ज़िन्दगी में किसी को भी रातों-रात सफ़लता नहीं मिलती. सालों की मेहनत, अनगिनत ठोकर खाकर, गिरकर फिर उठकर ही कोई शख़्स अपना मकाम हासिल करता है. एक इंसान की कभी न झुकने, कभी न रुकने की आदत ही उसे सितारों से भी आगे पहुंचाती है. और अगर बात एक महिला की करे तो उसमें तो प्रकृति ने दुनिया से लड़ जाने की ताकत भर दी है. ग़ौरतलब है कि लड़कियों और महिलाओं को उड़ने की आज़ादी नसीब नहीं होती. कुछ तो इसी को क़िस्मत मान लेती हैं लेकिन कुछ अपनी बेड़ियां हाथों से तोड़कर, अपने पंख फैलाती हैं, अगर समाज आसमान पर भी रोक लगा दे तो महिलाएं अपना आसमान बनाने का भी हुनर रखती हैं.
इंडिया टाइम्स हिंदी की कोशिश है कि ऐसी महिलाओं की कहानियां आप तक पहुंचाए. आज इस कड़ी में मिलते हैं चीनू काला से.
चीनू काला से मिलिए
हम में से कुछ लोग बड़े ही प्रीविलेज्ड हैं, हमारा बचपन आराम से खेलते-कूदते, पढ़ते-लिखते, नई कहानियां गढ़ते, सपने देखते बीतता है. ग़ौरतलब है कि दुनिया में ये भी कई बच्चों के नसीब में नहीं होता. चीनू काला भी उन्हीं में से एक हैं. सिर्फ़ 15 साल की उम्र में चीनू मुंबई स्थित घर छोड़ दिया, वजह थी परिवार में अनबन. उनके पास कपड़ों का एक बैग और जेब में सिर्फ़ 300 रुपये थे. बग़ैर किसी शैक्षणिक प्रमाण पत्र के चीनू दुनिया से भिड़ने को अकेले निकल पड़ी.
चीनू काला के शब्दों में, ‘अगर आप पूछेंगे कि हिम्मत कहां से मिली तो मेरे पास सच में इसका कोई जवाब नहीं है. मुझे बस पता था कि कुछ करना है. मेरे पास सिर्फ़ 2 जोड़ी कपड़े और एक जोड़ी चप्पल थी. पहले 2 दिन तो मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है और मैं बहुत डरी हुई थी. मुझे ख़ुद को संभालने में 2-3 दिन लगे. इसके बाद मुझे रहने के लिए एक डॉर्मिट्री मिली.’
घर-घर जाकर चाकू-छुरी बेचने का काम किया
चीनू को सर्वाइव करने के लिए एक नौकरी की ज़रूरत थी. देश में मौजूद नौकरी और बेरोज़गारी की समस्या से तो सभी वाकिफ़ हैं. चीनू के लिए भी नौकरी ढूंढना आसान नहीं था. कई दिनों तक भटकने के बाद उन्हें एक सेल्सवुमन की नौकरी मिली. चीनू का काम था घर-घर जाकर चाकू, छुरी, कोस्टर आदि बेचना. एक पूरे दिन जीतोड़ मेहनत करने के बाद चीनू के हाथ 20-60 रुपये ही आते थे.
चीनू के शब्दों में, ‘ये लेट 90s का दौर था और समय काफ़ी अलग था. उस दौर में डोरबेल बजाकर लोगों से बात-चीत मुमकिन था. मेरे मुंह पर लोगों ने जितने दरवाज़े बंद किए मैं उतनी ही मज़बूत बनती गई.’
लगभग एक साल के बाद चीनू को प्रमोशन मिला और वो 3 अन्य लड़कियों को ट्रेनिंग देने लगी. चीनू को सुपरवाइज़र बना दिया गया था और उनकी पगार थोड़ी बढ़ा दी गई थी. यहीं से चीनू की सेल्स ट्रेनिंग की शुरुआत हुई और एक ऐसे भविष्य की भी जो उस समय एक सुंदर सपने जैसा ही रहा होगा.
चीनू के ज़िन्दगी के इस दौर में उनका मकसद था एक वक़्त की रोटी कमाना लेकिन क़िस्मत ने उनके लिए कुछ और ही सोच कर रखा था. चीनू को हमेशा अपना बिज़नेस खड़ा करना था, बिज़नेस सेक्टर से वो बहुत ज़्यादा आकर्षित और प्रभावित थीं. चीनू के पास कोई डिग्री नहीं थी, उन्होंने जो सीखा वो अनुभव के दम पर सीखा.
सेल्सवुमन की नौकरी के बाद चीनू ने एक रेस्टोरेंट में वेटर्से की नौकरी की. इस नौकरी में उन्हें शाम के 6 बजे से रात के 11 बजे तक रहना पड़ता लेकिन वो काम करती रहीं. चीनू को कभी थकान नहीं होती और वो मेहनत करती रहतीं. तीन साल के संघर्ष के बाद चीनू आर्थिक तौर पर मज़बूत हो गईं.
