China BRI G7 PGII Comparison : विकासशील देशों के लिए PGII का प्रस्ताव बेहद दिलचस्प है। हार्ड इन्फ्रास्ट्रक्चर पर BRI के सामान्य फोकस की तुलना में PGII के ऑफर में क्लाइमेट सिक्योरिटी, डिजिटल कनेक्टिविटी, लैंगिक समानता और स्वास्थ्य सुरक्षा शामिल हैं। ऐसे कई क्षेत्र हैं जिनमें पश्चिमी कंपनियां अपने चीनी समकक्षों की तुलना में अधिक लाभ हासिल कर सकती हैं, खासकर स्वच्छ ऊर्जा समाधान मुहैया कराने में।
बीजिंग/वॉशिंगटन : दुनिया में इस वक्त एक अजीबोगरीब रेस चल रही है। यह रेस है अलग-अलग देशों में बुनियादी ढांचों के निर्माण और उनमें निवेश की। इस रेस में एक तरफ अनुभवी खिलाड़ी चीन है जिसका बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव काफी हद तक अपने पैर फैला भी चुका है और जमा भी चुका है। वहीं दूसरी ओर अब अमेरिका भी इस मुकाबले में कूद चुका है। जून में बाइडन और जी-7 के नेताओं ने देशों के बीच ‘इन्फ्रास्ट्रक्चर की खाई को पाटने के लिए एक गेम चेंजिंग’ प्रोजेक्ट में 600 बिलियन डॉलर के निवेश की घोषणा की थी। इसमें 200 बिलियन डॉलर का निवेश अकेले अमेरिका कर रहा है। दोनों ही देशों के निर्माण नक्शे में एशिया शामिल है। लेकिन यह प्रतिस्पर्धा निर्माण से ज्यादा अब वर्चस्व की बनती जा रही है।
एशिया टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, जून 2022 में जी-7 समिट में ‘पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड इन्वेस्टमेंट’ (PGII) की लॉन्चिंग के बाद से इसे आकर्षण और संदेह, दोनों नजरों से देखा जा रहा है। विकासशील देशों के लिए बुनियादी ढांचों का विकास सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि उनकी क्षमताएं सीमित हैं। साल 2013 से 2020 के बीच चीन अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत दुनियाभर के इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में करीब 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश कर चुका है। चीन के निर्माण कार्य और निवेश छोटे देशों में बुनियादी ढांचे तो खड़े कर रहे हैं लेकिन ये चीन के बढ़ते वर्चस्व की चिंताओं से भरे हुए हैं।
PGII से चीन का मुकाबला लेकिन इतना आसान नहीं
पश्चिमी देशों ने इन चिंताओं को प्रमुख रूप से उठाया और अब वे बीआरआई का विकल्प लेकर सामने आए हैं। चीन का मुकाबला करने के लिए यकीनन PGII सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है लेकिन इसके भविष्य को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि बुनियादी ढांचों के लिए प्राइवेट कैपिटल जुटाने की योजना सफल होगी या नहीं। अधूरे प्रयासों का इतिहास भी पश्चिम के इन्फ्रास्ट्रक्चर इनिशिएटिव की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर रहा है। विकासशील देशों को अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए उच्च मानकों की मांग के साथ प्रतिद्वंद्वी प्रस्तावों का इस्तेमाल करके इस मुकाबले का फायदा उठाना चाहिए।
पश्चिमी के ऑफर चीन से ज्यादा लुभावने
विकासशील देशों के लिए PGII का प्रस्ताव बेहद दिलचस्प है। हार्ड इन्फ्रास्ट्रक्चर पर BRI के सामान्य फोकस की तुलना में PGII के ऑफर में क्लाइमेट सिक्योरिटी, डिजिटल कनेक्टिविटी, लैंगिक समानता और स्वास्थ्य सुरक्षा शामिल हैं। ऐसे कई क्षेत्र हैं जिनमें पश्चिमी कंपनियां अपने चीनी समकक्षों की तुलना में अधिक लाभ हासिल कर सकती हैं, खासकर स्वच्छ ऊर्जा समाधान मुहैया कराने में। निजी पूंजी जुटाकर बुनियादी ढांचे के लिए फंडिंग में 600 बिलियन डॉलर जुटाने का जी-7 का वादा भी गौर करने वाला है। बीमा और पेंशन फंड इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के लिए ऐसे स्रोत हैं जिन पर किसी ने ध्यान नहीं दिया और ये मूलभूत ढांचों की खाई को पाटने में विकासशील देशों की मदद कर सकते हैं।
चीन के अलावा इस क्षेत्र में कोई सफल नहीं
PGII के भविष्य को लेकर कई चिंताएं भी हैं। लैंगिक समानता पर इसका फोकस विकासशील एशियाई देशों में कमजोर पड़ सकता है। लेकिन PGII की विश्वनीयता की समस्या और भी ज्यादा गंभीर है। चीन के अलावा दूसरे इन्फ्रास्ट्रक्चर इनिशिएटिव के खराब ट्रैक रेकॉर्ड का साया PGII पर भी पड़ सकता है। जापान के पार्टनरशिप फॉर क्वालिटी इन्फ्रास्ट्रक्चर को छोड़ दें तो यूरोप और एशिया के लिए यूरोपियन यूनियन कनेक्टिविटी स्ट्रैटेजी और ईयू-इंडिया कनेक्टिविटी पार्टनरशिप जैसे इनिशिएटिव अधर में अटके हुए हैं।
एशिया के विकासशील देशों के पास बड़ा मौका
BRI और पश्चिम के इनिशिएटिव के बीच कई अंतर साफतौर पर देखे जा सकते हैं। चीन के पास साउथईस्ट एशिया में हाई-स्पीड रेलवे से लेकर हाइड्रोपावर प्लांट जैसी कई योजनाएं हैं लेकिन क्षेत्र में पश्चिम की एक से अधिक योजना भी गिनाना मुश्किल है। PGII सफल होगा या नहीं, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन कम उम्मीदों के बावजूद विकासशील एशिया को इस पर नजर रखनी चाहिए। क्षेत्र में दो इन्फ्रास्ट्रक्चर मॉडल की मौजूदगी से देशों को बेहतर डील के लिए सौदेबाजी करने में आसानी होगी।