमा पर एक स्थाई बेस बनाने की योजना पर भी काम कर रहा है. इसी के लिए हाल ही चीन की स्पेस एजेंस चाइना नेशनल स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (China National Space Administration, CNSA) ने अपनी सरकार से चंद्रमा के लिए चांग-ई कार्यक्रम के तहत तीन नए अभियानों की मंजूरी हासिल की है.

18 साल से चल रहा कार्यक्रम आगे बढ़ेगा
सीएनएसए ने हाल ही में अपने बयान में खुलासा किया है कि इस मंजूरी के साथ ही उसका चांग ई लूनार कार्यक्रम चौथे चरण के बाद आगे बढ़ सकेगा. यह कार्यक्रम चीन ने साल 2004 में शुरू किया था. ये तीनों अभियान अगले एक दशक में पूरे किए जाएंगे जिनके नाम चांग ई-6, चांगई -7 और चांग ई-8 होंगे.

ये काम हो चुके हैं इस कार्यक्रम में
अभी तक चांग ई कार्यक्रम के चौथे चरण के जरिए चीन चंद्रमा के  पिछले हिस्से में उपस्थिति दर्ज करा चुका है तो चांग ई-5 चंद्रमा से मिट्टी और चट्टानों के नमूनों को सफलतापूर्वक पृथ्वी पर लाने में सफल रहा है. सीसीटीवी  के मुताबिक सीएसएनए के लूनार एक्सप्लोरेशन एंड स्पेस प्रोग्राम सेंटर के निदेशक ल्यू जिझोंग ने बताया कि चांग ई-6 प्रोब का उत्पादन चरण पूरा हो चुका है.

चांद के पिछले हिस्से के नूमने
जिझोंग ने बताया कि वैसे तो चांग ई -4 चांद के पिछले हिस्से में पहले ही जा चुका है, लेकिन इंजीनियरों और वैज्ञानिकों के साथ चर्चाओं के बाद यह तय किया गया है कि चांग ई-6 प्रोब भी उस हिस्से में जाएगा और वहां से नमूने लेकर पृथ्वी पर वापस लाने का काम करेगा. ये नमूने बहुत ही कीमती साबित हो सकते हैं.

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चंद्रमा पर स्थाई बेस
विशेषज्ञों का यह भी कहना है की इन अभियानों का प्रमुख लक्ष्य चंद्रमा पर स्थाई बेस बनाने के लिए जमीन तैयार करने का होगा. चीन और रूस ने मिलकर चंद्रमा पर इंटरनेशनल लूनार रिसर्च सेंटर, आईएलआरएस बनाने के लिए सहयोग करने पर समझौता किया है. इस सेंटर का निर्माण साल 2030 में शुरू हो कर 2030 के दशक के मध्य में पूरा हो जाएगा.

नासा के साथ प्रतिस्पर्धा
गौरतलब है कि चीन और रूस ने चंद्रमा पर अपना स्थाई बेस बनाने के लिए सहयोग अमेरीकी स्पेस एजेंसी नासा के आर्टिमिस समझौते के जवाब में किया था. नासा ने अंतरिक्ष उत्खनन में सहयोग करने के लिए अपने साथियों के साथ आर्टिमिस समझौता तैयार किया था जिस पर रूस ने ऐतराज जताया था. वहीं चीन और अमेरिका एक दूसरे के कट्टर प्रतिद्वंदी पहले से ही हैं. चीन पहले से ही अंतरिक्ष प्रतिस्पर्धा में अमेरिका से आगे निकलने के लिए प्रयास कर रहा है.नासा भी आर्टिमिस अभियान के तहत चांद पर स्थाई बेस बनाने की तैयारी में है.

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चीन (China) अमेरिका के साथ अंतरिक्ष प्रतिस्पर्धा में आगे निकलना चाहता है, इसलिए वह इस तरह की लंबी योजनाओं पर काम कर रहा है.

क्या करेगा अगला अभियान
मूल रूप से चांग ई-6 पिछले अभियान के बैकअप के रूप में तैयार किया जा रहा था, लेकिन चांग ई -5 ने चंद्रमा से नमूने सफलता पूर्वक हासिल कर लिए थे. अब चंद्रमा के पिछले हिस्से, जो कि पृथ्वी से कभी दिखाई नहीं देता, नमूने हासिल करने के बाद अगला पड़ाव चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव होगा. इसके लिए एक ऑर्बिटर, लैंडर, रोवर, रिले सैटेलाइट और छोटा डिटेक्टर भेजा जाएगा.

चांग ई-7 चंद्रमा के क्रेटरों पर पानी खोजने का भी काम करेगा. वहीं दूसरी तरफ चांग ई-8 स्थानीय संसाधनों का उपयोग करने के लिए थ्रीडी प्रिंटिंग केतकनीकी प्रदर्शन पर ध्यान केंद्रित करेगा. फिलहाल चंद्रमा के पिछले पर चांग ई-4 के अभियान के द्वारा भेजा गया यूतू2 रोवर विचरण कर रहा है और वहां से संकेत भी भेज रहा है. वहीं चीन का खुद इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन भी लगभग तैयार ही है और हो सकता है कि उसका उपयोग भी चंद्रमा के अभियानों के लिए किया जाएगा.