मॉडलिंग की दुनिया में एंट्री
किसी एक शख़्स की बदौलत आपकी पूरी दुनिया बदल जाती है, चीनू के लिए वो शख़्स थे उनके पति अमित काला. चीनू ने 2004 में अमित से शादी की और उनका कहना है कि उनके पति ही उनके सबसे बड़े समर्थक हैं. शादी के बाद वे बेंगलुरु शिफ़्ट हो गईं, उनकी सफ़लता की कहानियों की ये बस शुरुआत थी. बेंगलुरु शिफ़्ट होने के बाद 2 साल बाद, दोस्तों के कहने पर उन्होंने 2007 में Gladrags Mrs. India प्रतियोगिता में हिस्सा लिया. चीनू इस प्रतियोगिता के टॉप 10 फ़ाइनलिस्ट्स में से एक थी लेकिन अभी तो क़िस्मत ने बस एक करवट ली थी. प्रतियोगिता की वजह से चीनू पर बहुत से लोगों की नज़र पड़ी. ब्यूटी पेजेंट के साथ उनके पास कई अवसर आने लगे.
चीनू के शब्दों में, ‘मुझे फ़ैशन बेहद पसंद था लेकिन मेरे पास ख़ुद पर ख़र्च करने के लिए पैसे नहीं थे.’
यूं खोली पहली कंपनी
ब्यूटी पेजेंट के बाद, चीनू ने मॉडलिंग शुरु की. मॉडलिंग की वजह से उन्हें फ़ैशन इंडस्ट्री का हिस्सा बनने का मौक़ा मिला. Rediff के लेख की मानें तो चीनू की मॉडलिंग ट्रेनिंग ने उन्हें अपनी कंपनी शुरु करने के लिए प्रेरित किया और उन्होंने Fonte Corporate Solutions की शुरुआत की, ये एक मर्चैंडाइज़िंग कंपनी थी. एयरटेल, सोनी, आजतक जैसे क्लाइंट्स के साथ चीनू ने काम किया.
चीनू के शब्दों में, ‘मेरे पास इन्वेस्ट करने के लिए पैसे नहीं थे लेकिन मॉडलिंग इंडस्ट्री में आने के बाद मुझे एहसास हुआ कि कॉर्पोरेट मर्चैंडाइज़िग में कदम आगे बढ़ाए जा सकते हैं. मुझे सफ़लता भी मिल गई और मैंने कई नामी ब्रैंड्स के साथ काम किया.’
रूबान्स की शुरुआत
Fonte Corporate Solutions चलाते हुए चीनू को बिज़नेस चलाने का अनुभव मिला. कन्ज़्यूमर की मांगें पूरी करते हुए उन्हें एहसास हुआ कि इंडियन ज्वेलरी इंडस्ट्री में बहुत स्कोप है. ये इंडस्ट्री फैली तो हुई है लेकिन यूनिक डिज़ाइन्स की भारी कमी है. 2014 में चीनू ने Fonte को बंद कर रूबान्स एक्सेसरीज़ खोलने का निर्णय लिया. इस तरह उन्होंने फ़ैशन को लेकर अपने लगाव और कॉर्पोरेट मर्चैंडाइज़िंग एक्सपीरियंस को जोड़ा और कुछ ऐसा तैयार कर दिया जिसकी कल्पनामात्र ही की जा सकती है.
चीनू ने जितने भी छोटे-मोटे काम करके जितने पैसे बचाए थे सब रूबान्स की शुरुआत में लगा दिए. रूबान्स एथनिक और वेस्टर्न ज्वैलरी बनाता है जिनकी क़ीमत 229-10000 तक हो सकती है. उन्होंने फ़िनिक्स मॉल, बेंगलुरु के 70 वर्ग फ़ीट कियोस्क में रूबान्स का पहला स्टोर खोला. 2019 में सिर्फ़ 5 साल में रूबान्स का टर्नओवर 7.5 करोड़ पहुंच गया.
6 महीने में मिली बड़े मॉल में एंट्री
फ़िनिक्स मॉल में चीनू की ज्वैलरी की कोई ब्रैंडिंग नहीं थी लेकिन कस्टमर्स का फ़ुटफ़ॉल देखकर उन्होंने बड़े मॉल में अपना स्टोर शिफ़्ट करने का निर्णय लिया. बेंगलुरु के कोरमंगला स्थित फ़ोरम मॉल में सबसे ज़्यादा कस्टमर्स आते थे और चीनू को पता था कि वहां स्टोर स्पेस के कन्फ़र्मेशन में 2-3 साल लग जाते हैं. चीनू को भी शुरुआत में मॉल मैनेजर ने मना कर दिया लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. चीनू को यहां स्पेस मिलने में 6 महीने लग गए.
रूबान्स की सबसे ख़ास बात ये है कि यहां स्थानीय शिल्पकारों को मौका दिया जाता है. NIFT ग्रैजुएट्स को भी ज्वैलरी डिज़ाइन करने के लिए रखा जाता है. रूबान्स ब्रेसलेट, हार, झुमके, माथा पट्टी, मांग टिका, रिंग्स जैसे कई चीज़े बनाता है.
रूबान्स ने अब बेंगलुरु, हैदराबाद, कोच्चि समेत कई शहरों में स्टोर्स खुल चुके हैं. 2021 में Business World Magazine ने चीनू को 40 अंडर 40 की सूची में शामिल किया.