China Is Losing Manufacturing Dominance: चीन में कोरोना के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इसका असर चीन की फैक्ट्रियों पर पड़ रहा है। प्रोडक्शन कम हुआ है। वहीं चीन में फैक्ट्रियों में काम करने के लिए अब सस्ती लेबर भी आसानी से नहीं मिल रही है। ऐसे में फैक्ट्री ऑफ वर्ल्ड के रूप में चीन अपना दबदबा खो रहा है।
चीन के विकल्प की तलाश कर रही दुनिया
इकोनॉमिक्स टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, ऑस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन में 14-सदस्यीय इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क की हालिया बैठक में एक बार फिर रेखांकित किया गया कि दुनिया विनिर्माण के क्षेत्र में चीन के विकल्प की तलाश कर रही है। फोरम के चार स्तंभों में से एक के रूप में आपूर्ति श्रृंखला के साथ, अमेरिका ने चीन के विकल्प के रूप में सेवा करने में सक्षम सदस्य देशों में निवेश की सुविधा देकर “मित्रता” को बढ़ावा देने की उत्सुकता दिखाई है। यदि यह प्रयास आने वाले वर्षों में अपनी विशाल श्रम शक्ति, कम मजदूरी और अपेक्षाकृत बड़े आर्थिक आकार के साथ बढ़ता है, तो भारत में इस क्षेत्र में परिणामी वैकल्पिक आपूर्ति श्रृंखलाओं के केंद्र बिंदु के रूप में उभरने की क्षमता है।
भारत इस तरह उठा सकता है फायदा
चीन की फैक्ट्रियों में इस समय सबसे बड़ी समस्या सस्ते लेबर की है। इसका फायदा भारत उठा सकता है। देश में चीन की तुलना में सस्ते श्रमिकों की बड़ी फौज है। भारत इस मामले में चीन से काफी आगे है। हालांकि भारत को चीन से मुकाबला करने के लिए अपनी पॉलिसियों में कुछ बदलावों की भी जरूरत पड़ेगी। भारत को अपने आप को चीन के मुकाबले एक अलटरनेटिव मैन्युफैक्चिरिंग हब के रूप में विकसित करना होगा। भारत ने इस तरफ कदम बढ़ाए भी हैं। भारत भी अब कच्चे माल के लिए चीन पर अपनी निर्भरता कम कर रहा है। भारत अब ज्यादातर चीजों का निर्माण खुद करना चाहता है बजाए इसको चीन से निर्यात करने के। दुनिया के बाकी देश भी इस समय चीन के एक विकल्प की तलाश कर रहे हैं। ऐसे में अगर भारत अपने आप को मैन्युफैक्चिरिंग हब के रूप में तैयार करता है तो कंपनियां चीन की जगह भारत में ही अपनी फैक्ट्रियां लगाना पसंद करेंगी। हालांकि इसके लिए भारत को अपनी पॉलिसियों में कुछ बदलावों की जरूरत होगी। जिससे दुनिया के ऐसे देश जो चीन में फैक्ट्री लगा रहे हैं वो भारत का रुख करें। ऐसा होने पर देश की अर्थव्यवस्था और तेजी से बढ़ेगी।