CITU and Himachal Kisan Sabha celebrated Save India Day

सीटू व हिमाचल किसान सभा ने मनाया भारत बचाओ दिवस

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच व संयुक्त किसान मोर्चा के देशव्यापी आह्वान पर मजदूर संगठन सीटू व हिमाचल किसान सभा ने हिमाचल प्रदेश के जिला व ब्लॉक मुख्यालयों पर जोरदार प्रदर्शन करके भारत बचाओ दिवस मनाया। इस दौरान प्रदेश भर में हज़ारों मजदूरों व किसानों ने जोरदार प्रदर्शन किए।

हिमाचल किसान सभा राज्य महासचिव डॉ ओंकार शाद ने कहा कि कोविड महामारी को केंद्र की मोदी सरकार ने पूंजीपतियों के लिए लूट के अवसर में तब्दील कर दिया है। कोरोना काल में किसान विरोधी तीन कृषि कानून, मजदूर विरोधी चार लेबर कोड,बिजली विधेयक 2020, सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण, नई शिक्षा नीति,भारी बेरोजगारी, महिलाओं व दलितों पर बढ़ती हिंसा इसके प्रमुख उदाहरण हैं। सरकार के ये कदम मजदूर, किसान, कर्मचारीमहिला, युवा, छात्र व दलित विरोधी हैं तथा पूंजीपतियों के हित में हैं।

कोरोना काल में पिछले दो वर्षों में लगभग पन्द्रह करोड़ मजदूर रोज़गार से वंचित हो चुके हैं परन्तु सरकार की ओर से इन्हें कोई मदद नहीं मिली। इसके विपरीत मजदूरों के 44 श्रम कानूनों को खत्म करके मजदूर विरोधी चार लेबर कोड बना दिये। हिमाचल प्रदेश में पांच हज़ार से ज़्यादा कारखानों में कार्यरत लगभग साढ़े तीन लाख मजदूरों के काम के घण्टों को आठ से बढ़ाकर बारह कर दिया गया। इसी दौरान किसानों के खिलाफ तीन काले कृषि कानून बना दिये गए। सरकार किसानों को फसल का समर्थन मूल्य की मांग को पूर्ण करने से पीछे हट रही है। हिमाचल प्रदेश में मक्की व धान खरीद के सरकारी केंद्र तक नहीं हैं। जनता भारी महंगाई से त्रस्त है।

खाद्य वस्तुओं,सब्जियों व फलों के दाम में कई गुणा वृद्धि करके जनता से जीने का अधिकार भी छीना जा रहा है। पेट्रोल-डीजल व रसोई गैस की बेलगाम कीमतों से जनता का जीना दूभर हो गया है। इन भारी कीमतों के कारण देश की तीस प्रतिशत जनता पिछले एक वर्ष में रसोई गैस का इस्तेमाल करना बंद कर चुकी है। उन्होंने केंद्र सरकार से किसान व मजदूर विरोधी कानूनों को वापिस लेने की मांग की है। उन्होंने प्रति व्यक्ति 7500 रुपये की आर्थिक मदद, सबको दस किलो राशन, सरकारी डिपुओं में वितरण प्रणाली को मजबूत करने  व बढ़ती महंगाई पर रोक लगाने की मांग की है।

उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार भी केंद्र सरकार की तर्ज़ पर कार्य कर रही है। कोरोना का में प्रदेश में मजदूर, आउटसोर्स व ठेका कर्मी, पर्यटन, टैक्सी,टूअर एन्ड ट्रेवल,गाइड,कुली,रेहड़ी फड़ी तयबजारी संचालक व दुकानदार बुरी तरह तबाह हुए हैं। प्रदेश की कुल जनसंख्या का तीस प्रतिशत पर्यटन से प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से जुड़ा हुआ है जो करोना महामारी में पूरी तरह बर्बाद हो गया है। हिमाचल प्रदेश में निजी ट्रांसपोर्ट के कार्य में लगे लगभग तीन लाख ऑपरेटर व कर्मी पूरी तरह बर्बादी के कगार पर पहुंच चुके हैं। इन सबका रोज़गार खत्म हो गया है।

निजी स्कूलों की भारी भरकम फीसों ने इन स्कूलों में पढ़ने वाले सात लाख छात्रों व उनके ग्यारह लाख अभिभावकों सहित अठारह लाख लोगों की कमर तोड़ दी है। इन स्कूलों के सैंकड़ों अध्यापकों व कर्मचारियों की या तो नौकरी से  छुट्टी कर दी गयी है या फिर उन्हें वेतन नहीं दिया जा रहा है। प्रदेश के कारोबारी व व्यापारी भी पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं व उनके पास कार्यरत हज़ारों सेल्जमैन बेरोजगार हो गए हैं। प्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद में सात प्रतिशत का योगदान देने वाले छः हज़ार करोड़ रुपये के पर्यटन कारोबार को बर्बादी से बचाने के लिए हिमाचल सरकार ने कुछ नहीं किया है।

इस उद्योग की बर्बादी से प्रदेश में हज़ारों मजदूरों का रोज़गार खत्म हो गया है। उन्होंने कहा है कि प्रदेश में सबसे ज़्यादा मजदूर मनरेगा व निर्माण क्षेत्र में कार्यरत हैं। इसलिए मनरेगा में हर हाल में दो सौ दिन का रोज़गार दिया जाए व राज्य सरकार द्वारा घोषित तीन सौ रुपये न्यूनतम दैनिक वेतन लागू किया जाए। हिमाचल प्रदेश कामगार कल्याण बोर्ड से पंजीकृत सभी मनरेगा व निर्माण मजदूरों को वर्ष 2020 में घोषित छः हज़ार रुपये की आर्थिक मदद सुनिश्चित की जाए।