चीन (China) ने कोविड-19 की रोकथाम के लिए लागू प्रतिबंधों में कई ढील देने की घोषणा कर दी है। कई जगहों से लॉकडाउन हटाने तो कई जगहों पर इसमें ढील देने का ऐलान कर दिया गया है। यह फैसला तब लिया गया जब राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Chinese President Xi Jinping) के खिलाफ बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन किए जा रहे थे। विशेषज्ञों की मानें तो कहीं न कहीं जिनपिंग को अहसास हो गया था कि अगर वह झुके नहीं तो फिर उन्हें सत्तापलट का सामना करना पड़ सकता है।
जिनपिंग से नाराज छात्र
बीजिंग, शंघाई और ऐसे कई शहरों में छात्र प्रदर्शन कर रहे थे। जीरो कोविड नीति को लेकर दंगे हो रहे थे और जनता का गुस्सा बढ़ता जा रहा था। ऐसे में जिनपिंग का झुकना लाजिमी था। पूर्व राजनयिक और ‘चाइना कूप’ के लेखक रोजर गारसाइड की मानें तो जिनपिंग का शासन इतने बड़े स्तर पर हो रहे प्रदर्शनों की वजह से खत्म होने की कगार पर आ गया था।
लगातार प्रदर्शनों की वजह से उन पर दबाव बढ़ रहा था। ऐसे में कम्युनिस्ट पार्टी में सीनियर रैंक्स पर मौजूद दूसरे नेता भी उनके खिलाफ विद्रोह कर सकते थे। गारसाइड ने कहा है कि कोविड नीति में ढील को जिनपिंग की कमजोर नस के तौर पर देखा जाएगा। न सिर्फ उनकी पार्टी के नेता बल्कि अब देश और विदेश में मौजूद चीनी नागरिक भी उन्हें कमजोर नेता के तौर पर देखेंगे। उनका कहना है कि जिनपिंग को जीरो कोविड नीति का मास्टरमाइंड माना जाता है।
नियमों में ढील
चीन ने कोविड-19 की रोकथाम के लिए लागू प्रतिबंधों में कई ढील देने की घोषणा की है। इसमें लॉकडाउन के नियमों को पूरे जिले या इलाके के बजाय किसी इमारत या उसकी विशेष मंजिल पर लागू किए जाने का नियम शामिल है। नए नियमों के तहत कोरोना वायरस से संक्रमित पाए जाने वाले लोग अस्पतालों में भर्ती होने के बजाय घर पर ही क्वारंटाइन में रह सकेंगे। इसके अलावा, जिन स्कूलों में संक्रमण का कोई मामला नहीं मिला है, वहां ऑफलाइन क्लासेज शुरू हो सकेंगी। ये रियायतें सख्त ‘जीरो कोविड’ नीति को लेकर चीन के विभिन्न शहरों में हुए प्रदर्शनों के मद्देनजर दी गई हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि देश में तीन साल से लागू इन प्रतिबंधों के चलते आम जनजीवन, यात्रा और रोजगार प्रभावित हुआ है, साथ ही अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर पड़ा है।
जिनपिंग पर था दबाव
नए नियमों के तहत कोरोना वायरस से संक्रमित पाए जाने वाले लोग अस्पतालों में भर्ती होने के बजाय घर पर ही क्वारंटाइन में रह सकेंगे। इसके अलावा, जिन स्कूलों में संक्रमण का कोई मामला नहीं मिला है, वहां ऑफलाइन क्लासेज शुरू हो सकेंगी। जीरो कोविड नीति ने दुनिया की दूसरी आर्थिक महाशक्ति चीन में आम जनजीवन को रोक दिया था। एतिहासिक प्रदर्शनों की वजह से जिनपिंग पर दबाव बढ़ता ही जा रहा था। साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इनका असर नजर आने लगा था।
जहां कुछ प्रतिबंध कायम रहेंगे तो कुछ हटा लिए गए हैं। नए ऐलान के बाद रोजाना की गतिविधियों जैसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सफर करना के लिए कोविड-19 के निगेटिव टेस्ट की जरूरत अब नहीं होगी। साथ ही बड़े पैमाने पर टेस्टिंग को भी रोक दिया गया है। कुछ शहरों में कुछ कड़े नियम हटाए जा रहे हैं। जहां नियमों में ढील आम जनता के लिए राहत की बात है तो कुछ विशेषज्ञों इससे घबराहट हो रही है।
संकट की तरफ है देश
गारसाइड का कहना है कि जीरो कोविड नीति में ढील सामाजिक और राजनीतिक संकट की तरफ इशारा करती है। वृद्धों के बीच कोविड वैक्सीनेशन में तेजी लाने की जरूरत है। उनकी मानें तो ढील की वजह से अगर देश में बड़े पैमाने पर मौत हुई तो फिर सामाजिक और राजनीतिक संकट बढ़ जाएगा। ऐसे में हो सकता है जिनपिंग को अपनी सत्ता तक छोड़नी पड़ी।
टला नहीं प्रदर्शन का खतरा
जीरो कोविड नीति में ढील के बाद अगर मौतों का आंकड़ा बढ़ा तो फिर नए सिरे से प्रदर्शन शुरू हो जाएंगे। माना जा रहा है कि कोविड नीति में ढील के बाद चीन में महामारी से होने वाली मौतों का खतरा कई गुना तक बढ़ गया है। झाहू जियातोंग जो गुआंगक्सी में स्थित सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के मुखिया हैं, उनका कहना है कि ढील के बाद चीन में 20 लाख लोगों की जान महामारी की वजह से जा सकती है।